179 बच्चों को मिला सहारा! सतना में अनाथों को मिली 'मातृछाया', विदेशों तक पहुंची मुस्कान

Child Adoption: मातृछाया ने बेसहारा बच्चों को न केवल दत्तक के माध्यम से माता-पिता की गोद दिलाने का काम किया, बल्कि 30 बच्चों को उनके जैविक माता-पिता से भी मिलाने का काम किया. बताया जाता है कि वर्ष 2014 से लेकर अब तक 30 बच्चों के परिवारों को ढूंढ़ कर उनसे मिलाने का काम किया. यह बच्चे उन्हें पुलिस या फिर बाल कल्याण समिति के माध्यम से मिले थे.

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Child Adoption: दत्तक ग्रहण

Matra Chhaya Satna: अबोध बच्चे जिन्हें बेसहारा छोड़ दिया जाता है उन पर लावारिश होने का दाग लग जाता है. ऐसे बच्चों के लिए मातृछाया मददगार साबित हो रही है. यह संस्था बच्चों को अपने पास रखकर बचपन में उन्हें माता-पिता जैसा प्यार देती है और फिर सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथार्टी (CARA) तथा महिला एवं बाल विकास विभाग (WCD) की सहायता से बच्चों का दत्तक ग्रहण करवाती है. सतना में संचालित मातृछाया ने पिछले दस साल के अंदर लगभग 179 बच्चों को माता-पिता की गोद दिलाने का काम किया. इसमें से करीब 17 बच्चे हैं, जिन्हें NRI या फिर विदेशी अभिभावकों ने ग्रहण किया है. दत्तक ग्रहण करने वाले अभिभावकों का दो साल तक नियमित फॉलोअप भी किया जाता है.

2010 से मातृछाया कर रही है काम, ये है गोद लेने की प्रक्रिया Child Adoption Process

सतना जिले में मातृछाया संस्था की नींव वर्ष 2010 में रखी गई. तब से लेकर अब तक 249 से अधिक बच्चे इस संस्था में आए. बच्चों की देखरेख करने के बाद संस्था ने कारा पोर्टल में रजिस्ट्रेशन किया. वहीं इस पोर्टल के माध्यम से दत्तक चाहने वाले नि:संतान दंपित्त भी अपना पंजीयन कराते हैं. इसके बाद भारत सरकार के द्वारा प्रतीक्षा सूची जारी की जाती है, जिसके बाद पूरे देश की संस्थाओं में उपलब्ध बच्चों की जानकारी दी जाती है. रजिस्ट्रेशन करने वाले दंपति अपनी आईडी और पासवर्ड से हर महीने अपना क्रम जांचते हैं. जैसे ही नंबर आता है भारत सरकार के द्वारा उन्हें सपंर्क कर दत्तक ग्रहण करने की प्रक्रिया की जानकारी दी जाती है. इस क्रम में दो से तीन साल का वक्त लग जाता है.

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16 बच्चे पहुंचे विदेश

जन्म लेने के बाद ही जिन बच्चों को उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया. वे बच्चे अब विदेशों में रहकर पल-बढ़ रहे हैं. इस बात की उम्मीद उनके जैविक माता-पिता ने भी नहीं की होगी कि जिन्हें वे अनाथ बनाकर फेंक रहे हैं, उनके दिन इस प्रकार बहुरेंगे कि वे अमेरिका, स्पेन, दुबई, माल्टा और इटली जैसे देशों में रहेंगे.

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मातृछाया के आंकड़े बताते हैं कि 16 बच्चे विदेशों से एडाॅप्ट किए गए. कुछ बच्चे एनआरआई ने एडाॅप्ट किए जबकि कुछ विदेशी दंपतियों ने गोद लिए. जिनकी मॉनीटरिंग भारतीय दूतावास के माध्यम से होती है. सबसे अधिक अमेरिका के दस लोगों ने दत्तक ग्रहण किया. माल्टा और स्पेन के दो-दो तथा इटली व दुबई से एक-एक बच्चे को गोद लिया गया.

मासूमों को माता-पिता का प्यार मिला यह सुखद अहसास

सेवा भारती संस्था द्वारा संचालित मातृछाया के प्रमुख प्रदीप सक्सेना ने बताया कि उन्हें एक दिन से लेकर कुछ वर्ष के बच्चे तक प्राप्त होते हैं. जिन्हें वह छह साल तक अपने पास रखते हैं. इस दौरान पूरी कोशिश की जाती है कि या तो उन्हें उनके जैविक माता-पिता या फिर ब्लड रिलेशन वालों से मिलाया जाए. वहीं जिन बच्चों के संबंध में कोई नहीं मिलता. उन्हें हम एक जठिल प्रक्रिया के बाद कारा पोर्टल के माध्यम ये दत्तक दिलाने का काम करते हैं. पूरी प्रक्रिया में दो से तीन साल का वक्त लगता है. बच्चों को माता-पिता का प्यार मिले यह हमारे लिए सुखद अहसास है. वहीं महिला एवं बाल विकास विभाग के मुखिया सौरभ सिंह ने कहा कि संस्था द्वारा एक सैकड़ा से अधिक बच्चों का दत्तक ग्रहण कराया गया. पूरी टीम अच्छा काम कर रही है.

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