नारायणपुर, छत्तीसगढ़ के दक्षिणी छोर पर बसा है एक छोटा सा जिला. यह प्रदेश के नवगठित जिलों में से भी एक है, जिसे 11 मई 2007 को बस्तर से अलग कर एक नए जिले के रूप में दर्जा दिया गया था. प्रदेश के कुख्यात रेड कॉरिडोर का हिस्सा होने की वजह से यहां अक्सर नक्सली गतिविधियां होती ही रहती हैं. नारायणपुर के पास कोई बड़ा शहर भी 120 किमी की दूरी पर स्थित जगदलपुर है. यही वजह है कि नक्सली प्रभाव के चलते यहां जरूरी सुविधाएं आसानी से मुहैया कराना आसान नहीं है. बस्तर संभाग के अन्य जिलों की तरह यहां भी नक्सली प्रभाव के कारण मेडिकल सुविधाएं और आवागमन आए दिन प्रभावित होते ही रहते है.
दंडकारण्य वन का हिस्सा था नारायणपुर
नारायणपुर में आज भी 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग आदिवासी समुदाय के हैं. जिन्होंने शायद कभी बाहरी दुनिया भी नहीं देखी होगी. आज भी कई आदिवासी समुदाय यहां ऐसे हैं जिन्होंने इस इलाके की आदिवासी संस्कृति को जस के तस संभाल रखा है.
1948 में भारत गणराज्य में विलय से पहले वो ही इस क्षेत्र के शासक थे. लेकिन 1966 में एक आदिवासी आंदोलन के दौरान पुलिस की गोली से उनकी मृत्यु हो गई.
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
नारायणपुर में नक्सली प्रभाव ज्यादा होने का यहां के विकास पर भी खासा असर पड़ा है. यहां के कई इलाके ऐसे हैं जहां आज भी सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे बुनियादी चीजें भी लोगों को मयस्सर नहीं हैं. कहा जाता है कि इलाके में अशांति फैलाने वाली लोग नहीं चाहते कि उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का विकास हो क्योंकि ऐसा होने से उनकी पकड़ क्षेत्र पर ढीली पड़ सकती है.हालांकि 1985 में शुरू हुए रामकृष्ण मिशन ने इन जनजातियों को संगठित करने का काम किया है. नारायणपुर मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों का घर है. इसलिए वहां अलग अलग समुदाय और उनकी संस्कृति की छाप देखी जा सकती है. गोंड, यान्हा, हालेबी आदि बस्तर के मूल निवासी समुदाय माने जाते हैं.
पर्यटन स्थल एवं मुख्य आकर्षण
नारायणपुर प्राकृतिक रूप से काफी सुंदर और समृद्ध जिला है. यह चारों तरफ से नदियों, पहाड़ों से घिरा हुआ है. यहां घूमने लायक जगहों में शिव मंदिर, हंदवाड़ा वॉटरफॉल, माता मावली मेला आदि शामिल हैं जो पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बनते हैं.
नारायणपुर एक नजर में