खाट पर झूलता सिस्टम! न सड़क, न एम्बुलेंस... आज भी ऐसी है कांकेर जिले की हालत

कांकेर जिले के कई गांवों में अब तक विकास की किरण नहीं पहुंचीं है. आलम ऐसा है कि यहां रहने वाले ग्रामीणों को न सड़क की सुविधा मिली न है इलाज की. ऐसे में किसी ग्रामीण की तबीयत बिगड़ने पर उसे खाट पर टांगकर अस्पताल पहुंचाया जाता है. 

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Chhattisgarh News : छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के सुदूर अंचल से सिस्टम की लाचारी की एक तस्वीर सामने आई है. यहां एक घायल को उपचार दिलाने के लिए गांव वालों को खाट का सहारा लेना पड़ा. 15 किलोमीटर पैदल दुर्गम जंगल, पहाड़ और नदी-नालों को पार कर ग्रामीण उसे अस्पताल तक ले गए. तब कहीं जाकर घायल की जान बच पाई. मिली जानकारी के अनुसार, घायल का नाम केयेराम है... जो नारायणपुर जिले के बिरुलयेर का रहने वाला है. केयेराम अन्य लोगों के साथ मिलकर बांस के घेरे में काम कर रहा था. इसी दौरान हादसा हुआ और बांस के घेरे में लगी एक बल्ली उसके पेट में लग गई. इस हादसे में केयेराम गंभीर रूप से घायल हो गया. गांव तक पहुंचने के लिए सड़कों और नदी-नालों में पुल नहीं है जिससे स्वास्थ्य सुविधा के लिए शुरू की गई संजीवनी गाड़ी का वहां पहुंचना मुश्किल था.

15 किलोमीटर कंधे पर लेकर चले लोग

घायल केयेराम की जान बचाने के लिए साथी ग्रामीणों ने उसे खाट पर लिटाकर रस्सी और लकड़ी की सहायता से कंधे पर उठाकर चलना शुरू किया. इस दौरान उन्होंने जंगली, पहाड़ी रास्तों और नदी-नालों को पार किया. लगातार 15 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गांव के लोग घायल केयेराम को लेकर गट्टाकाल पहुंचे. वहां सरपंच पीलूराम और उप सरपंच रामनाथ ने उनकी मदद की और उन्हें संबलपुर तक पहुंचाया. यहां संजीवनी वाहन को बुलाकर घायल केयेराम को कोयलीबेड़ा में भर्ती कराया गया.

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देरी होने पर हो सकती थी बड़ी मुसीबत

समय पर इलाज और लोगों की इस मदद से घायल केयेराम की जान बच पाई. इस दौरान घायल को लेकर नदी पार करते गांव वालों का वीडियो भी तेजी से वायरल हो रहा है.  गट्टाकाल के सरपंच पीलूराम उसेंडी ने बताया कि शनिवार को अबूझमाड़ के लोग एक घायल व्यक्ति को लेकर गांव पहुंचे थे. जानकारी मिलते ही उप सरपंच रामनाथ के साथ उन्होंने डीजल और ट्रैक्टर की व्यवस्था की और घायल को संबलपुर की मिडचे नदी तक पहुंचाया. वहां से संजीवनी वाहन को फोन कर घायल को कोयलीबेड़ा के अस्पताल में भर्ती कराया गया.

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कब बदलेंगे कांकेर जिले के हालात

यह कोई पहला मामला नहीं है, जब लोग खाट के सहारे कंधे पर लादकर लंबी दूरी तय कर नदी-नालों को पार करके इलाज के लिए जा रहे हैं. जिले के अंदरूनी इलाकों से इस तरह की तस्वीरें कई बार सामने आ चुकी हैं. लेकिन सवाल आज भी वहीं है कि आखिर इन इलाकों में विकास के नाम पर सड़कों, पुल-पुलिया का निर्माण कब होगा ? आखिर कब इन गांवों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और अन्य सुविधाएं मिल पाएंगी ? यह सवाल आज भी बना हुआ है. 

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