Deepotsav: अयोध्या से पहले प्रभु श्रीराम ने चित्रकूट में किया था दीपदान, दिवाली पर लगता है गधा मेला

Chitrakoot Dham Diwali: मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित चित्रकूट धाम प्रभु श्रीराम से जुड़ी यादों के लिए प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि यहां कण-कण में प्रभु स्वयं विद्यमान हैं. दिवाली के अवसर पर यहां की मंदाकिनी नदी में दीपदान करने का विशेष महत्व है. दीवाली के बाद यहां भाई दूज के दिन गधों का मेला भी लगता है.

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Chitrakoot Diwali Deepdaan: भगवान राम (Shri Ram) की जन्मभूमि अयोध्या (Ayodhya Diwali) में जिस तरह दीपोत्सव का काफी महत्व है. ठीक उसी तरह से उनकी तपोभूमि चित्रकूट (Chitrakoot Dham) का भी महत्व है. कहा जाता है कि अयोध्या में लोगों ने प्रभु राम की वापसी की खुशी और स्वागत में दिए जलाए थे. जबकि लंका विजय के बाद प्रभु श्रीराम ने चित्रकूट में स्वयं मंदाकिनी नदी (Mandakini River) पर दीपदान (Deepdan)  किया था. यही वजह है कि चित्रकूट में पांच दिन तक दीपोत्सव होता है. धनतेरस से मेला शुरू होता है और भाई दूज पर समापन होता है. दीपावली पर मंदाकिनी नदी पर टिमटिमाते दीये लोगों के आकर्षण का केंद्र बनते हैं.

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देश भर से पहुंचते हैं श्रद्धालु

देश के कोने-कोने से आने वाले लाखों श्रद्धालु मंदाकिनी नदी में दीपदान कर समृद्धि का वरदान मांगते हैं. ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में साढ़े 11 साल चित्रकूट में गुजारने वाले प्रभु श्रीराम अब भी यहां के कण-कण में हैं. उनके प्रसाद के रूप में कामदगिरि के चार प्रवेश द्वारों पर कामतानाथ स्वामी विराजमान हैं. लंका विजय के बाद भगवान ने ऋषि-मुनियों के साथ मंदाकिनी नदी में दीपदान कर सबका आभार जताया था, फिर अयोध्या गए थे.

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संतों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि आज भी प्रभु श्रीराम दीपावली को चित्रकूट में मंदाकिनी में दीपदान करते हैं. भगवान राम के साथ दीपदान की कामना लेकर ही श्रद्धालु आते हैं. दीपावली का पांच दिवसीय दीपदान मेला यहां का सबसे बड़ा आयोजन है, जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं. धनतेरस से दूज तक लगने वाले मेला में दीपदान का क्रम चलता रहता है. यहां पर प्रभु सब दिन रहते है. ऐसे में मंदाकिनी में दीपदान से उनका सानिध्य मिलता है.

लोक संस्कृति के भी होते हैं दर्शन

मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की सीमा पर चित्रकूट तीर्थ क्षेत्र में आयोजित होने वाले पांच दिवसीय दीपदान मेला में लोक संस्कृति और अनेकता में एकता की झलक दिखाई पड़ती है. मेला के दौरान होने वाले आयोजन लोक परंपराओं पर आधारित होते हैं, जो लोगों की परंपरागत लोक कलाओं के दर्शन कराते हैं.

खास होता है दीवाली नृत्य

इस साल भी दीपदान मेला में सांस्कृतिक रंग देखने को मिल रहे हैं. बुंदेलखंड के प्रसिद्ध लोकनृत्य दिवारी की धूम रही. दीपावली के दूसरे दिन पूरा मेला क्षेत्र बेहद खूबसूरत नजर आ रहा है. मोर पंख और लाठी के साथ नृत्य करती टोली जगह-जगह बुंदेलखंड के लोकनृत्य से परिचय करा रही है.

अंतिम दिन लगेगी गधों की बोली

दीपावली में मदाकिनी तट पर विशाल गधा मेला भी लगता है. इसमें एमपी समेत अलग-अलग प्रांतों के व्यापारी गधों को बेचने और खरीदने आते हैं. पांच दिन में यहां पर गधों की खरीद-बिक्री में करोड़ों रुपये का व्यापार होता है. यह मेला सतना जिला की नगर पंचायत नयागांव लगवाती है.

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