Shardiya Navratri 2024: छठवें दिन करें मां कात्यायनी की पूजा, मंत्र से आरती, भोग तक सब जानिए यहां

Shardiya Navratri 2024 Day 6: शारदीय नवरात्रि के छठवें दिन कात्यायनी माता की पूजा पूरे विधि और विधान के साथ करनी चाहिए. पुराणों के अनुसार इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं. माता कात्यायनी की पूजा करने से सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है. इसके साथ ही शत्रुओं का भय समाप्त हो जाता है. आइए मां कात्यायनी के पूजन से जुड़ी सभी अहम बातों को जानते हैं.

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Shardiya Navratri 2024 Day 5 Maa Katyayani Puja: दुर्गा उत्सव (Durga Utsav) के पांच दिन बीत चुके हैं, शरदीय नवरात्रि (Navratri 2024) के दौरान नौ दिनों तक माता दुर्गा (Durga Maa) के 9 अलग-अलग स्वरूपों या अवतारों की पूजा-अर्चना विधिपूर्वक की जाती है. नवरात्रि में नौ दिवसीय दुर्गा पूजा (Durga Puja 2024) के दौरान पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांड़ा और पांचवें दिन स्कंदमाता की साधना-उपासना करने के बाद छठवें दिन कात्यायनी (Katyayani) की स्तुति और पूजन होते हैं. यहां पर हम आपको देवी कात्यायनीक की पूजा से जुड़ी सभी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं. उनके मंत्र से लेकर पूजा विधि, कथा, भोग और आरती तक सब कुछ यहां बताएंगे.

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कात्यायनी का अर्थ क्या है?

कात्यायनी माता को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है. कात्यायनी, नारी शक्ति की प्रतिमूर्ति हैं. ये बुराई का नाश करने वाली देवी हैं. इनकी पूजा से दुश्मनों का संहार होता है. कात्यायनी का अर्थ है अहंकार और कठोरता का नाश. कत गोत्र में उत्पन्न होने की वजह से मां को कात्यायनी कहा जाता है. देवी कात्यायनी इसलिए कहलाती हैं क्योंकि वे ऋषि कात्यायन के महान पुण्य और तेज से उत्पन्न हुई थीं.

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नवरात्रि की षष्ठी तिथि की प्रमुख देवी मां कात्यायनी हैं. महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं.

मां कात्यायनी की पूजा विधि (Maa Katyayani Pooja Vidhi)

कात्यायनी माता को पीला रंग प्रिय है. देवी मां पूजा के लिए सुबह उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र पहन लें. इसके बाद आसन पर बैठ जाएं. उसके बाद चौकी पर मां कात्यायनी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें. फिर मां की प्रतिमा या चित्र को गंगा जल शुद्धिकरण करें. जल भरकर कलश चौकी पर रखें. उसी चौकी पर भगवान श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका यानी सात सिंदूर की बिंदी लगाते हुए उनकी स्थापना भी कर लें. इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें. फिर मंत्रों द्वारा षोडशोपचार पूजा करें. मां को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी और लाल पीले फूल चढ़ाएं, इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. साथ ही दुर्गा चालीसा भी पढ़ें. उसके बाद मां का पसंदीदा भोग लगाएं. उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें. मां के मंत्रों का जाप करें और आरती करें. माता को सुगंधित पीले फूल अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं साथ ही प्रेम संबंधी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं.

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मां कात्यायनी की पूजा ज्यादातर गोधुली बेला यानि शाम के समय होती. माता को प्रसन्न करने के लिए आपको पीले अथवा लाल वस्त्र धारण करने चाहिए. कात्यायनी माता को शहद अतिप्रिय है, इसलिए पूजा के दौरान शहद जरूर अर्पित करें. पूजा के दौरान मन ही मन मां कात्यायनी के स्वरुप का मनन करते रहें. इसके साथ ही  माता के मंत्रों का जाप करें.

मां कात्यायनी का ध्यान मंत्र (Maa Katyayani Mantra)

चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।

मां दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी हैं. इनका स्वरूप बहुत वैभवशाली, दिव्य और भव्य है. देवी मां कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है. इनकी चार भुजाएं हैं. कात्यायनी की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है. बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है.

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

मंत्र ॐ देवी कात्यायन्यै नमः

कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः

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मां कात्यायनी का भोग (Maa Katyayani Bhog)

ऐसी मान्यता है कि देवी मां कात्यायनी शहद बेहद प्रिय है. ऐसे में शहद या मधु से बनी चीजों का भोग लगाया जा सकता है. इसे साथ ही मां को पीले रंग का भोग भी पसंद है. अगर इसका का भोग नहीं सकते हैं तो खीर-पूड़ी या हलवा पूड़ी का भोग तैयार कर सकते हैं.

महत्व (Maa Katyayani Significance)

नवरात्रि की षष्ठी तिथि को कात्यायनी की पूजा विशेष फलदाई होती है. इस दिन माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र द्वारा जागृत की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है. वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं. मां की पूजा करने से विवाह में आ रही रुकावट दूर होती है तथा सुयोग्य वर आसानी से मिलता है.

मां कात्यायनी की कथा (Katyayani Mata Katha)

कात्यायनी माता की व्रत कथा का उल्लेख विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि कात्यायनी माता, मां दुर्गा का छठवां स्वरूप हैं, जिनकी उपासना से उनके भक्तों और श्रद्धालुओं को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है. यह व्रत मुख्य रूप से कुंवारी कन्याओं द्वारा अपने इच्छित वर की प्राप्ति के लिए किया जाता है. आइए जानते हैं मां की कथा.

पौराणिक कथा के अनुसार महार्षि कात्यायन ने आदिशक्ति माता की कठिन तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें ऐसा वरदान दिया था कि देवी शक्ति उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लेंगी. उसके बाद मां का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में हुआ था. मां का लालन-पालन कात्यायन ऋषि ने ही किया था. पुराणों के अनुसार जिस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था. उस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई थी. देवी ने ऋषि कात्यायन के यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था. इसके बाद ऋषि कात्यायन ने उनका तीन दिनों तक पूजन किया था.

मां ने अश्विन मास की दशमी तिथि को महिषासुर का अंत किया था. इसके बाद शुंभ और निशुंभ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छिन लिया था और नवग्रहों को बंधक बना लिया था. अग्नि और वायु का बल पूरी तरह उन्होंने छीन लिया था. उन दोनों ने देवताओं का अपमान करके उन्हें स्वर्ग से निकल दिया था. इसके बाद सभी देवताओं ने मां की स्तुति की इसके बाद मां ने शुंभ और निशुंभ का भी वध करके देवताओं को इस संकट से मुक्ति दिलाई थी. क्योंकि मां ने देवताओं को वरदान दिया था कि वह संकट के समय में उनकी रक्षा अवश्य करेंगी.

एक मान्यता यह भी है कि ब्रज की गोपियों ने करुणावतार भगवान श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में पाने के लिए, कालिंदी यमुना के किनारे, देवी कात्यायनी की ही आराधना की थी. इसी कारण आज भी देवी कात्यायनी समस्त ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं.

पूजा कथा के दौरान कहें- हे देवी कात्यायनी! तुम सभी प्रकार के सुखों को देने वाली, दुष्टों का नाश करने वाली, सभी प्रकार के कार्यों को सिद्ध करने वाली, नारायणीस्वरूपिणी हो. तुम्हें नमस्कार है.

माता कात्यायनी की आरती (Maa Katyayani Aarti)

देवी कात्यायनी माता की विशेष कृपा पाने और जीवन में सुख, समृद्धि व शांति के लिए यह आरती अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है. नवरात्रि के दिनों में षष्ठी के दिन मां की यह आरती करने से इंसान को धन लाभ, वैभव, शांति व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती. इसके साथ ही इंसान को ज्ञान की भी प्राप्ति होती है, जिससे सफलता मिलती है. तो सब मिलकर बोलिए- माता कात्यायनी की जय.

जय जय अम्बे जय कात्यायनी।
जय जग माता जग की महारानी॥

बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहावर दाती नाम पुकारा॥

कई नाम है कई धाम है।
यह स्थान भी तो सुखधाम है॥

हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी।
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥

हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मन्दिर में भगत है कहते॥

कत्यानी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की॥

झूठे मोह से छुडाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली॥

बृहस्पतिवार को पूजा करिए।
ध्यान कात्यानी का धरिये॥

हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी॥

जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥

आरती करते वक्त विशेष ध्यान इस पर दें कि देवी-देवताओं की 14 बार आरती उतारना है. चार बार उनके चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से और सात बार पूरे शरीर पर से. आरती की बत्तियां 1, 5, 7 यानी विषम संख्या में ही बनाकर आरती करनी चाहिए.

पूजा सामाग्री लिस्ट

मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो, सिंदूर, केसर, कपूर, धूप, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, मधु, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, लाल रंग की गोटेदार चुनरी, लाल रेशमी चूड़ियां आदि.

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