Bharat Rang Mahotsav: भारत भवन में महाभारत! द्रौपदी के नजरिए से देखिए अग्निसुता द्रौपदी

Bharat Bhawan Bhopal: भोपाल के भारत भवन में "भारत रंग महोत्सव 2025" का शुभारंभ नाटक "अग्निसुता द्रोपदी" के मंचन से हुआ. भारत रंग महोत्सव अब तक का सबसे बड़ा नाट्य समारोह है और इसमें 200 से अधिक नाटकों की प्रस्तुतियां होने जा रही हैं, जिसमें 12 विदेशी नाटकों का मंचन भी सम्मिलित है.

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Bharat Rang Mahotsav: भारत भवन भोपाल में नाटक अग्निसुता द्रौपदी के मंचन से हुआ समारोह का शुभारंभ

Bharat Rang Mahotsav 2025: भारत रंग महोत्सव के 25वें संस्करण के अंतर्गत भोपाल के भारत भवन में शुरू हुए 5 दिवसीय समारोह का पहला नाटक 'अग्निसुता द्रौपदी' अपनी अनोखी प्रस्तुति के लिए खास रहा. मोहन जोशी द्वारा लिखित और जॉय मैस्नम के निर्देशन में प्रस्तुत यह नाटक महाभारत की कहानी को द्रौपदी के दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है. 95 मिनट के इस नाटक ने अंतरंग में दर्शकों को भावुक और मंत्रमुग्ध कर दिया. यह नाटक द्रौपदी के संघर्ष, उनके दर्द और समाज द्वारा उनके साथ हुए अन्याय को केंद्र में रखकर महाभारत को नए सिरे से परिभाषित करता है. संवादों के माध्यम से द्रौपदी ने अपनी पीड़ा को व्यक्त किया, जो हर किसी को झकझोरने में सफल रहा.

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जब वो कहती हैं दोषी कौन है मैं या धर्मराज!

"मेरी हंसी... एक भाभी वाली देवर के प्रति ठिठोली मात्र थी, जिसके बदले मुझे चीरहरण मिला. माया महल में दुर्योधन से परिहास में, वह एक भाभी की देवर के प्रति होने वाली ठिठोली मात्र थी, क्या यह मेरा दोष था? एक स्त्री की हंसी को दुर्योधन का अहम स्वीकार नहीं कर पाया. जब दुर्योधन ने कृष्ण को बंदी बनाया तो युद्ध होना सुनिश्चित हो चुका था. क्या कृष्ण के अहम पर भी चोट मैंने ही की थी? धर्मराज युधिष्ठर ने अपना गौरव बचाने के लिये मुझे दांव पर लगा दिया. क्या पत्नी को जुए में हारना अधर्म नहीं है? यदी हां तो दोषी कौन है मैं या धर्मराज!"

Bharat Rang Mahotsav: भारत भवन भोपाल में अग्निसुता द्रौपदी के मंचन का दृश्य

मैं अर्जुन की अर्धांगिनी थी बाकी पांडवों ने मुझे बांटने के कुंती का प्रस्ताव का यदि अर्जुन ने विरोध किया होता तो युधिष्ठिर को मुझे दांव पर लगाने का कोई अधिकार नहीं मिलता मेरे वस्त्रहरण से क्रोधित भीम के लहू में उबाल तब क्यों नहीं आया जब धर्मराज ने मुझे दांव पर लगाया अगर ऐसा होता तो ना तो यह चीर हरण होता और ना यह महाभारत का भीषण युद्ध इसलिए मुझ पर आरोप लगाने से पहले सब अपने अहम को टटोल लें तो महाभारत के युद्ध  के कई कारण मिल जाएंगे ... द्रौपदी के केस हर युग में खुलते ही रहेंगे क्योंकि दुर्योधन और दुशासन अमर हैं ... मेरा जीवन तो प्रतिशोध में निकल गया पर पर मन कहीं और अटका रहा और वह जिस खूंटे में अटका था वह भी आज टूट गया.

यह संवाद दर्शकों के दिलों को छू गया, जिसमें समाज की उस मानसिकता को उजागर किया गया, जो एक साधारण हंसी को चरित्र पर सवाल उठाने का माध्यम बना देती है.

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Bharat Rang Mahotsav: भारत भवन भोपाल में अग्निसुता द्रौपदी के मंचन का दृश्य

तकनीकी उत्कृष्टता

इस नाटक की सबसे बड़ी खासियत थी इसका मार्शल आर्ट और शारीरिक अभिनय का शानदार उपयोग. चक्रव्यूह रचना और मायामहल का निर्माण बांस और रस्सी के माध्यम से किया गया, जो दृश्य रूप से अद्भुत और रचनात्मकता की उत्कृष्ट मिसाल था. इन तत्वों ने न केवल कहानी को गहराई दी बल्कि नाटक की दृश्यात्मक अपील को भी कई गुना बढ़ा दिया.  
संगीत और प्रकाश संयोजन ने कहानी को प्रभावी ढंग से समर्थन दिया. हालांकि, इन दोनों में और सुधार की संभावना है. बेहतर संगीत और प्रकाश प्रभाव भावनात्मक दृश्यों को और भी प्रभावशाली बना सकते थे.

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Bharat Rang Mahotsav: भारत भवन भोपाल में अग्निसुता द्रौपदी के मंचन का दृश्य

अभिनय और संवाद

कलाकारों ने अपने अभिनय से द्रौपदी के संघर्ष और वेदना को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया. नाटक में द्रौपदी अपने अंतर्मन से बात करती हैं, द्वंद करती हैं ... जिसमें साजिदा और अदिति शानदार नज़र आईं ... लेकिन कुछ कलाकारों के संवादों में परिपक्वता की कमी महसूस हुई. इससे महाकाव्य के कुछ महत्वपूर्ण संवादों का प्रभाव थोड़ा कम हो गया.  
दर्शकों की प्रतिक्रिया

Bharat Rang Mahotsav: भारत भवन भोपाल में अग्निसुता द्रौपदी के मंचन का दृश्य

अग्निसुता द्रौपदी' भारतीय पौराणिक कथाओं की सबसे प्रभावशाली कहानियों में से एक की मार्मिक और दृश्यात्मक प्रस्तुति है. संवाद अदायगी और तकनीकी finesse में थोड़ी कमी के बावजूद, यह नाटक अपने उद्देश्य में सफल होता है. जॉय मैस्नम का निर्देशन और शारीरिक अभिनय के अनोखे तत्व इस प्रस्तुति को भारत रंग महोत्सव का यादगार हिस्सा बनाते हैं.

Bharat Rang Mahotsav: भारत भवन भोपाल में अग्निसुता द्रौपदी नाटक की टीम

नाटक के अंत में दर्शकों ने जोरदार तालियों से इसे सराहा. कई दर्शकों ने कहा कि यह नाटक केवल द्रौपदी की व्यक्तिगत त्रासदी नहीं थी, बल्कि समाज की मानसिकता का प्रतिबिंब था. यह नाटक दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर कर गया कि द्रौपदी की कहानी आज भी कितनी प्रासंगिक है.

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