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कैसे स्वामी सदानंद महाराज ने आदिवासियों को सनातन धर्म में पिरोये रखने का किया काम?

सिद्ध आश्रम बेलगहना से जुड़े स्वामी सदानंद महाराज ऐसे संत रहे जिन्होंने अविभाजित बिलासपुर जिले के आदिवासी अंचल में सनातन हिंदू धर्म की ध्वजा लहराई और आदिवासियों को सनातन धर्म में पिरोये रखने का काम किया.

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कैसे स्वामी सदानंद महाराज ने आदिवासियों को सनातन धर्म में पिरोये रखने का किया काम?
गौरेला पेंड्रा मरवाही:

ब्रह्मलीन श्री श्री 1008 श्री स्वामी सदानंद महाराज का शनिवार, 9 दिसंबर को 13वीं निर्वाण दिवस मनाया जा रहा है. 12 वर्ष पहले 9 दिसंबर के ही दिन स्वामी सदानंद महाराज ने सिद्ध आश्रम बेलगहना में समाधि ली थी. बता दें कि स्वामी सदानंद महाराज ने आदिवासी अंचल गौरेला पेंड्रा मरवाही में धर्म ध्वजा फहरा कर आदिवासियों को सनातन धर्म में पिरोने का काम किया है. 

आदिवासी समाज को सनातन धर्म को एक साथ जोड़ने का किया काम

मूल रूप से सिद्ध आश्रम बेलगहना से जुड़े स्वामी सदानंद महाराज ऐसे संत रहे जिन्होंने अविभाजित बिलासपुर जिले के आदिवासी अंचल खासकर गौरेला, पेंड्रा, मरवाही और केंदा, रतनपुर, बेलगहना क्षेत्र में सनातन हिंदू धर्म की ध्वजा लहराई. मानस तीर्थ सोनमुड़ा पेंड्रा के संस्थापक संत श्री श्री 1008 श्री प्रकाशानंद महाराज से दीक्षा प्राप्त कर स्वामी सदानंद महाराज ने विशाल आदिवासी समाज को एक सूत्र में पिरो कर उन्हें सनातन धर्म से जोड़े रखने में अपना पूरा जीवन लगा दिया. संत शिरोमणि सदानंद महाराज का ही प्रभाव रहा कि आज उनके शिष्यों की संख्या हजारों में हैं और ये सभी आदिवासी समाज के साथ-साथ किसान परिवार के थे.

शिष्यों और भक्तों में नहीं करते थे भेदभाव

सोन नदी के उद्गम स्थल मानस तीर्थ स्थल सोनमुड़ा पेंड्रा में हर साल आषाढ़ गुरु पूर्णिमा और माघ पूर्णिमा के मौके पर आदिवासी समाज मेला पर्व का आयोजन किया जाता हैं, जिसमें सदानंद महाराज के दर्शन के लिए दूरदराज गांवों और वन क्षेत्रों के लोग पैदल चलकर और  बैल गाड़ियों में बैठकर पहुंचते थे और स्वामी सदानंद महाराज के दर्शन करते थे. दरअसल, उन दिनों आवागमन के साधनों का अभाव था. सड़कें कहीं-कहीं ही बनी थी. साइकल भी किसी किसी को नसीब होती थी. हालांकि स्वामी सदानंद महाराज का स्वभाव ऐसा था कि वो कभी भी अपने शिष्यों और भक्तों में भेदभाव नहीं किए.

गुरु और माघ पूर्णिमा मेले पर मानस तीर्थ सोनमुड़ा पहुंचते थे स्वामी सदानंद महाराज

यहां पहुंचने वाले शिष्यों और भक्तों की संख्या चाहे सैकड़ों में हो या हजारों में, सभी के लिए खाने पीने का प्रबंधन सदानंद  महाराज ही किया करते थे. वैसे तो सदानंद महाराज सिद्ध आश्रम बेलगहना में रहते थे जो उनकी मूल तपोभूमि थी, लेकिन खास पर्वों यानी कि गुरु पूर्णिमा और माघ पूर्णिमा मेले पर वो मानस तीर्थ सोनमुड़ा में 15 दिन पहले पहुंच जाते थे और  समिति के सभी सदस्यों एवं भक्तों को एक सूत्र में जोड़कर पर्व के आयोजन को सफल बनाते थे.

आषाढ़ पूर्णिमा और माघ पूर्णिमा में सोनमुड़ा मानस तीर्थ में आयोजित होने वाले रामायण और भजन में गायक मंडली की लाइन लगी रहती थी. शास्त्रीय गायन आधारित अत्यंत स्तरीय कार्यक्रम आयोजित होता था. इसी तरह चैत्र नवरात्रि पर्व पर वे श्री सिद्ध गणेश दादा कारी आम आश्रम में पहुंचते थे और यहां परंपरागत रूप से आयोजित होने वाले नवधा रामायण को सफलतापूर्वक संपन्न कराते थे.

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शोध किए हुए पारा से किया था शिवलिंग का निर्माण

शिरोमणि सदानंद महाराज को पारा शोधन प्रक्रिया का ज्ञान था, लेकिन शोधन प्रक्रिया की विद्या होने के बावजूद भी उन्होंने कभी इसे धन कमाने का साधन नहीं बनाया. अपने शोध किए हुए पारा से उन्होंने एक शिवलिंग का निर्माण किया था जो आज भी सिद्धाश्रम बेलगहना में स्थित है.

स्वामी सदानंद योग विद्या भी जानते थे. योग विद्या को लेकर स्वामी सदानंद महाराज के बारे में अनेक किस्से प्रचलित हैं. उनका प्रभामंडल कुछ ऐसा था कि जन सामान्य के अलावा इलाके के राजनेता भी उनके नतमस्तक रहते थे. स्वामी सदानंद महाराज  सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के अलावा अंधविश्वास के उन्मूलन के लिए भी काफी जन जागरूकता फैलाई थी. सिद्ध पुरुष होने के बावजूद भी उनकी सरलता, सहजता, अनुकरणीय रही है. सनातन हिंदू धर्म परंपरा में गुरु शिष्य और आश्रम परंपरा का जितना अच्छा निर्वहन स्वामी सदानंद महाराज ने एक संत के रूप में किया है ऐसा देखने में कम ही मिलता है.

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