Lok Sabha Elections 2024 Results: "हमने एक सपना पिरोया था, 2018 में मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव के बाद हमारी सरकार बनी थी, लेकिन 18 महीने तक हमारे सपने पूरे नहीं बल्कि वे सपने पूरी तरह से बिखर गए. ऐसा कहा गया था कि 10 दिन के अंदर कर्जमाफी करते हुए एमपी के किसानों के कर्ज (Farmers Loan) माफ करेंगे. पर 18 महीने बाद भी वो कर्जमाफी नहीं हो पायी है. एमपी में तबादला उद्योग चल रहा है, रेत माफिया का राज है. भ्रष्ट्राचार के नए रास्ते खुल गए." कुछ ऐसी ही बातें जनता के सामने रखते हुए ग्यालियर सिंधिया राज घराने के श्रीमंत या महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने कांग्रेस से अपना 18 साल पुराना नाता तोड़ लिया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 में बीजेपी के हाथ मिली अप्रत्याशित हार के बाद एक बार फिर गुना से दम भर रहे थे, इस बार वे कांग्रेस (Congress) हाथ के साथ नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कमल के साथ थे. सिंधिया 2002 से 2014 तक 4 बार गुना से सांसद रह चुके हैं, इस बार उन्होंने अपनी जीत का पंजा लगाया है. इस बार कांग्रेस बागी हो चुके और अब BJP के साथ चल रहे सिंधिया का मुकाबला बीजेपी के पूर्व नेता और इस बार के कांग्रेस प्रत्याशी (Congress Candidate) राव यादवेंद्र सिंह यादव (Rao Yadvendra Singh Yadav) से था. 2019 की मोदी लहर में केपी यादव से हारने वाले सिंधिया ने अपना बदला पूरा करते हुए यादवेंद्र को हरा दिया है. इस बार यहां से सिंधिया के चेहरे पर बीजेपी को 923302 वोट मिले हैं. जबकि कांग्रेस कैंडिडेट को 382373 मत प्राप्त हुए हैं. सिंधिया ने अपनी पुरानी पार्टी को 540929 वोटों से हराया है. इसे बड़ी जीत की तरह देखा जा रहा है.
ऐसा है सिंधिया का सियासी कद Jyotiraditya Scindia Political Life
चुनाव प्रचार के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी चुनावी सभा में कहते थे कि "आपका (वोटर्स और क्षेत्र की जनता का) और हमारा (सिंधिया परिवार का) खून का रिश्ता है. अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया जीता है तो आपकी रखवाली के लिए जीता है. संकट की घड़ी सिंधिया परिवार का मुखिया हरदम हर वक्त आपके साथ खड़ा रहा है."
गुना की बात करें तो दो उपचुनाव को मिलाते हुए यहां 18 बार लोकसभा के लिए वोटिंग हुई है. इन 18 चुनावों में 14 बार यह सीट सिंधिया राज परिवार के पास रही है. क्रिकेटप्रेमी 53 वर्षीय ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद सियासत की पिच पर उतरे थे. 2002 में हुए उपचुनाव में वे पहली बार सांसद बने उसके बाद 2014 तक लगातार 4 बार गुना से जीत दर्ज की. 2009 में यूपीए सरकार के दौरान उद्योग राजमंत्री रहे, फिर 2019 में बीजेपी के केपी यादव से हार गए. 2020 में कांग्रेस से बगावत कर दी, 22 विधायकों ने उनके सपोर्ट में कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया और कमल नाथ (Kamal Nath) सरकार गिर गई. बीजेपी का दामन थामने के बाद राज्यसभा सांसद चुने गए और मोदी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री (Minister of Civil Aviation of India) बने.
पिछले पांच चुनावों परिणाम भी देख लीजिए
सिंधिया घराने का गढ़ रही है गुना सीट
गुना का इतिहास सिंधिया राजघराने से जुड़ा हुआ है. सिंधिया घराने की शुरुआत 1740 के आसपास मराठा योद्धा राणो जी सिंधिया ने की थी. उन्होंने मालवा क्षेत्र पर जीत दर्ज कर उज्जैन को अपनी पहली राजधानी बनाया था. उसके बाद ग्वालियर को सिंधिया परिवार ने अपनी राजधानी बनाई. 1800 के लेकर आज़ादी के बाद तक शिवपुरी, शयोपुर और गुना के आसपास का पूरा क्षेत्र सिंधिया परिवार यानी ग्वालियर राजघराने की रियासत का हिस्सा रहा.
मध्यप्रदेश में जब पहला चुनाव 1957 में हुआ तब जीवाजी महाराज की पत्नी राजमाता विजया राजे सिंधिया ने गुना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी. इस जीत के बाद गुना सीट सिंधिया परिवार का गढ़ बन गई थी. यहां अब तक हुए चुनावों में 9 बार कांग्रेस का परचम लहराया है तो बीजेपी का कमल यहां पांच बार खिला, एक बार जनसंघ और एक बार स्वतंत्र पार्टी ने भी जीत दर्ज की. सबसे रोचक बात यह है कि गुना सीट पर अब तक हुए 16 चुनाव में से 14 बार राजपरिवार के उम्मीदवार ने विजयी माला पहनी है. यहां से सबसे ज्यादा बार राजमाता विजय राजे सिंधिया सांसद रहीं थी, उन्होंने 6 बार जीत दर्ज की थी. उनके बाद माधव राव सिंधिया 4 बार और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी 4 बार गुना से जीत दर्ज का देश की संसद में गुना की आवाज बुलंद कर चुके हैं.
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