सूखा मध्यप्रदेश: 53 जिलों में से 47 में कम बारिश, CM ने लगाई महाकाल से गुहार

मध्यप्रदेश में इस बार मौसम मेहरबान नहीं रहा है. राज्य के अधिकांश जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है. कुछ जगहों पर हालात तो ऐसे हैं कि किसान अपनी खड़ी फसल को अपने ही ट्रैक्टर से जोत दे रहे हैं. ऐसे में किसान सरकार की ओर देख रहे हैं तो खुद मुख्यमंत्री राहत के लिए महाकाल के दरबार में अर्जी लगा रहे हैं.

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मध्यप्रदेश के खेतों में कुछ दिनों पहले हरियाली आई थी लेकिन वो एक महीने में ही मुरझा गई. किसान दुखी हैं और राहत की आस सरकार और भगवान दोनों से लगाए बैठे हैं.सरकार राहत देने की भरसक कोशिश करती हुई दिखाई दे भी रही है लेकिन विपक्ष की मानें तो राज्य में किसान बिल्कुल बेहाल हो चुके हैं. हालात ऐसे हैं कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बारिश के लिए महाकाल के दरबार में अर्जी लगा चुके हैं. उनका कहना है कि अगस्त माह पूरा सूखा गया है, राज्य में सूखे की स्थिति पैदा हो गई है. फसलों पर संकट छाया है इसलिए महाकाल से बारिश कराने का आग्रह किया है. ऐसे में सबसे पहले बात मौसम के बेरुखी की कर लेते हैं. 

ये आंकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि राज्य में बारिश के हालात कितने बदतर हैं. इसका सबसे ज्यादा असर सोयाबीन की खेती पर पड़ा है. बड़ी बात ये है कि पूरे देश में मध्यप्रदेश सोयाबीन के उत्पादन में पहले नंबर पर है लेकिन इस बार ये तमगा खतरे में पड़ सकता है. सिंचाई के लिए पानी न होने की वजह से कई जगहों पर हालात ऐसे हो गए किसानों खुद ही खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जोत दिया. सबका कहना है सिंचाई के लिये पानी नहीं है ऐसे में और मेहनत का कोई फायदा नहीं है.

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अब हालात ये हैं कि खुद राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मान रहे हैं कि हालात गंभीर है. उनका कहना है कि राज्य में सूखे जैसे हालात बन रहे हैं. बारिश नहीं होने की वजह से राज्य में बिजली की डिमांड करीब-करीब दो गुनी हो गई है. उनका दावा है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वो किसानों को राहत दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. 

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जहां-जहां बांधों से पानी छोड़कर फसलें बचाई जा सकती हैं वहां पानी छोड़ा जाए. कम बारिश होने की वजह से ही राज्य में बिजली संकट भी पैदा हुआ है. पहले प्रदेश में 8 से 9 हजार मेगावाट बिजली की जरूरत होती थी जो अब बढ़कर 15 हजार मेगावाट तक हो गई है.

शिवराज सिंह चौहान

मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश

दूसरी तरफ कांग्रेस की मांग है सरकार किसानों को फौरन मुआवजा दे. प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता विवेक तन्खा ने खेतों में जाकर हालात का जायजा लिया. दूसरी तरफ राज्य कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी का कहना है कि जिस प्रदेश में 20 सालों से एक ही मुख्यमंत्री हो वहां ऐसे हालात बेहद चिंतनीय हैं. न सिर्फ घरेलू बल्कि औद्योगिक उपभोक्ता भी सरकार से नाराज हैं. उन्हें चुनावों में इसकी कीमत चुकानी होगी. 

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प्रदेश में सोयाबीन की फसल पूरी तरह से खराब हो चुकी है. किसान दुखी हैं लेकिन उन्हें मुआवजा नहीं मिल रहा है. सरकार सात घंटे बिजली कटौती की बात करती है लेकिन अघोषित कट कई-कई घंटे हो रहे हैं. बिजली के बिल अद्भुत आ रहे हैं और तार के साथ-साथ खंभे भी नहीं हैं. मैंने कल अपनी जेब से 400 से खंभे खरीद कर लोगों को दिए हैं.

जीतू पटवारी

कार्यकारी अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस

राज्य में किसानों की हालत पर सियासी फसल काटने की कोशिश हर संबंधित पक्ष कर रहा है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इन हालातों में किसानों को राहत कब और कैसे मिलेगी? मौसम की बेरूखी पर तो किसी का बस नहीं है लेकिन क्या जो सरकार और विपक्षी दल कर सकते हैं वो भी हो रहा है क्या? 

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