Home Guard in MP: होमगार्ड का कॉल ऑफ खत्म; हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, अब 12 माह मिलेगा रोजगार

Home Guard Call Off: 1962 के बाद इस संगठन से आपातकालीन के अलावा नियमित सेवायें ले जाने लगी एवं संगठन पुनर्गठन कर सैद्धांतिक रूप से नियमित कर दिया गया. 1962 से होमगार्ड नियमित रूप से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन उन्हें हर वर्ष 2 से 3 माह के लिए कॉल ऑफ कर दिया जाता था, जबकि संगठन के अन्य अधिकारियों एवं सैनिकों को नियमित कर पूरे वर्ष कार्य दिया जाता था.

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Home Guard in MP: होमगार्ड का कॉल ऑफ खत्म; हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, अब 12 माह मिलेगा रोजगार

Home Guard Call Off in MP: मध्यप्रदेश के करीब 10 हजार होमगार्ड जवानों के लिए बड़ी राहत की खबर सामने आई है. उच्च न्यायालय ने लंबे समय से चली आ रही कानूनी लड़ाई में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कॉल ऑफ प्रक्रिया समाप्त करने के आदेश दिए हैं. अब प्रदेश के सभी होमगार्ड जवानों को पूरे 12 माह नियमित रूप से ड्यूटी मिलेगी और उन्हें समस्त लाभ भी प्रदान किए जाएंगे. दरअसल, प्रदेशभर के होमगार्डों ने करीब 490 याचिकाएं दायर कर कॉल ऑफ प्रक्रिया को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी. उनका कहना था कि हर वर्ष उन्हें 2 से 3 माह के लिए कॉल ऑफ कर दिया जाता है, जबकि संगठन के अन्य अधिकारी और सैनिक पूरे वर्ष सेवाएं देते हैं. इस भेदभावपूर्ण रवैये को लेकर वर्षों से आवाज उठाई जा रही थी.

मामला क्या है?

आपातकाल स्थिति में पुलिस की सहायता के लिए 1947 में होमगार्ड एक्ट बना था. शुरुआत में यह संगठन आपातकालीन सेवाओं तक सीमित था. लेकिन 1962 के बाद होमगार्ड की सेवाओं को नियमित रूप से लिया जाने लगा. बावजूद इसके उन्हें नियमित कर्मियों जैसे अधिकार और लाभ नहीं दिए गए. कई बार मानवाधिकार आयोग ने भी राज्य शासन से कॉल ऑफ प्रक्रिया खत्म करने की अनुशंसा की, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

1962 के बाद इस संगठन से आपातकालीन के अलावा नियमित सेवायें ले जाने लगी एवं संगठन पुनर्गठन कर सैद्धांतिक रूप से नियमित कर दिया गया. 1962 से होमगार्ड नियमित रूप से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन उन्हें हर वर्ष 2 से 3 माह के लिए कॉल ऑफ कर दिया जाता था, जबकि संगठन के अन्य अधिकारियों एवं सैनिकों को नियमित कर पूरे वर्ष कार्य दिया जाता था. इस भेदभाव पूर्ण रवैये से एवं होमगार्ड की बदतर सेवा शर्तें के विरुद्ध मानव अधिकार आयोग में कई शिकायतें वर्ष 2008 में की गई एवं मानव अधिकार आयोग ने विस्तृत जांच के बाद राज्य शासन को होमगार्ड अधिनियम के स्थान पर नोट विधान लाने एवं कॉल ऑफ प्रक्रिया जो की पूर्ण रूप से अनुचित है को खत्म करने की अनुशंसा की थी.

मानवाधिकार आयोग की अनुशंसा पर कोई कार्यवाही शासन द्वारा नहीं की गई जिस वजह से वर्ष 2011 होमगार्ड संगठन द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की गई, जिसे वर्ष 2011 में स्वीकार कर शासन को नए कानून बनाने के लिए आदेशित कर स्पष्ट रूप से कॉल ऑफ समाप्त करने हेतु आदेश दिए गए. उस आदेश के विरुद्ध शासन द्वारा रिट अपील एवं SLP दायर की गई, हालांकि, अदालत का आदेश बरकरार रहा.

याचिकाकर्ताओं की दलील

याचिकाकर्ताओं के वकील विकास महावर ने दलील दी कि होमगार्ड अब पूर्ण रूप से नियमित संगठन है और उनके कार्य पुलिस व अन्य नियमित सैनिकों के समान हैं. ऐसे में उन्हें कॉल ऑफ कर आर्थिक और सामाजिक भेदभाव का शिकार नहीं बनाया जा सकता. यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 23 के खिलाफ है.

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अदालत का फैसला

विस्तृत सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने कॉल ऑफ प्रक्रिया को खत्म करने का आदेश सुनाया. अब सभी होमगार्ड जवानों को पूरे साल ड्यूटी पर रखा जाएगा और उन्हें सभी नियमित लाभ भी दिए जाएंगे. इस फैसले से प्रदेशभर के हजारों होमगार्ड जवानों और उनके परिवारों को बड़ी राहत मिली है.

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