Bhopal Metro: 'सपनों की पटरी पर अटकी तारीखें', लागत हुई दोगुनी पर काम हुआ आधा

Bhopal Metro  latest news: राजधानी भोपाल में मेट्रो का सपना अब तक हकीकत नहीं बन सका है. चुनाव से ठीक पहले एक बार चली मेट्रो अब ट्रैक पर नहीं दौड़ रही है. हैरानी की बात यह है कि इस परियोजना की लागत ₹6,941 करोड़ से बढ़कर ₹10,033 करोड़ हो चुकी है, लेकिन कई स्टेशनों पर सिविल और सुरक्षा संबंधी काम अभी भी अधूरे हैं और इसे शुरू करने के लिए CMRS की मंज़ूरी का इंतज़ार है.

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Bhopal Metro Project: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में मेट्रो का सपना अब तक हकीकत नहीं बन सका है. हालात ये हैं कि मेट्रो के पूरी होने से पहले ही पुराने कामों में खामियां दिखने लगी हैं. केंद्रीय विद्यालय मेट्रो स्टेशन के पिलर्स इतने छोटे बनाए गए हैं कि भारी वाहन टकराने का खतरा बना हुआ है. अब उन्हीं पिलर्स के नीचे तीन फीट गहरी खुदाई कर जगह बनाई जा रही है.

उधर, मेट्रो को पटरी पर दौड़ाने के लिए कमिश्नर ऑफ मेट्रो रेल सेफ्टी (CMRS) की मंज़ूरी का इंतज़ार है, और इस इंतज़ार में परियोजना की लागत दोगुनी हो चुकी है. हालांकि मेट्रो रेल सुरक्षा आयुक्त (CMRS) जनक कुमार गर्ग की टीम भोपाल पहुंच चुकी है निरीक्षण के बाद रिपोर्ट मेट्रो कॉरपोरेशन को सौंपेगी. जिसे कॉरपोरेशन प्रदेश सरकार को भेज देगी. इसके बाद भोपाल मेट्रो की शुरुआत की तारीख तय की जाएगी.

चुनाव से पहले चली मेट्रो, फिर ठप

राजधानी भोपाल में मेट्रो जिसमें चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 3 अक्टूबर 2023 को बैठे थे, वह दो साल की देरी के बाद भी दोबारा दौड़ नहीं पाई है. भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट की घोषणा 2009 में हुई थी. 9 साल बाद यानी मार्च 2016 में डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) को अंतिम रूप दिया गया. साल 2018 में केंद्र से मंजूरी मिलने पर कहा गया था कि चार साल यानी 2022 में जनता मेट्रो की सवारी करेगी.

भोपाल मेट्रो का पहला रूट एम्स से करोंद तक 16.05 किलोमीटर लंबा है, लेकिन यात्रीगण यह न समझें कि देरी के बाद वो पूरे रूट पर सफ़र करेंगे. फिलहाल केवल 6.22 किलोमीटर का एम्स से सुभाष नगर के बीच का 'प्रायोरिटी कॉरिडोर' ही तैयार हो रहा है.

अफसरों या जिम्मेदारों की लापरवाही का आलम यह है कि डेढ़ साल पहले प्रगति पंप के पास मेट्रो के पिलर की ऊंचाई कम होने की खबर सामने आई थी, जिस पर सुधार हुआ. लेकिन यही गलती अब केंद्रीय विद्यालय मेट्रो स्टेशन के पास भी दोहराई गई है.

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मेट्रो स्टेशन बने, पर सुविधाएँ अधूरी

कमिश्नर ऑफ मेट्रो रेल सेफ्टी की टीम भले ही निरीक्षण के लिए आ चुकी हो, लेकिन कई जगहों पर 30 फीसद से ज़्यादा सिविल तक का काम अधूरा है. रानी कमलापति मेट्रो स्टेशन पर रैंप अधूरा है और नाली खुदी हुई है. एम्स स्टेशन पर सिर्फ ढांचा तैयार है, और दूसरी साइड एंट्री-एग्जिट का काम अधूरा है. अलकापुरी गेट पर लिफ्ट-एस्केलेटर हैं, पर रास्ता अधूरा है. लगभग किसी भी स्टेशन में दिव्यांगों के लिए रैंप तैयार नहीं है. शुरुआत से गलती हुई जिसकी वजह से निर्माण में भी गलती हो रही है."

टाउन प्लानर सुयश कुलश्रेष्ठ बताते हैं कि ग़लत प्लानिंग की वजह से ये हालात बने हैं. उन्होंने कहा कि, "डीपीआर जब बनाई जाती है तब समस्याओं पर चर्चा की जाती है. यदि डीपीआर ही ग़लत तरीक़े से बनाई जाएगी तो उसका क्रियान्वयन भी ग़लत होगा.

राजनीति मेट्रो से तेज़, काम मेट्रो से धीमा और लागत में उछाल

मेट्रो भले ही ट्रैक पर न हो, लेकिन सियासत फुल स्पीड से दौड़ रही है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही श्रेय लेने की होड़ में हैं. कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह ने कहा कि 7,000 करोड़ की मेट्रो परियोजना कमलनाथ लेकर आए थे, लेकिन बीजेपी सरकार की लापरवाही और ठेकेदारों के भ्रष्टाचार के चलते काम में देरी हो रही है. वहीं, बीजेपी नेता और नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस सिर्फ शिलान्यास करना जानती है, जबकि मेट्रो की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के समय में हुई थी.

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उन्होंने कहा-  इंदौर-भोपाल में मेट्रो की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी की देन है. सूर्यवंशी ने दावा किया कि भोपाल को बहुत जल्द मेट्रो की सौगात मिलेगी. हालांकि इस राजनीतिक खींचतान के बीच, परियोजना की लागत लगातार बढ़ती जा रही है. 2017-18 में भोपाल मेट्रो के 27.9 किलोमीटर के कॉरिडोर का अनुमानित खर्च 6,941 करोड़ था जो अब बढ़कर 10,033 करोड़ रुपये हो चुका है. मौजूदा हालात को देखते हुए, भोपाल मेट्रो के ट्रैक पर दौड़ने के लिए एक नई तारीख ही तय होती दिख रही है.

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