​​​​​​​78 साल में रावण का कद 16 से बढ़कर 125 फीट तक पहुंचा, छतरपुर महाराज ने आजादी पर की थी शुरुआत

Chhatarpur News: छतरपुर में रावण का पुतला 16 से 51 होते हुए 125 फीट तक की ऊंचाई तक पहुंच गया है. इसे बनाने में चमकीले रंगीन कपड़े, रंगीन कागज, बैटरी और मोतियों की माला आदि का इस्तेमाल होने लगा है.

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Chhatarpur Ravana Effigy: छतरपुर जिला मुख्यालय पर 78 साल से रावण दहन होता आ रहा है. देश आजाद होने की खुशी में 1947 में इसकी शुरुआत छतरपुर महाराज ने की थी, तब शहर के दिलकुशा बाग (गांधी आश्रम) में रावण के पुतले का दहन किया गया था. उस दौर में लाल कड़क्का मंदिर के महंत ने अपने साथियों के साथ मिलकर 16 फीट रावण के पुतले का निर्माण किया था. लेकिन अब इसकी लंबाई 51 से 125 फीट तक पहुंच गई है.

श्री लाल कड़क्का रामलीला समिति संचालक एडवोकेट नरेंद्र चतुर्वेदी की 102 वर्षीय दादी बसंती बाई ने बताया कि 1947 में देश आजाद होने की खुशी में पहली बार छतरपुर में रावण के पुतले का निर्माण कर दहन किया गया था. उस समय महाराज भवानी सिंह जूदेव का छतरपुर में शासन था. महाराज के कहने पर लाल कड़वका मंदिर के महंत बालक दास ने भरोसे लुहार और नन्हे बढ़ई के साथ मिलकर 16 फीट रावण के पुतले का निर्माण किया. जिसे पूरे नगर में घुमाने के बाद दिलकुशा बाग (गांधी आश्रम) में दहन किया गया. इसके बाद पुराना पन्ना नाका स्थित बाबूराम चतुर्वेदी स्टेडियम में रावण दहन शुरू हो गया. इस दौरान रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले की लंबाई 51 फीट तक पहुंच गई. तीन साल पहले लाल कड़वका रामलीला समिति ने 125 फीट ऊंचे रावण के पुतले का निर्माण कर दहन किया. इस बार अन्नपूर्णा रामलीला समिति 51 फीट रावण के पुतले का मेला ग्राउंड में दहन कर रही है.

चमकीले रंगीन कपड़े, आतिशबाजी और बल्ब का इस्‍तेमाल

छतरपुर में रावण का पुतला 16 से 51 होते हुए 125 फीट तक की ऊंचाई तक पहुंच गया है. जिसे बनाने में चमकीले रंगीन कपड़े, रंगीन कागज, बैटरी और मोतियों की माला आदि का इस्तेमाल होने लगा है. वहीं रावण की आंख में लाल रोशनी फेंकने वाले बल्ब लगाए जाने लगे हैं. स्प्रिंग व डोरी के जरिए उसी गर्दन घूमती हुई दिखाते हैं. रावण के पुतले के मुंह और आंखों से लपटें निकालने के लिए विशेष किस्म की आतिशबाजी का इस्तेमाल किया जाता है. इस आतिशबाजी के जरिए उड़ते हुए तीर आदि का चित्रण भी होता है. साउंड सिस्टम के जरिए दहन के समय अट्टहास की व्यवस्था की जाती है. आंखों में बैटरी के जरिए बल्ब जलाया जाता है, जिसे दहन से पहले लिया जाता है.

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