Durg Control System: मध्य प्रदेश में जहरीला कफ सिरप पीने से एक के बाद एक 22 बच्चों की मौत ने सिस्टम की आंखें खोली या नहीं खोली, लेकिन प्रदेश का ड्रग कंट्रोल सिस्टम की पोल खोल दी है. रिपोर्ट बताती है कि एमपी का ड्रग कंट्रोल सिस्टम राम भरोसे चल रहा है, जहां एक रिपोर्ट को तैयार करने में 10 घंटे से अधिक का वक्त लगता है.
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ड्रग कंट्रोल सिस्टम में कर्मचारियों का टोटा, रिक्त पड़े हैं 17 पद
गौरतलब है मध्य प्रदेश में अमानक दवाइयों पर प्रतिबंध लगाने के लिए डाक्टर्स आंदोलन तक कर चुके हैं, लेकिन प्रदेश का ड्रग कंट्रोल सिस्टम इतना लाचार है कि एक जांच रिपोर्ट को तैयार करने में उसके पसीने छूट जाते हैं. वजह है ड्रग कंट्रोल सिस्टम में कर्मचारियों का टोटा, जहां आज भी करीब 17 पद रिक्त पड़े हुए हैं.
एमपी में हर साल 40,000 दवाइयों के सैंपल की जांच जरूरी
रिपोर्ट कहती है कि हर साल प्रदेश में 40,000 दवाइयों के सैंपल की जांच की जरूरी है, लेकिन प्रदेश का पूरा सिस्टम अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद भी बमुश्किल केवल 6000 दवा सैंपलो की जांच कर पा रहा है. हैरान करने वाली बात यह है कि मध्य प्रदेश के पास मौजूद इतना लैब ही नहीं हैं, जहां इतनी बड़ी संख्या में जांच संभव हो सके.
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जांच लेबोरेटरी में 5000 से ज्यादा दवाइयों की जांच रिपोर्ट पेंडिग
रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में ड्रग इंस्पेक्टर के पद 96 हैं 79 भरे हैं 17 खाली हैं. ऐसे में कई ड्रग इंस्पेक्टर के पास अपने से अलग जिले का भी अधिभार है.यही वजह है कि प्रदेश में मौजूद तीन लैब पर कार्य भार अधिक है, जिसकी तस्दीक पेंडिंग 5000 से अधिक सैंपेल करते हैं.
कछुआ चाल से चल रहा है मध्य प्रदेश का ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट
जानकार कहते हैं कि मध्य प्रदेश का ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट कछुआ चाल से चल रहा है. मध्य प्रदेश में अभी सिर्फ 15 फीसदी दवाइयों की जांच हो रही है, जबकि 5000 दवाइयो की जांच रिपोर्ट पेंडिंग है. ऐसे में चिकित्सक जांच रिपोर्ट सही या गलत आने से पहले ही दवा मरीजों को लिख देते हैं, क्योंकि दवाइयां पहले से मार्केट में मौजूद होती हैं.
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जबलपुर, भोपाल व इंदौर के लैब करते हैं सैंपल की जांच
मध्य प्रदेश में दवा नियंत्रण संबंधी जांच के लिए तीन लैबोरेट्रीज काम कर रही हैं. एक जबलपुर, एक भोपाल और तीसरी इंदौर में सैंपल की जांच करती है. जानकारी बताती है कि हर साल में इन लैबोरेट्रीज को 40,000 दवाइयां के सैंपेल गुणवत्ता के मापदंडों पर परखने हैं, लेकिन यह सिर्फ 6000 दवाइयो के सैंपल की रिपोर्ट जारी कर पा रही हैं.
मध्य प्रदेश में गिनते के कुल चार सरकारी ड्रग एनालिस्ट
जब पूरे मामले की पड़ताल की गई तो सामने आया के मध्य प्रदेश की सरकारी मशीनरी के पास केवल चार ड्रग एनालिस्ट हैं. इसके अलावा आउटसोर्स पर रखे गए सहायक कर्मचारी की संख्या को भी मिला लिया जाए तो लगभग यहां ड्रग एनालिस्ट की संख्या महज 12 से 15 है. कह सकते हैं कि पूरा सिस्टम राम भरोसे है, जो डराता है.
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1 रिपोर्ट को तैयार करने में लगते हैं करीब 10 घंटे
उल्लेखनीय है दवाइयों का नियंत्रण और उनकी जांच पड़ताल कोई मामूली काम नहीं है. एक दवा सैंपल को पूरी तरह परखने और उसकी गुणवत्ता को साबित करने के लिए करीब 10 घंटे का लंबा वक्त लगता है.यही वजह है कि एमपी में अभी भी 5000 दवा सैंपलों की जांच रिपोर्ट पेंडिंग हैं. ऐसे में हर महीने 100 सैंपेल की जांच ही संभव है.
सैंपल लेने की प्रक्रिया भी मध्य प्रदेश में है लचर
सरकारी नियमों के मुताबिक प्रदेश में काम कर रहे प्रत्येक ड्रग इंस्पेक्टर को हर महीने कम से कम पांच लीगल सैंपल लेने जरूरी है, अगर 79 ड्रग इंस्पेक्टर मिलकर हर महीने लगभग 395 सैंपल जांच के लिए भेजते हैं, तो हैरान करने वाली जानकारी यह है कि आधी की भी रिपोर्ट समय पर नहीं आ पाती है.
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क्या कहता है मध्य प्रदेश का ड्रग कंट्रोल सिस्टम?
मध्य प्रदेश के ड्रग कंट्रोलर एमपी दिनेश श्रीवास्तव के अनुसार पेंडिंग दावों के सैंपल की जांच के लिए सिस्टम में स्टाफ को बढ़ाया जाएगा और मशीनों को अपग्रेड किया जाएगा. उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश ड्रग कंट्रोल सिस्टम को दुरुस्त करने की कोशिश जारी है और भविष्य में और सुचारू रूप से लैब करेंगे.