उज्जैन में उपासकों को रौंदते हुए निकला गायों का झुंड, सुरक्षित देख भौंचक रह गए लोग, जानें क्या है परंपरा ?  

Govardhan Puja 2025: पूजा से पहले गांव में फेरी लगाते गांव में उपासकों को रौंदते हुए गाय का झुंड निकला. आइए जानते हैं क्या है यह परंपरा? 

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Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित एक गांव में बुधवार सुबह रोंगटे खड़े करने वाली अनोखी परंपरा निभाई गई. यहां मनोकामना पूरी होने पर उपास कर रहे दो लोग जमीन पर लेट गए. गाय का झुंड उन्हें रौंदते हुए निकला. आश्चर्य की बात यह है कि इससे दोनों उपासक या दर्शकों को कोई चोट नहीं आई. 

शहर से करीब से 80  km दूर बड़नगर के पास ग्राम भिडावद में बुधवार सुबह गौरी पूजन पर्व मनाया गया. जिसके चलते 
गायों को पूजा कर खुले स्थान पर लाया गया. यहां गांव के अटल चौधरी, कन्हैया लाल चौहान जमीन पर उलटे लेटे और उन पर से दर्जनों गाय दौड़कर रौंदते हुए निकली. आश्चर्य जनक यह रहा कि किसी को भी मामूली खरोच तक नहीं आई. जबकि जिसने भी पहली बार यह नजारा देखा उनकी सांसे थम गईं. 

ग्रामीणों का मानना है कि गाय सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक है. उसके पैरों में देवताओं का वास है इसलिए उसके पैरों तले आने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है. इसे गौरी पूजन कहते है.

उपासकों के लिए यह है नियम 

गांव के कपिल कुमार दुबे के अनुसार जो लोग कोई मनोकामना कर उपवास रखते हैं और उनकी इच्छा पूरी हो जाती हैं, वह लोग इसमें भाग लेते हैं. मन्नतधारी दीपावली से पांच दिन पहले ग्यारस को अपना घर छोड़कर गांव के भवानी माता मंदिर में रहकर  भजन-कीर्तन करते हैं. सदियों से दीपावली के बाद पड़वा पर गांव में खुशहाली के लिए भी इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है.

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ऐसे की गौरी पूजन की तैयारी

ग्रामीणों के मुताबिक सुहाग पड़वा पर तड़के सबसे पहले गायों को नहलाकर चौक में गो माता की पूजा की. पूजन सामग्री में गाय का गोबर विशेष रूप से रखा. फिर परंपरागत गीत गा कर सुख, शांति का आशीर्वाद देने का आह्वान किया. इसके बाद मन्नत धारियों को लेकर चौक ले गए यहां उपासकों को गायों के सामने जमीन पर लेटाकर ढोल बजाए. फिर एक साथ सभी गाय इनके ऊपर से रौंदते हुए निकली. उसके बाद गांव में जश्न मनाते हुए जुलूस निकाला. सदियों से चल रही इस परंपरा में आज तक किसी को कोई चोट नहीं आई है. 

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