Badal Raag Samaroh Dr Yasmin Singh Interview: ताल की लय, पैरों की थाप, भाव की गहराई और नयनाभिराम अभिव्यक्ति, यही है कथक. मध्यप्रदेश की धरती पर जन्मी एक साधना, एक सुरमयी यात्रा, जिसका नाम है डॉ. यास्मीन सिंह. प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना डॉ यास्मीन सिंह और डांस ग्रुप ने भोपाल के भारत भवन में 10 से 13 सितंबर तक आयोजित चार दिवसीय 'बादल राग समारोह' के तीसरे दिन नृत्य प्रस्तुति दी. इंदौर से निकलीं, ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि पाई, इंदौर में गुरु मधुकर जगताप से शिक्षा ली और गुरु-शिष्य परंपरा की अमूल्य धरोहर को आत्मसात किया. रायगढ़ घराने की भूली-बिसरी परंपरा को पुनर्जीवित कर, “शिव ओम”, “शक्ति स्वरूपा”, “अनुभूति” और “दिव्य कृष्ण” जैसी अनूठी प्रस्तुतियों से कथक को एक नई पहचान दी. कला के प्रति समर्पण, साधना और सौंदर्य का संगम, कुछ ऐसी ही है डॉ यास्मीन सिंह की नृत्य-यात्रा. “बादल राग” की सांगीतिक संध्या में, NDTV ने उनसे खास बातचीत की. शब्दों से समझी उनकी अभिव्यक्ति और महसूस की वो लय, जहां थाप है, ताल है और है कथक का अनंत सौंदर्य.
प्रश्न: कथक आपके लिए कला है या साधना?
डॉ. यास्मीन सिंह: कथक मेरे लिए केवल कला नहीं, साधना है. यह निरंतर सफ़र है, रोज़ का अभ्यास है, प्रार्थना और आराधना है. जब मैं कथक करती हूँ तो मुझे आनंद और सुकून की प्राप्ति होती है. यही मेरी आत्मिक शांति का मार्ग है.
Badal Raag Samaroh: प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना डॉ. यास्मीन सिंह और डांस ग्रुप की प्रस्तुति
प्रश्न: कथक में इतनी चपलता और गहराई है कि हम इसमें डूब जाते हैं. आपने द्रौपदी जैसे चरित्र को कथक में व्यक्त किया, जो अपने आप में एक दुर्लभ प्रयोग है. इस पर आप क्या कहेंगी?
उत्तर - कथक नृत्य का अपना एक निर्धारित रेपर्टॉयर है, और मैं उसी ढाँचे के भीतर अपने प्रयोग करती हूँ. लेकिन हाँ, यह भी सच है कि मैंने कथक में कुछ आधुनिक तत्वों और समकालीन दृष्टिकोण को पिरोने का प्रयास किया है. इसी क्रम में मैंने कुछ नृत्य-नाटिकाओं का निर्माण किया, जैसे “शक्ति स्वरूपा”, “शिव ओम” और “दिव्य कृष्ण”. इन प्रस्तुतियों में नृत्य और नाटक का सुंदर समागम होता है, जिसे लय और ताल की बुनावट में दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाता है.
प्रश्न: गुरु-शिष्य परंपरा ने आपकी नृत्य-यात्रा को किस तरह आकार दिया?
उत्तर: मेरी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई, जहाँ मेरे पिताजी पोस्टेड थे. मेरे गुरु मधुकर जगताप जी ने विद्यालय में आकर हमें कथक की शिक्षा दी. मुस्लिम परिवार से आने के कारण यह रास्ता आसान नहीं था, लेकिन मेरे परिवार ने मेरा पूरा साथ दिया. इसी से मेरी साधना की शुरुआत हुई और फिर यह निरंतर अभ्यास और मंचीय प्रस्तुतियों में बदल गया.
प्रश्न 5: शास्त्र और अकादमिक पक्ष से आपका जुड़ाव कैसे हुआ?
उत्तर: मैंने खैरागढ़ विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. भारत सरकार ने मुझे सीनियर फेलोशिप प्रदान की, जिसके अंतर्गत मैंने गहन शोध किया. मेरे द्वारा कुछ ग्रंथ भी प्रकाशित हुए हैं. मेरे लिए कथक केवल प्रस्तुति नहीं, बल्कि शास्त्र और साहित्य का संगम भी है.
Badal Raag Samaroh: प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना डॉ. यास्मीन सिंह और डांस ग्रुप की प्रस्तुति
प्रश्न: रायगढ़ घराने को पुनर्जीवित करने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
उत्तर: रायगढ़ के महाराजा चक्रधर सिंह स्वयं उच्च कोटि के नर्तक, तबला और पखावज वादक थे. आज़ादी के दौर में जब कथक कलाकारों को संरक्षण नहीं मिल रहा था, तब उन्होंने अपने महल में स्कूल खोलकर लखनऊ, जयपुर और बनारस घराने के गुरुओं को आश्रय दिया. उन्होंने 45 से अधिक ग्रंथ लिखे, ये ग्रंथ आज लुप्त हो रहे हैं. मैंने महसूस किया कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की इस धरोहर को फिर से मंच पर लाना मेरी जिम्मेदारी है.
प्रश्न: रायगढ़ घराने के बारे में आपने नृत्य और संगीत की रचनाओं पर काफी लिखा है. इस पर आप क्या कहना चाहेंगी?
उत्तर -- रायगढ़ घराना एक नया घराना है, जिसकी नींव स्वतंत्रता आंदोलन के समय रखी गई. महाराजा चक्रधर सिंह, जो रायगढ़ के नरेश थे, अद्भुत संगीतज्ञ और कला-प्रेमी थे. वे न केवल एक उत्कृष्ट नर्तक थे, बल्कि तबला और पखावज के भी सिद्धहस्त वादक थे. उन्होंने अपने महल में ही कथक की शिक्षा के लिए एक विद्यालय स्थापित किया.
Badal Raag Samaroh: प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना डॉ. यास्मीन सिंह और डांस ग्रुप की प्रस्तुति
महाराजा ने स्वयं भी जयपुर, लखनऊ और बनारस के गुरुओं से तालीम ली. लेकिन उनका सबसे बड़ा योगदान था कथक की असंख्य रचनाओं को लिखित रूप देना. उन्होंने लगभग 45 ग्रंथों की रचना की, जिनमें से चार प्रमुख ग्रंथ ‘नर्तन सरस्वती' के नाम से विख्यात हैं. यह ग्रंथ इतने विशाल थे कि उनका वज़न 27–30 किलो तक बताया जाता है. दुर्भाग्य से आज ये ग्रंथ लुप्तप्राय हैं, शायद महल में कहीं संरक्षित हों, लेकिन उनकी पहुँच सीमित है.
Badal Raag Samaroh: प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना डॉ. यास्मीन सिंह और डांस ग्रुप की प्रस्तुति
उन्होंने केवल संकलन ही नहीं किया, बल्कि दूर-दराज़ के संगीतज्ञों और गुरुओं से सीखकर इन रचनाओं को समृद्ध भी किया. मेरे लिए, चूंकि मैं मध्यप्रदेश से हूँ और छत्तीसगढ़ भी हमारी साझा विरासत का हिस्सा है, इसलिए यह एक प्रयास रहा कि रायगढ़ घराने की इस धरोहर को पुनर्जीवित कर आगे बढ़ाया जाए.
प्रश्न: कथक को समकालीन दर्शकों के लिए आकर्षक बनाने की सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
उत्तर: सबसे बड़ी चुनौती है शास्त्रीयता को खोए बिना उसे आज के दर्शकों तक पहुँचाना. इसलिए मैंने कथक में नृत्य-नाटिकाओं का प्रयोग किया. ‘शक्ति स्वरूपा', ‘शिव ओम', ‘अनुभूति' जैसी प्रस्तुतियों में नृत्य और नाटक का संगम करके दर्शकों को एक नए अनुभव से जोड़ा. हर कलाकार को इवॉल्व होना पड़ेगा. मूल कथक वही रहेगा, लेकिन प्रेजेंटेशन बदलना होगा. जैसे पहले क्रिकेट पाँच दिन खेला जाता था और अब टी-20 का दौर है, वैसे ही प्रस्तुति का तरीका भी समय के साथ बदलना जरूरी है.
Badal Raag Samaroh: प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना डॉ. यास्मीन सिंह और डांस ग्रुप की प्रस्तुति
प्रश्न: आपने दो किताबें भी लिखी हैं. इसके बारे में बताइए.
उत्तर - मेरी पुस्तकों में मैंने कथक की शास्त्रीयता और उसके संरक्षकों की भूमिका पर काम किया है. चक्रधर सिंह जी स्वयं नर्तक, तबलावादक, पखावज वादक और साहित्यकार थे.
प्रश्न: ध्रुपद और ख्याल संगीत को कथक के साथ जोड़ने का आपका प्रयोग कैसा रहा?
उत्तर:ध्रुपद और ख्याल दोनों ही भारतीय संगीत की गहरी परंपराएँ हैं. कथक के साथ उनका संगम लयात्मक और भावपूर्ण अनुभव देता है. दर्शकों ने इसे नवीन और शास्त्रीयता से भरा हुआ माना.
प्रश्न: मंच पर कुछ ही क्षणों में एक पात्र से दूसरे पात्र में उतर जाना – क्या यह अभ्यास की देन है या सहजता की?
उत्तर: मूल तत्व वही रहते हैं, लेकिन कलाकार की ट्रांसलेशन बदल जाती है. मंच पर उतरते ही हम वेशभूषा और भावों के साथ एक नई दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं.
Badal Raag Samaroh: प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना डॉ. यास्मीन सिंह और डांस ग्रुप की प्रस्तुति
प्रश्न: आपने कहा कि आप घरानों से ऊपर उठ चुकी हैं इसका क्या मतलब है?
उत्तर: चाहे जयपुर, लखनऊ या बनारस घराना हो, मैंने जहां से भी खूबसूरती मिली, उसे आत्मसात किया. क्योंकि मेरी सीख संस्थानों में भी हुई है, इसलिए मुझे लगता है कि गानों से ऊपर उठकर कथक को अन्य नृत्य रूपों ओडिसी, भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, मोहिनीअट्टम से भी जोड़ना चाहिए. आखिर ये सब नाट्यशास्त्र से ही निकले हैं.
प्रश्न: आपने ध्रुपद-ख्याल को कथक से जोड़ा है?
उत्तर: मैंने ध्रुपद और ख्याल दोनों को कथक में साधा है. मुझे ताल और लय को साधने में सबसे ज्यादा आनंद आता है चाहे झपताल हो, आड़ा चौताल हो.
प्रश्न: मप्र-छग में लोकनृत्य, संगीत का गौरवशाली इतिहास है हबीब साहब ने इससे थियेटर को नई परिभाषा दी, कुमार गंधर्व जी ने मालवा की मिट्टी तो नया रंग क्या नृत्य के शास्त्रीय फॉर्म में इसको लेकर प्रयोग हो सकता है.
उत्तर: हमारा फोक बहुत समृद्ध है.मुझे लगता है कि फ्यूज़न की कोशिश करनी चाहिए. जब सब कला रूप मिलते हैं, तो देश की सांस्कृतिक शक्ति और भी मजबूत होती है.
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