International Labour Day 2025 Theme, Date, History, And Significance: 1 मई को मजदूर दिवस (Labour Day) या इंटरनेशनल लेबर डे (International Labour Day) मनाया जाता है. 1889 के पेरिस सम्मेलन में दुनिया भर की समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के संगठनों ने मजदूरों के हक की आवाजों को बुलंद करने के लिए 1 मई का दिन चुना था. उस दौर में काम के घंटे तय नहीं थे जिसको लेकर 1884 में अमेरिका और कनाडा की ट्रेड यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज़्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन ने तय किया था कि 1 मई 1886 के बाद मजदूर हर दिन 8 घंटे से अधिक काम नहीं करेंगे. इस विरोध को लेकर अमेरिका के अलग-अलग शहरों में लाखों मजदूर हड़ताल पर चले गए. शिकागो इस विरोध प्रदर्शन का प्रमुख केंद्र था, जहां दो दिन तक हड़ताल चली लेकिन तीन मई को मैकॉर्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कंपनी के बाहर भड़की हिंसा में दो मजदूर पुलिस की फायरिंग में मारे गए. उसके अगले दिन फिर हिंसा हुई जिसमें पुलिस सहित और भी लोगों को जान गंवानी पड़ी. उसके बाद से ही 1 मई को मजदूर दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा है. भारत में 1 मई 1923 को लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान ने मद्रास में इसकी शुरुआत की थी.
कब है श्रमिक दिवस International Labour Day 2025 Date
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस हर साल 1 मई को मनाया जाता है. 2025 में यह गुरुवार को मनाया जाएगा. इस दिन दुनिया भर में कई तरह की गतिविधियाँ होती हैं, जिनमें मार्च, रैलियाँ और चर्चाएँ शामिल हैं जिनका उद्देश्य मज़दूरों के अधिकारों और उपलब्धियों को उजागर करना है.
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इस साल की थीम क्या है? International Labour Day 2025 Theme
हालांकि अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस 2025 के लिए वैश्विक थीम की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन विभिन्न देश ऐसे थीम अपनाते हैं जो उनके राष्ट्रीय संदर्भों से मेल खाते हैं. थीम की घोषणा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और अन्य राष्ट्रीय संगठनों द्वारा की जाती है. यह दिन सभी के लिए समान, सुरक्षित और समावेशी कार्यस्थल बनाने की दिशा में निरंतर प्रयासों के लिए कार्रवाई का आह्वान करता है.
मजदूर दिवस का इतिहास International Labour Day History
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस की उत्पत्ति संयुक्त राज्य अमेरिका में 19वीं सदी के उत्तरार्ध के मज़दूर आंदोलन से जुड़ी है. 1 मई 1886 को, मज़दूरों ने आठ घंटे के कार्यदिवस की मांग को लेकर हड़ताल शुरू की. इस आंदोलन की परिणति शिकागो के हेमार्केट मामले में हुई, जहाँ एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन बम विस्फोट के बाद हिंसक हो गया, जिससे कई लोग हताहत हुए. यह घटना मज़दूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गई और 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता के दिन के रूप में स्थापित किया गया.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस का महत्व International Labour Day Significance
अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस श्रमिकों के अधिकारों और स्थितियों की वर्तमान स्थिति पर विचार करने का दिन है. यह दिवस उचित वेतन, सुरक्षित कार्य वातावरण, उचित कार्य घंटे और शोषण के उन्मूलन की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है. यह दिन श्रमिकों के बीच एकता के महत्व और सकारात्मक बदलाव लाने में सामूहिक कार्रवाई की भूमिका पर भी जोर देता है.
मजदूर दिवस विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से मनाया जाता है जो श्रमिकों के योगदान का सम्मान करते हैं और उनके अधिकारों की वकालत करते हैं. इनमें परेड, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सेमिनार और सोशल मीडिया अभियान शामिल हैं जो श्रम मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं. यह दिन नीति निर्माताओं, ट्रेड यूनियनों और नागरिक समाज के लिए श्रमिकों की स्थिति में सुधार लाने और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से रणनीतियों पर चर्चा करने और उन्हें लागू करने के लिए एक मंच के रूप में भी कार्य करता है.
मजदूर दिवस पर प्रसिद्ध कविताएं
International Labour Day 2025: रामधारी सिंह की कविता
Photo Credit: Ajay Kumar Patel
मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या / रामधारी सिंह दिनकर
मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये,
अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से,
मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा;
धरती को सुन्दर करने की ममता में,
बीत चुका है कई पीढियां वंश हमारा.
अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर,
पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ;
युगों-युगों से इन झोपडियों में रहकर भी,
औरों के हित लगा हुआ हूँ महल सजाने.
ऐसे ही मेरे कितने साथी भूखे रह,
लगे हुए हैं औरों के हित अन्न उगाने;
इतना समय नहीं मुझको जीवन में मिलता,
अपनी खातिर सुख के कुछ सामान जुटा लूँ
पर मेरे हित उनका भी कर्तव्य नहीं क्या?
मेरी बाहें जिनके भारती रहीं खजाने;
अपने घर के अन्धकार की मुझे न चिंता,
मैंने तो औरों के बुझते दीप जलाये.
मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये.
तोड़ती पत्थर / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला
वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर.
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार.
चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गई,
प्रायः हुई दुपहर :-
वह तोड़ती पत्थर.
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार.
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
"मैं तोड़ती पत्थर."
International Labour Day 2025: अदम गोंडवी की कविता
Photo Credit: Ajay Kumar Patel
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है / अदम गोंडवी
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है
इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है
कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है
रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है.
श्रम की महिमा / भवानीप्रसाद मिश्र
तुम काग़ज़ पर लिखते हो
वह सड़क झाड़ता है
तुम व्यापारी
वह धरती में बीज गाड़ता है.
एक आदमी घड़ी बनाता
एक बनाता चप्पल
इसीलिए यह बड़ा और वह छोटा
इसमें क्या बल।
सूत कातते थे गाँधी जी
कपड़ा बुनते थे,
और कपास जुलाहों के जैसा ही
धुनते थे
चुनते थे अनाज के कंकर
चक्की पिसते थे
आश्रम के अनाज याने
आश्रम में पिसते थे
जिल्द बाँध लेना पुस्तक की
उनको आता था
भंगी-काम सफाई से
नित करना भाता था.
ऐसे थे गाँधी जी
ऐसा था उनका आश्रम
गाँधी जी के लेखे
पूजा के समान था श्रम.
एक बार उत्साह-ग्रस्त
कोई वकील साहब
जब पहुँचे मिलने
बापूजी पीस रहे थे तब.
बापूजी ने कहा - बैठिये
पीसेंगे मिलकर
जब वे झिझके
गाँधीजी ने कहा
और खिलकर
सेवा का हर काम
हमारा ईश्वर है भाई
बैठ गये वे दबसट में
पर अक्ल नहीं आई.
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