इस शख्स के दान से बनीं थी MP की पहली यूनिवर्सिटी, DU के थे पहले संस्थापक कुलपति, ब्रिटिश सरकार ने भी ‘सर' की उपाधि से किया था सम्मानित

Dr. Hari Singh Gour Jayanti 2025: डॉ. गौर ने आजादी से पहले वर्ष 1946 में वह कार्य किया, जिसे उस समय कल्पना मात्र माना जाता था. उनके इस योगदान से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने भी उन्हें 1925 में ‘सर' की उपाधि दी थी.

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Dr. Hari Singh Gour Jayanti 2025: 26 नवंबर को मध्य प्रदेश के महान शिक्षाविद, विधिवेत्ता और असाधारण दानी डॉ. हरि सिंह गौर की 156वीं जयंती मनाई जाएगी. ये वही व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने बुंदेलखंड के बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के सपने को साकार करने के लिए अपनी आजीवन संचित संपत्ति बिना किसी हिचकिचाहट के दान कर दी. सागर विश्वविद्यालय (Sagar University) जिसे आज डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय (Dr. Hari Singh Gour Vishwavidyalaya) के नाम से जाना जाता है. इसकी स्थापना उनके इसी अतुलनीय त्याग और दूरदृष्टि का परिणाम है.

डॉ. गौर ने अपनी पूरी संपत्ति शिक्षा के लिए कर दी थी दान 

डॉ. गौर ने आजादी से पहले वर्ष 1946 में वह कार्य किया, जिसे उस समय कल्पना मात्र माना जाता था. बुंदेलखंड के युवाओं में फैल रही शिक्षा की कमी और मौके न मिलने का दर्द देखकर उन्होंने अपनी वसीयत से 2 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति और 20 लाख रुपये की नकदी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए समर्पित कर दी. यह दान उस दौर में देश की किसी भी व्यक्ति द्वारा किया गया सबसे बड़ा निजी योगदान माना जाता है. वे भारत के ऐसे एकमात्र दानी हैं जिन्होंने अपनी पूरी निजी संपत्ति शिक्षा के नाम कर दी.

ब्रिटिश सरकार ने डॉ. गौर को दी थी ‘सर' की उपाधि

दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) के इतिहास में भी डॉ. गौर का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज है. वर्ष 1922 में जब दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, तब वे इसके पहले संस्थापक कुलपति बने और 1926 तक इस पद पर रहे. विश्वविद्यालय प्रशासन, शिक्षा विस्तार और अकादमिक विकास में उनके योगदान से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1925 में ‘सर' की उपाधि से सम्मानित किया. इसके बाद वे नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे और 1928 से 1936 तक इस दायित्व को निभाया. ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत 27 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के 25 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता भी डॉ. गौर ने की थी, जो अपने आप में एक गौरवपूर्ण उपलब्धि है.

गौर ने सागर विश्वविद्यालय के नए परिसर की रखी थी आधारशिला

सागर शहर और बुंदेलखंड से डॉ. गौर का विशेष भावनात्मक जुड़ाव था. वे रोजाना पथरिया पहाड़ी पर सैर करने जाया करते थे और प्रकृति प्रेमी होने के कारण तालाब के किनारे डूबते सूर्य को निहारना उन्हें अत्यंत प्रिय था. इसी प्राकृतिक सौंदर्य से भरे स्थल पर उन्होंने 15 अगस्त 1948 को सागर विश्वविद्यालय के नए परिसर की आधारशिला रखी.

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सागर शहर के विकास के लिए भी उनके पास अनेक दूरदर्शी योजनाएं थीं- जैसे रेलवे स्टेशन का विस्तार, हवाई अड्डे की परिकल्पना, तकनीकी शिक्षा केंद्र, मेडिकल कॉलेज और राहत जल योजना. इनमें से कई योजनाएं उन्होंने अपने जीवनकाल में ही पूरी भी कराईं. डॉ. गौर का दृढ़ विश्वास था कि विश्वविद्यालय ऐसी जगह होनी चाहिए जहां शैक्षणिक वातावरण राज्य सत्ता के हस्तक्षेप से दूर, शांत और प्रेरणादायक हो- ठीक उसी तरह जैसे कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड स्थित हैं.

अनगिनत युवाओं के जीवन में भरा उजाला

आज जब हम डॉ. हरि सिंह गौर को याद कर रहे हैं, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने सिर्फ एक विश्वविद्यालय की स्थापना नहीं की, बल्कि बुंदेलखंड के अनगिनत युवाओं के जीवन में उजाला भरने का कार्य किया. उनका जीवन त्याग, समर्पण, शिक्षा और राष्ट्रसेवा का अनुपम उदाहरण है. उनकी जयंती पर मध्य प्रदेश गर्व के साथ उनके महान योगदान को नमन करता है.

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