Madhya Pradesh Crime News: ऐसा तो फिल्मों में होता है...पुलिस ने किसी को पकड़ा...थर्ड डिग्री टॉर्चर (Third Degree Torture) किया और फिर उसकी मौत हो जाती है, बाद में हीरो आगे आता है और उसकी मौत का सच दुनिया के सामने लाता है. रील लाइफ की ये कहानी रियल लाइफ में भोपाल (Bhopal News) में सामने आई है. फर्क ये है कि यहां अदालत ने ऐसे ही मामले में जेलर से लेकर डॉक्टर तक के खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए हैं. दरअसल मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में साल 2015 में पुलिस हिरासत में 22 साल के मोहसिन नाम के युवक की मौत के मामले में भोपाल जिला कोर्ट ने तत्कालीन जेलर,थाना प्रभारी, डॉक्टर (Jailer, Station Incharge, Doctor)और क्राइम ब्रांच के पांच सिपाहियों समेत कुल 8 लोगों पर हत्या की साजिश रचने और सबूत छिपाने की धाराओं में FIR दर्ज करने के निर्देश दिए हैं. जाहिर है मोहसिन की मौत के मामले में कोर्ट के आदेश से पुलिस की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. यहां एक तथ्य ये भी है कि पूरे मध्यप्रदेश में बीते 5 सालों में पुलिस की कस्टडी में 50 लोगों की मौत हो चुकी है. अब आप अदालत के फैसले की कॉपी में जिक्र तथ्यों पर ही निगाह डाल लीजिए...
अब पूरे मामले में एक थाना प्रभारी,उपनिरीक्षक, 2 सहायक उप निरीक्षक सहित जेलर और डॉक्टर के खिलाफ कोर्ट ने हत्या के साक्ष्य मिटाने का समेत अन्य धाराओं में प्रकरण दर्ज किया कर लिया है. मोहसिन की मां कहती है कि अभी उन्हें पूरा इंसाफ नहीं मिला है. वे कहती हैं कि 9 साल पहले चैन स्नेचिंग के आरोप में क्राइम ब्रांच ने उनके बेटे मोहसिन को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था. बाद में उसे टीटी नगर थाने के हवाले कर दिया गया . मोहसिन की मां कहती है कि पुलिस वालों ने उसने दो लाख रुपये मांग की जो उसके पास नहीं थे. पुलिस वालों ने उसे झूठे केस में फंसाया और अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. जेल में भी उसे बेरहमी से पीटा गया.
सीमा रईस
अदालत में मोहसिन का केस लड़ रहे यावर खान भी कहते हैं कि कोर्ट ने बहुत स्पीकिंग ऑर्डर दिया है कि किस तरीके से क्राइम ब्रांच और टीटी नगर थाने के पुलिसकर्मियों ने उसके साथ मारपीट की.अपर कोर्ट में जाने पर भी आरोपियों पर साक्ष्य मिटाने,साजिश रचने और हत्या के मामले बनेंगे. इस मामले में अब तक जितने भी अपर कोर्ट के आदेश हैं वह फरियादी के पक्ष में हैं.आरोपियों के खिलाफ कोर्ट ने समन जारी कर दिया है. वे अगर पेशी पर नहीं आए तो कोर्ट वारंट जारी करेगी. यह आजीवन कारावास और मृत्युदंड से दंडनीय अपराध है.हम कोर्ट से शॉर्ट ट्रायल का अनुरोध करेंगे.
हालांकि भोपाल के मौजूदा पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र कहते हैं कि हाल फिलहाल में भोपाल में कस्टोडियल डेथ का कोई मामला सामने नहीं आया है. वे कहते हैं कि मानवाधिकार से संबंधित उत्तम मानकों को पुलिस सुनिश्चित करती है. मानवाधिकार का पूरा पालन किया जाए और कोई अपनी अप्रिय घटना ना हो पुलिस की यह पूरी कोशिश रहती है. हालांकि पूर्व आला पुलिस अधिकारी इस पूरे मामले को गंभीर मामला बताते हैं. रिटायर्ड डीजी शैलेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि सोसाइटी में जिसे रक्षक कहा गया है,अगर उसकी कस्टडी में डेथ होता है तो यह बहुत दुखदायी है. मारपीट और थर्ड डिग्री टॉर्चर से हुई मौत बहुत गंभीर मसला है.इसका अधिकार संविधान ने हमें नहीं दिया है. वैसे यहां गौर करने लायक बात ये है कि साल 2023 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकारी आंकड़ों में बताया गया है कि 5 साल में मध्यप्रदेश में पुलिस अभिरक्षा में कुल 50 लोगों की मौत हुई है.
बता दें कि मोहसिन की पुलिस हिरासत के मौत के मामले में कोर्ट में कुल 14 लोगों ने गवाही दी. दिलचस्प बात यह है कि इनमें 11 गवाह सरकारी कर्मचारी हैं जबकी 2 परिजन और एक साथी कैदी है. कोर्ट ने अपने आदेश में ये माना है कि पुलिस अभिरक्षा में मौत के मामले में किसी आम व्यक्ति के लिए साक्ष्य एकत्रित करना मुश्किल है.करीब 8 साल बाद आए कोर्ट के आदेश से मोहसिन के परिजनों में एक बार फिर न्याय की उम्मीद जगी है. हालांकि गौर करने लायक बात ये भी है कि FIR के बाद भी सभी आरोपी पुलिस कर्मी अपने पद पर काम कर रहे हैं.
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