Chhindwara Cough Syrup death: छिंदवाड़ा में कप सिरप से 23 बच्चों की मौत की खबर ने पूरे प्रदेश ही नहीं देश भर में सुर्खियां बटोरी हैं...इलाज के नाम पर मौत का सौदा करने के इसी मामले में अब कमीशन का काला खेल भी सामने आया है. पुलिस का दावा है कि आरोपी डॉक्टर ने कथित तौर पर 10% कमीशन लेकर मिलावटी कफ सिरप पर्चे पर लिखा. पुलिस का दावा है कि बच्चों की मौत का कारण बनी ₹24.54 पैसे की कफ सिरप की हर बोतल पर मात्र ₹2.45 पैसे (यानी 10%) कमीशन के लिए डॉक्टर प्रवीण सोनी यह ज़हरीली दवा लगातार बच्चों को लिखते रहे. हालांकि डॉक्टर के वकील इस आरोप को झूठा बता रहे हैं. फिलहाल कफ सिरप बनाने वाली कंपनी के मालिक और आरोपी डॉक्टर प्रवीण सोनी पुलिस की गिरफ्त में हैं.
डॉक्टर ने कबूला कमीशन?
पुलिस अधीक्षक (एसपी) अजय पांडे के अनुसार, डॉक्टर प्रवीण सोनी ने खुद अपने बयान में यह कमीशन लेने की बात स्वीकार की है. हालांकि, पुलिस का यह दावा अदालत में कितना टिकेगा, यह देखना बाकी है. गौर करने वाली बात ये भी है कि डॉक्टर सोनी जो दवाएं लिखते थे, उनकी बिक्री भी कथित तौर पर उनकी पत्नी और भतीजे की दवा दुकान से होती थी. फिलहाल इस मामले में डॉक्टर के किसी रिश्तेदार की गिरफ्तारी नहीं हुई है, लेकिन एसपी ने मामले के 'वाइड ओपन' होने की बात कहकर आगे की कार्रवाई का संकेत दिया है.
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2023 में ही आए निर्देश, डॉक्टर करते रहे अनदेखी
पुलिस की जांच रिपोर्ट में एक और बेहद गंभीर तथ्य सामने आया है, जो डॉक्टर की लापरवाही को दिखाता है. रिपोर्ट कहती है कि 18 दिसंबर 2023 को ही केंद्र सरकार ने पूरे देश में यह दिशानिर्देश जारी कर दिया था कि चार साल से कम उम्र के बच्चों को फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (FDC) दवाएं न दी जाएं. इन साफ दिशानिर्देशों के बावजूद, डॉक्टर सोनी ने बच्चों को वही प्रतिबंधित दवा लिखी. इतना ही नहीं, पुलिस का दावा है कि उन्हें यह पहले ही पता चल चुका था कि दवा से बच्चों की किडनी खराब हो रही है, तब भी वह उसे लिखते रहे.
वकील ने कहा- झूठे हैं आरोप
दूसरी ओर, डॉक्टर प्रवीण सोनी के वकील पवन शुक्ला ने पुलिस के सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है. वकील पवन शुक्ला ने कहा कि पुलिस 'स्टोरी कंप्लीट' करने के लिए झूठे आरोप लगा रही है. उन्होंने पुलिस द्वारा दिए गए कन्फेशन मेमोरेंडम (Confess Memorandum) को 'मनगढ़ंत' बताया और कहा कि अदालत में सबूत के अभाव में इसकी कोई कानूनी वैल्यू नहीं है. उन्होंने 10% कमीशन की बात को पूरी तरह झूठा करार दिया. बता दें कि यह मामला वर्षों से चल रहे डॉक्टर-फार्मा गठजोड़ को भी उजागर करता है. पूर्व में भी मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल में यह शिकायत हुई थी कि कई प्राइवेट डॉक्टर फार्मा कंपनियों के खर्च पर विदेश यात्राएं करते हैं और उसके एवज में उनकी दवाएं प्रिस्क्राइब करते हैं. 2008 से 2011 के बीच सरकारी डॉक्टरों पर अवैध ड्रग ट्रायल के आरोप भी लगे थे. बावजूद इसके, Uniform Code for Pharmaceutical Marketing Practices के तहत आज तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है, जिसका नतीजा छिंदवाड़ा की इस दर्दनाक घटना के रूप में सामने आया है.
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