अफसर तो बन गए 'आयुष्मान', भोपाल गैस पीड़ितों को 'इंतज़ार', 5 लाख में से सिर्फ 18 हजार कार्ड, कैसे मिलेगा लाभ?

Ayushman Card Apply: भोपाल गैस कांड के पीड़ित बताते हैं कि आयुष्मान योजना के तहत उनका कार्ड नहीं बन पा रहा है, जिससे महंगा इलाज करना मजबूरी बन गई है. वहीं रसूखदारों के कार्ड बन गए हैं जबकि गैस पीड़ित पीछे रह गए. आइए देखिए NDTV की खास रिपोर्ट.

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Ayushman Card: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) में 1984 में हुए भोपाल गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) का दंश आजतक लोग झेल रहे है, जो गैस लीक के वक्त थे उनको आज भी स्वास्थ्य सम्बन्धी शिकयतें हैं, यहाँ तक की गैस ने उनके परिवार को भी बर्बाद कर के रख दिया है,1984 गैस लीक कांड हादसे में करीब 15 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. आज भी साढ़े तीन लाख से ज़्यादा गैस पीड़ित इससे प्रभावित हैं, लेकिन इस गैस पीड़ितों की बीमारियों का इलाज उन्हें नहीं मिल पा रहा है. भोपाल गैस त्रासदी के लाखों पीड़ितों को आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Yojana) का लाभ नहीं मिल पा रहा है. हज़ारों ने आवेदन दिए हैं, लेकिन अब तक कार्ड नहीं बने हैं. आइए देखिए NDTV की ये खास रिपोर्ट.

पहले देखिए आंकड़े

Ayushman Bharat Yojana: गैस पीड़ितों को आयुष्मान का इंतजार
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

मध्य प्रदेश में 6 साल में 4 करोड़ 70 लाख लोगों को आयुष्मान भारत योजना का फायदा मिला है, जिसमें 1 करोड़ 8 लाख परिवार शामिल हैं. सरकार का दावा है कि प्रदेश के 98.81 प्रतिशत परिवारों में कम से कम एक शख्स का आयुष्मान कार्ड बनाया जा चुका है. इनमें से कई अधिकारियों के कार्ड भी बनाए गए हैं.

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  • आईएएस रूही खान ने आवेदन दिया, निरस्त हुआ, मामले पर तर्क देने से इंकार.
  • जेपी अस्पताल के सिविल सर्जन राकेश श्रीवास्तव कार्ड बना,कुछ बोलने से इंकार किया.
  • स्वास्थ्य विभाग में संचालक ने भी बनवाया कार्ड.
  • गैस राहत विभाग के अस्पतालों में डॉक्टरों ने बनवाये कार्ड.
  • फर्स्ट और सेकंड क्लास अधिकारी जो गैस पीड़ितों रहे उनके कार्ड भी बन गए. 
इन अफसरों ने कैमरे पर तो नहीं लेकिन बातचीत में तर्क दिया जब गैस रिसाव हुआ तब वो अफसर नहीं थे. वैसे कुछ हद तक कानून भी इनके साथ है. कोर्ट का फैसला है सारे गैस पीड़ितों के आयुष्मान कार्ड बनाए जा सकते हैं, चाहे वो अफसर ही क्यों ना हो.

गैस राहत विभाग के सीएमएचओ सत्येंद्र एस राजपूत का कहना है कि जो भी गैस पीड़ित आएंगे उनके कार्ड बनेंगे, हमें उससे मतलब नहीं की कौन आएगा? पांच क्राइटेरिया जो रहेगा उसके आधार पर पेपर जमा करके कार्ड बनाने का डेटा टैली करके योजना को भेजते हैं. हमारे पास बस 31 हज़ार आवेदन आये है. हमारे यहाँ से कुछ डिले नहीं है.

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पीड़ितों का दर्द

पीड़िता अमीना का कहना है कि जब मेरा बेटा मेरे पेट में था, तब तीन महीने में परेशानी शुरू हो गयी थी. डॉक्टर ने कह दिया था कि बच्चे को निकलवाना पड़ेगा नहीं तो बच्चा भी नहीं बचेगा न आप. आधा किलो का बेटा जन्म के वक्त था, हम गरीब थे, तीन साल बाद पता चला ये बोल सुन नहीं सकते, दूसरा बेटा भी कमज़ोर है, 15 साल बीत चुके हैं तबियत काफी खराब रहती है. इलाज भी नहीं होता.

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एक अन्य गैस पीड़ित प्रवेश बताते हैं कि मेरे माता-पिता और दो छोटे भाई हैं. हम गैस रहत अस्पताल जाते हैं. वहां आधे टाइम डॉक्टर नहीं मिलते, कभी दवाइयां नहीं होती. मैं प्राइवेट नौकरी करता हूं. कब तक खर्चा उठाएंगे प्राइवेट अस्पताल का? 13 जून को आयुष्मान कार्ड के लिए आवेदन दिया था. लेकिन अभी तक कार्ड नहीं बना. कई बार पूछा भी, बोले हां बन जायेगा, हमेशा टाल देते हैं.

अधिकारों का हो रहा हनन : एक्टिविस्ट

भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की ओर से रचना ढींगरा बताती हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने गैस पीड़ितों को ये हक़ दिया है और ये संवैधानिक अधिकार है कि गैस पीड़ितों को मुफ़्त इलाज मिल पाये. आयुष्मान के जाल में गैस राहत विभाग ने गैस पीड़ितों को उलझाकर रखा है. गैस राहत विभाग ने जिस तरह उलझा कर रखा है, ये कोर्ट के आदेश की अवमानना है. IAS अधिकारियों का कार्ड बने हैं तो ठीक है, इसमें कोई उल्लंघन आदेशों का नहीं है. लेकिन गैस पीड़ित जिनको वाक़ई में ज़रूरत है उनको आयुष्मान कार्ड नहीं मिल रहा है.

अधिकारी का क्या कहना है?

आयुष्मान भारत योजना मध्य प्रदेश के CEO योगेश भरसट बताते हैं कि पाॅलिसी बहुत क्लियर है, राज्य सरकार की ओर से जो भी अलग-अलग श्रेणी से आवेदन आते हैं. सम्बंधित विभाग से हम डेटा मंगवाते है, पात्र व अपात्र तय करना प्रदेश के सम्बंधित विभाग का काम है. हमें 31 हज़ार का डेटा मिला है. क्लास वन या क्लास 2 के अधिकारी है या कुछ और ये हम नहीं देखते. हम बस कार्ड बनाते हैं. पहले कार्ड बनने में समय लगता था. अब जल्द ही हम वेटिंग समय को कम करने में लगे हैं.

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