MP के इको विकास समितियों की हालत गंभीर... सरकार और वन विभाग पर लापरवाही के लग रहे आरोप

Forest Department MP: सरकार से बजट ना मिलने के कारण प्रदेश के जंगलों में कई सारी विकास योजनाएं ठप पड़ी है. आदिवासियों को वन्यजीव संरक्षण में भागीदारी देने के उद्देश्य पर संकट आया हुआ है.  

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Eco Development Committees: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) समेत पूरे देश में आदिवासियों (Adivasi) के नाम पर उनके उत्थान पर बड़ी-बड़ी बातें तो होती रहती हैं, लेकिन उसी राज्य में टाइगर रिजर्व (Tiger Reserve) और नेशनल पार्कों में पिछले तीन साल से इको विकास समितियों (Eco Development Committees) को सरकार से बजट नहीं मिल रहा है... इससे ये समितियों जिन विकास योजनाओं को संचालित करती थीं, वह भी ठप पड़ी हुई हैं. इन समितियों का गठन स्थानीय समुदायों, खासकर आदिवासियों को वन्य जीव संरक्षण और इको विकास की योजनाओं में भागीदार बनाने के उद्देश्य से किया गया था. इसमें वन्य जीवों के हितों का भी ध्यान रखा जाता है. 

मारा जा रहा जंगल के पहरेदारों का हक

जंगल के पहरेदार, यानी आदिवासियों के हिस्से का हक उन्हें नहीं मिल पा रहा है. ये हक है इको विकास समितियों को मिलने वाला पैसा ... दरअसल, नेशनल पार्क या टाइगर रिजर्व आने वाले पर्यटकों से मिले पैसे के एक हिस्से से वन विभाग और स्थानीय लोगों के साथ विश्वास का रिश्ता बनता है, जिससे वन्य जीवों की रक्षा सुनिश्चित होती है.

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इको विकास समितियों की हालत गंभीर

टाइगर रिजर्व की हालत गंभीर

नर्मदापुरम के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व एरिया में स्थित इको विकास समितियों की स्थिति चिंताजनक है. कुछ समितियां सक्रिय हैं, जबकि कुछ बंद हो चुकी हैं. मटकुली समिति के पास पैसा तो है, लेकिन पिछले दो-तीन सालों से कोई काम नहीं हुआ है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से विस्थापित हुए गांव राईखेड़ा में पहले इको विकास समिति थी, लेकिन विस्थापन के बाद इसे भंग कर दिया गया है. समिति के सदस्य बताते हैं कि समिति के खाते में पैसा है, लेकिन इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है.

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'कोई सुध लेने वाला नहीं'

पूर्व सरपंच अशोक सिंह का कहना है कि समिति आज भी है, लेकिन काम कुछ नहीं हो रहा है. पता नहीं कितना पैसा आ रहा है. भंग की कंडीशन है पता नहीं लग रहा है. एक दो बार ऑफिस भी गये हैं लेकिन पता नहीं लगता है. वहीं, इलाके के ग्रामीण कहते है कि गांव वहां से हटा दिया फिर भंग कर दिया. बताते हैं पैसे भी जमा है ना फॉरेस्ट वाला आता है ना कोई चर्चा करता है.

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कुनो नेशनल पार्क के पास थमा हुआ है विकास

श्योपुर जिले में 2004 में 25 इको विकास समितियां बनाई गई थीं, जिनका उद्देश्य कुनो नेशनल पार्क के आसपास बसे गांवों के विकास और वन्य जीव संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना था. लेकिन, बीते सालों में इन समितियों को किसी भी प्रकार का बजट या राशि प्राप्त नहीं हुई है. जिससे ये समितियां केवल नाम मात्र की रह गई हैं. कुनो नेशनल पार्क के कर्मचारियों को इन समितियों का सचिव नियुक्त किया गया है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि उन्हें खुद समितियों के अध्यक्ष और सदस्यों के नाम तक की जानकारी नहीं है. सरकार का कहना है कि वे इस मामले की जांच करेंगे और समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करेंगे. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट मामले को गंभीर मानते हैं.

वन मंत्री ने कही कार्रवाई की बात

एमपी के वन एवं पर्यावरण मंत्री रामनिवास रावत से जब इस मामले को लेकर सवाल किए गए तो उन्होंने कहा कि इसको मैं दिखवा लेता हूं, बिल्कुल बात करूंगा. मैं दिखवा लेता हूं कितने वर्ष का कितना पैसा पड़ा है. ये आदिवासियों के विकास में लगना चाहिये. नहीं लगाया है तो ये नेगलिजेंस है और इसके लिये पूछा जाएगा. समुचित कार्रवाई करेंगे.

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सरकार को करना होगा स्वीकार-वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट 

वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है, 'मध्य प्रदेश में जो टाइगर रिजर्व है, वह आदिवासी अंचल में है. आदिवासियों के गांव का जब विस्थापन हुआ तब टाइगर रिजर्व को बढ़ने और फलने में मदद मिली. आदिवासी डेवलपमेंट का पार्टनर है. सरकार को यह स्वीकार करना होगा कि बाघों के संरक्षण में उसकी भूमिका है और बलिदान दिया है. जब भी टाइगर रिजर्व में पर्यटक आते हैं तो करोड़ों रुपए की आय होती है उसमें ईडीसी का प्रावधान होता है कि इको डेवलपमेंट कमेटी को भी प्रॉफिट शेयरिंग की जाएगी हमें स्पेशल ऑडिट से यह पता चला है कि लंबे समय से ईडीसी को पैसा नहीं दिया गया है.

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