Indian Railways: क्या है कवच, जिसकी बंगाल रेल हादसे के बाद एक बार फिर से हो रही है चर्चा

Kavach: इस टेकनोलॉजी को लागू करने में समय लगने का मुख्य कारण यह है कि इसे लागू करना एक जटिल प्रक्रिया है. विशेष रूप से इसलिए क्योंकि इसे रेलगाड़ियों के शेड्यूल को बाधित किए बिना मौजूदा नेटवर्क पर स्थापित किया जाना है.

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रंगापानी में हुआ था भयानक रेल हादसा

Bengal Train Accident: कोलकाता (Kolkata) में अगरतला से सियालदह (Sealdah) जा रही कंचनजंगा एक्सप्रेस (Kanchanganga Express) न्यू जलपाईगुड़ी के पास रंगापानी के पास 17 जून को एक मालगाड़ी (Freight Train) से टकरा गई थी. इसमें कुल 11 लोगों की मौत हो गई थी. इससे ठीक एक साल पहले, 2 जून को, कोलकाता से चेन्नई (Chennai) जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस (Coromandel Express) ओडिशा के बालासोर के पास एक मालगाड़ी से टकरा गई थी, जिसमें 296 लोग मारे गए थे. दोनों दुर्घटनाओं का कारण टक्कर थी, जिन्हें कवच (Kavach in Trains) नामक एक स्वदेशी रूप से विकसित तकनीक द्वारा रोका जा सकता था, जो दोनों मामलों में काम नहीं कर रही थी. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस प्रणाली की स्थापना जटिल है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि इसे रेलगाड़ियों की आवाजाही में बाधा डाले बिना मौजूदा नेटवर्क पर ही स्थापित किया जाना है.

क्या है कवच प्रणाली (What is Kavach in Trains)

कवच रेलवे के अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (RDSO) द्वारा बनाई गई एक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जिसका उद्देश्य तेज गति और सिग्नल विफलता जैसे खतरों को रोककर शून्य दुर्घटनाएँ प्राप्त करना है. यदि ट्रेन चालक विफल हो जाता है या ऐसा करने में असमर्थ होता है, तो यह प्रणाली स्वचालित रूप से ब्रेक लगाता है, जिससे यह दुर्घटनाओं के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा बन जाता है. कवच एक सेफ्टी इंटीग्रिटी लेवल 4 (SIL-4) प्रमाणित तकनीक है, जिसमें त्रुटि की संभावना 10,000 वर्षों में एक बार होती है. कवच दुनिया की सबसे सस्ती स्वचालित ट्रेन टक्कर सुरक्षा प्रणाली भी है, जिसके संचालन की लागत 50 लाख रुपये/किमी है. दुनिया भर में इसकी लागत लगभग 2 करोड़ रुपये/किमी है.

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रोकी जा सकती थी रंगापानी घटना (Rangapani Accident Reason)

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि कवच भले ही तीसरी ट्रेन के शामिल होने के कारण बालासोर दुर्घटना को रोकने में सक्षम न रहा हो, लेकिन इससे रंगापानी दुर्घटना को रोका जा सकता था. कवच की तैनाती के लिए टावरों की स्थापना, ट्रैक पर ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने और ट्रैक पर रेडियो फ्रीक्वेंसी टैग लगाने की जरूरत है. इसके अलावा, सिस्टम को हर एक लोकोमोटिव और स्टेशन में एकीकृत करने की आवश्यकता होती है, जो काफी जटिल प्रक्रिया है.

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इन रूटों पर लग चुकी है कवच

भारतीय रेलवे ने बीते कुछ महिनों में कवच की तैनाती में प्रगति की है. अब तक इसे 1,465 किलोमीटर रेल मार्गों और दक्षिण मध्य रेलवे के 144 इंजनों में लागू किया जा चुका है. दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा के उच्च घनत्व वाले रूट पर इसे स्थापित करने का काम चल रहा है, जो लगभग 3,000 किलोमीटर के रूट को कवर करेगा. 4,055 किलोमीटर पर फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाए जाने, 356 टेलीकॉम टावरों और 273 स्टेशनों और 301 इंजनों में अन्य उपकरण लगाए जाने के साथ काम में काफी प्रगति हुई है. 

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