Birsa Munda Jayanti: भगवान बिरसा मुंडा (Bhagwan Birsa Munda) का जीवन किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं है. उनका पूरा जीवन हमें साहस, संघर्ष और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध रहने का संदेश देता है. जनजातीय गौरव दिवस (Janjatiya Gaurav Divas) हमें उनकी शिक्षाओं, राष्ट्रप्रेम और उनके संघर्ष को याद करने और जनजातीय समाज के अधिकारों और सम्मान के प्रति संवेदनशील बने रहने के लिए प्रेरित करता है. यही वजह है कि सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और राष्ट्रीय गौरव, वीरता तथा भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने में आदिवासियों के प्रयासों को मान्यता देने के लिए हर वर्ष बिरसा मुंडा जयंती (Birsa Munda Jayanti) पर जनजातीय गौरव दिवस का आयोजन किया जाता है.
जनजातीय समाज को आत्मसम्मान और अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना सिखाने वाले भगवान बिरसा मुंडा को नमन।#PMJANMAN #BirsaMunda150#EmpoweringTribalsTransformingIndia #DhartiAabaJanjatiyaGramUtkarshAbhiyan pic.twitter.com/lWrRAhjt6z
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बिरसा मुंडा का जीवन व संघर्ष (Birsa Munda Life)
बिरसा मुंडा जी का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड के उलीहातू गांव में एक साधारण मुंडा परिवार में हुआ था. उनका जीवन बेहद कठिनाइयों से भरा था और उन्हें बाल्यावस्था से ही आर्थिक संघर्षों का सामना करना पड़ा. सामाजिक असमानता, अत्याचार और विदेशी शासकों द्वारा जनजातियों पर निरंतर हो रहे शोषण ने बिरसा मुंडा के अंतर्मन को विद्रोह की भावना से भर दिया. उन्होंने अंग्रेजों द्वारा लागू जमींदारी प्रथा, धर्मांतरण और जनजातियों के पारम्परिक जीवन पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष किया.
उलगुलान आंदोलन का नेतृत्व
बिरसा मुंडा ने उलगुलान जनजातीय विद्रोह का नेतृत्व किया, जो अंग्रेजी शासन और उनके द्वारा किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ था. उलगुलान का अर्थ है आंदोलन या विद्रोह. इस आंदोलन का उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भूमि नीतियों, जबरन धर्मांतरण और जनजातियों की पारम्परिक जीवनशैली में दखल देने वाले कानूनों के खिलाफ आवाज उठाना था.
समाज सुधारक के रूप में बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे. उन्होंने तत्कालीन जनजातीय समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे अंध-विश्वास, जाति-भेद, नशाखोरी, जातीय संघर्ष और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाई. उन्होंने अपने अनुयायियों को शिक्षा का महत्व समझाया और उन्हें एकता में रहने का संदेश दिया. बिरसा मुंडा ने "बिरसाइत" नामक एक धार्मिक आंदोलन भी चलाया था, जिसमें उन्होंने अपने अनुयायियों को आचार-विचार की शुचिता, सादगी और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया.
बिरसा मुंडा का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बिरसा मुंडा का योगदान अतुलनीय है. वे न केवल अपने क्षेत्र की जनजातियों के नेता थे, बल्कि उनके संघर्ष और बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भी एक नई दिशा दी. उनके "उलगुलान" आंदोलन ने अन्य जनजातीय समुदायों को भी संगठित किया और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी करने की प्रेरणा दी थी.
कब से मनाया जा रहा है जनजातीय गौरव दिवस?
वर्ष 2021 में केन्द्र सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया. इसका उद्देश्य भगवान बिरसा मुंडा और अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का सम्मान करना है. इस दिन देशभर में जनजातीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर, उनकी परंपराओं और उनके गौरवशाली इतिहास को समझने और सम्मानित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. यह दिवस जनजातीय समाज के संघर्षों और उनके योगदान को याद करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है.
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