Shardiya Navratri 2024: षोडशोपचार पूजन विधि से लेकर घट स्थापना और दुर्गा आरती तक जानिए पूरे नियम

Shardiya Navratri 2024: दुर्गा पूजा के दौरान घट स्थापना, अखंड़ ज्योति की स्थापना और षोडशोपचार पूजन विधि का महत्व बड़ा ही खास है. यहां पर हम आपको माता के कलश स्थापना से लेकर वास्तु दिशा और आरती तक पूरी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं.

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Durga Puja 2024: शक्ति उपासना के त्योहार दुर्गा उत्सव (Durga Utsav) में 9 दिनों तक देवी मां की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ भक्त व और श्रद्धालु करते हैं. शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) के दौरान देवी माता की पूजा में किसी प्रकार की गलती की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए. इसलिए दुर्गा की आराधना के पर्व नवरात्रि (Navratri 2024) में हम आपको घट स्थापना, मूर्ति स्थापना के साथ-साथ छोटी-छोटी बातों और पूजा विधि के बारे में अहम जानकारी दे रहे हैं. आइए जानते हैं कैसे मातारानी की पूजा पूरे मनोयोग की जाए कि हमें सिद्ध परिणाम प्राप्त हो सकें?

घट स्थापना पूजा विधि (Kalash Sthapana Puja Vidhi)

पहले दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घट की स्थापना की जाती है. इसके बाद ही नवरात्रि उत्सव का प्रारंभ होता है. माता दुर्गा व घट स्थापना की विधि इस प्रकार है. सबसे पहले पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं. फिर उनके ऊपर अपनी शक्ति के अनुसार बनवाए गए सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक स्थापित करें. कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति की प्रतिष्ठा करें. मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें.

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मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वस्तिक और उसके दोनों कोनों में बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालीग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें. पूजन सात्विक हो, राजसिक या तामसिक नहीं, इस बात का विशेष ध्यान रखें. नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें. फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें.

दुर्गा देवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए.

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दीपक स्थापना

घट स्थापना के साथ अखंड ज्योत भी जलाई जाती है. इसके लिए पूजन स्थान पर ही गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं तथा कुमकुम, चावल व फूल से उसकी पूजा करें. इस मंत्र को बोलते हुए दीपक की स्थापना करें :-

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भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय

ध्यान रखें ये बातें

नवरात्र में माता दुर्गा के सामने नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है. यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। माता के सामने एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए. मान्यता के अनुसार, मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जाप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है.

कहा जाता है दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत: अर्थात् - घी का दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाईं ओर रखना चाहिए.

अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए. इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें. जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाड़ना हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें. यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत फिर से जलाई जा सकती है, छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं.

षोडशोपचार विधि से पूजन

शास्त्रों में पूजन विधि को 16 भागों में बताया गया है. इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, द्रव्य दक्षिणा, आरती, परिक्रमा (प्रदक्षिणा) को 16 उपचार माना गया है. 16 उपचार का अर्थ है, पूजा के 16 तरीके. इन 16 तरीकों से पूजन शुरु करने से पहले संकल्प लें. संकल्प करने से पहले हाथों मेे जल, फूल व चावल लें. सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोले. अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें.

पूजन में वास्तु नियम (Vastu Niyam)

नवरात्रि में माता की प्रतिमा की स्थापना करने का विधान है. इसी परंपरा के अनुसार माता की प्रतिमा के समक्ष घट (छोटा मटका) स्थापना व नौ दिनों तक जलने वाली अखंड ज्योत भी जलाई जाती है. माता प्रतिमा व घट स्थापना करते समय यदि वास्तु नियमों का पालन भी किया जाए तो और भी शुभ होता है.

  • ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) को देवताओं की दिशा माना गया है. इसी दिशा में माता की प्रतिमा तथा घट स्थापना करना उचित रहता है.
  • यदि माता प्रतिमा के समक्ष अखंड ज्योत जला रहे हैं तो इसे आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रखें.
  • घट की स्थापना चंदन के बाजोट (पटिए) पर करें तो बहुत शुभ होता है.
  • पूजा करते समय मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें.
  • पूजा स्थल के ऊपर यदि टाण्ड हो तो उसे साफ-सुथरी रखें. कोई कपड़ा या गंदी वस्तुएं वहां न रखें.
  • कई लोग नवरात्र पर ध्वजा भी बदलते हैं. ध्वजा की स्थापना घर की छत पर वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में करें.
  • स्थापना स्थल के आस-पास शौचालय या बाथरूम नहीं होना चाहिए.
  • पूजा स्थल के समक्ष थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए, जहां आसानी से बैठा जा सके.
हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कार्य के बाद देवी-देवताओं की आरती उतारने का विधान है. विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए. चार बार चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से. आरती की बत्तियां 1,5,7 अर्थात् विषम संख्या में ही बनाकर आरती की जानी चाहिए.

मां दुर्गा की आरती (Durga Ji Ki Aarti)

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥ जय अम्बे...
माँग सिंदुर विराजत टीको मृगमदको।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको ॥2॥ जय अम्बे....
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त-पुष्प गल माला, कण्ठनपर साजै ॥3॥ जय अम्बे...
केहरी वाहन राजत, खड्ग खपर धारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहरी ॥4॥ जय अम्बे...
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥5॥ जय अम्बे...
शुंभ निशुंभ विदारे, महिषासुर-धाती।
धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥ जय अम्बे...
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥7॥ जय अम्बे...
ब्रह्माणी, रूद्राणी तुम कमलारानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी ॥8॥ जय अम्बे...
चौसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू ॥9॥ जय अम्बे...
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख सम्पति करता ॥10॥ जय अम्बे...
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवाञ्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ॥11॥ जय अम्बे...
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
(श्री) मालकेतु में राजत कोटिरतन ज्योती ॥12॥ जय अम्बे...
(श्री) अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख सम्पति पावै ॥13॥ जय अम्बे...

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