छिंदवाड़ा,राजगढ़ और रतलाम में BJP की घेरेबंदी में यूं फंस कर धराशायी हुए कांग्रेसी दिग्गज

मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणाम जहां बीजेपी के लिए पूरे देश में लाज बचाने वाले रहे वहीं कांग्रेस के लिए ये न सिर्फ बड़ा सेटबैक रहे बल्कि प्रदेश में उसके दिग्गज नेताओं के सियासी करियर को भी सवालों के घेरे में ला दिया. छिंदवाड़ा में कमलनाथ, राजगढ़ में दिग्विजय सिंह और रतलाम में कांतिलाल भूरिया बीजेपी के चक्रव्यूह में फंस कर चारो खाने चित हो गए

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Congress election results: मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणाम जहां बीजेपी के लिए पूरे देश में लाज बचाने वाले रहे वहीं कांग्रेस के लिए ये न सिर्फ बड़ा सेटबैक रहे बल्कि प्रदेश में उसके दिग्गज नेताओं के सियासी करियर को भी सवालों के घेरे में ला दिया. छिंदवाड़ा में कमलनाथ, राजगढ़ में दिग्विजय सिंह और रतलाम में कांतिलाल भूरिया (Kamal Nath, Digvijay Singh,Kantilal Bhuria) बीजेपी के चक्रव्यूह में फंस कर चारो खाने चित हो गए. ऐसे में सवाल ये है कि कांग्रेस के इन तीन बड़े नामों की हार की स्क्रिप्ट कैसे तैयार हुई..इसी पर बात करेंगे इस रिपोर्ट में...सबसे पहले बात छिंदवाड़ा की. 

ढह गया छिंदवाड़ा का क़िला

मध्यप्रदेश में कांग्रेस का  एकमात्र अजेय गढ़ छिंदवाड़ा को माना जाता था लेकिन भगवा लहर में वो बुरी तरह ढह गया. 1980 से पूर्व मु्ख्यमंत्री कमल नाथ का गढ़ माने जाने वाले आदिवासी बहुल इस सीट पर कमल नाथ के मौजूदा सांसद बेटे नकुल नाथ जिला बीजेपी अध्यक्ष विवेक बंटी साहू से 1,13,638 मतों से पूरी तरह एकतरफा मुकाबले में हार गए. विवेक बंटी साहू ने इलाके के  सभी सात विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की है. दरअसल छिंदवाड़ा की लड़ाई सबसे कड़ी टक्कर वाली थी, खासकर इसलिए क्योंकि बीजेपी  ने इस मुकाबले में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन फिर भी चुनाव पंडितों को किसी उलटफेर की उम्मीद नहीं थी.

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साहू, जो पिछले दो विधानसभा चुनावों (2019 और 2023) में छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से कमल नाथ के खिलाफ हार चुके हैं वे मतगणना के सभी 21 राउंड में आगे रहे. दूसरी तरफ अपनी हार को निश्चित मानते हुए नकुल नाथ तीसरे राउंड के बाद ही मतगणना केंद्र से चले गए, जब वो 50,000 से अधिक वोटों से पीछे चल रहे थे.

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कैसे छीना छिंदवाड़ा? 

छिंदवाड़ा में पहले चरण  (19 अप्रैल) को मतदान हुआ था. इस सीट पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक सभी प्रमुख नेताओं की अगुआई में एक बड़ा अभियान चलाया गया, जिसमें कमल नाथ के कई वफादारों को भी बीजेपी ने अपने पाले में कर लिया. पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना, मौजूदा विधायक कमलेश शाह और छिंदवाड़ा के मेयर विक्रम अहाके ( हालांकि मतदान के दिन अहाके कांग्रेस में वापस आ गए). दूसरी तरफ बीजेपी के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय को छिंदवाड़ा की कमान मिली, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव भी 2 दिन तक छिंदवाड़ा में डटे रहे, गृहमंत्री अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी यहां पूरी ताकत झोंक दी.वैसे कमलनाथ ने छिंदवाड़ा और पंढुर्ना जिलों में फैले पूरे निर्वाचन क्षेत्र में एक भावनात्मक अभियान चलाया.जिसमें मतदाताओं को याद दिलाया कि कैसे उन्होंने अपनी जवानी छिंदवाड़ा के विकास के लिए खपा दी. दूसरी ओर, नकुल नाथ और उनकी पत्नी प्रिया नाथ ने नाथ सीनियर के उन वफादारों के खिलाफ़ आक्रामक रुख अपनाया जो बीजेपी में चले गए थे. दोनों ने उन्हें 'गद्दार' तक कहा.
         

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छिंदवाड़ा के सियासी पंडित बताते हैं कि 2019 के चुनावों में नकुलनाथ ने सिर्फ़ 37,500 से ज़्यादा वोटों से जीत हासिल की उसके बावजूद वो धीरे-धीरे स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच अलोकप्रिय हो गए थे. ख़ास तौर पर उनका रूखा व्यवहार जिसने वास्तव में उनके चुनावी पराजय में अहम भूमिका निभाई. कमलनाथ-नकुलनाथ के बीजेपी में जाने की अटकलों का फायदा भी विवेक बंटी साहू को मिला.कई दिनों तक ये अटकलें चलती रहीं लेकिन कमलनाथ ने इसका खंडन नहीं किया.

इसके अलावा कमलनाथ ने खुद और परिवार को आगे रखकर पूरा चुनाव लड़ा, पार्टी का कोई बड़ा नेता वहां चुनाव प्रचार करने नहीं आया. पार्टी से पहले नकुलनाथ ने ही खुद वहां उम्मीदवार होने का ऐलान कर दिया. किसी भी पोस्टर बैनर में कमलनाथ और उनके परिवार के अलावा पार्टी के बड़े नेताओं की तस्वीर तक नहीं लगी. चुनाव परिणाम को स्वीकार करते हुए, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा-मैं छिंदवाड़ा के लोगों के फ़ैसले का पूरी विनम्रता से सम्मान करता हूँ.बता दें कि 1980 से छिंदवाड़ा सीट कमल नाथ का गढ़ रही है, जहां से उन्होंने नौ बार जीत दर्ज की, जबकि उनकी पत्नी अलका नाथ ने 1996 में जीत दर्ज की, बेटे नकुल ने 2019 में जीत दर्ज की सिर्फ एक बार (1997) बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी, जब पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने उपचुनाव जीता था.

दिग्विजय भी घर में घिरे

कमलनाथ की तरह ही दिग्विजय सिंह ने भी इस सीट से एक भावनात्मक अभियान चलाया, जहां से उन्होंने 1984 और 1991 में जीत दर्ज की और 1989 में हार गए, जिससे मतदाताओं को दशकों तक इस सीट से जुड़े रहने और इस सीट के लिए किए गए उनके काम की याद दिलाई गई लेकिन यह सीट आरएसएस का गढ़ होने के कारण, बीजेपी उम्मीदवार, जो सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे थे, आसानी से  जीतने में सफल रहे.हालांकि,सिंह ने बीजेपी सांसद की 2019 की जीत के अंतर को 4.31 लाख वोटों से घटाकर 1.45 लाख वोट कर दिया.हार को मुस्कुरा कर स्वीकार करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा-हो सकता है कि राजगढ़ के लोग ऐसे सांसद को पसंद करते हों जो घर से ही बैठकर काम करते हों. वैसे ये दिग्विजय सिंह की लगातार दूसरी लोकसभा चुनाव हार है.इससे पहले 2019 में भोपाल में प्रज्ञा ठाकुर से उन्हें 3.64 लाख से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा था.


भूरिया पर नहीं जताया रतलाम-झाबुआ ने भरोसा

दिग्विजय सिंह के वफादार और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया भी रतलाम-एसटी सीट जीतने में असफल रहे, जिसे उन्होंने पहले पांच बार जीता था.पूर्व मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूरिया भी बीजेपी की पहली बार उम्मीदवार और अलीराजपुर जिला पंचायत प्रमुख अनीता नागरसिंह चौहान से 2.07 लाख वोटों से हार गए, जिनके पति नागरसिंह चौहान राज्य के वन मंत्री हैं.इस लड़ाई को भील जनजाति बनाम भिलाला जनजाति की लड़ाई बनाने की भरसक कोशिशों के बावजूद भूरिया उस सीट को जीतने में नाकाम रहे, जिस पर उन्होंने 1998 से 2009 के बीच लगातार चार बार और बाद में 2015 के उपचुनाव में जीत हासिल की थी.

बीजेपी से आए नेताओं को बीजेपी के खिलाफ लड़ाने का प्रयोग विफल

कांग्रेस का बीजेपी के पुराने परिवार के बेटों को उनके ही उम्मीदवारों के खिलाफ खड़ा करने का प्रयोग ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की दो सीटों पर विफल रहा. पूर्व बीजेपी विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार 'नीटू' (जिनके पिता गजराज सिकरवार भी पूर्व में बीजेपी विधायक रह चुके हैं) मुरैना सीट से विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के वफादार शिव मंगल तोमर से 52,000 से अधिक मतों से हार गए, वहीं कांग्रेस उम्मीदवार राव यादवेंद्र सिंह यादव (पूर्व भाजपा विधायक स्वर्गीय राव देशराज सिंह यादव के बेटे) को गुना में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 5.40 लाख के बड़े अंतर से हराया.
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