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Elephant Death : इंसानी क्रूरता से हार गया 'नन्हा हाथी', पोटाश बम के विस्फोट से आई थी गंभीर चोटें

Elephant Death In Gariyaband Udanti Sita River : इंसानी क्रूरता की वजह से आज नन्हे हाथी ‘अघन’ की मौत हो गई. 30 दिन का संघर्ष और 10 दिन का अकेलापन नहीं झेल पाया. 

Elephant Death : इंसानी क्रूरता से हार गया 'नन्हा हाथी', पोटाश बम के विस्फोट से आई थी गंभीर चोटें
Elephant Death : इंसानी क्रूरता से हार गया 'नन्हा हाथी', पोटाश बम के विस्फोट से आई थी गंभीर चोटें.

CG  Gariyaband  Udanti Sita River Forest : गरियाबंद उदंती सीता नदी अभ्यारण के जंगलों में इंसानी क्रूरता और कुदरत की मार झेलते हुए नन्हा हाथी ‘अघन' जिंदगी और मौत के बीच एक लंबी जंग हार गया. अपनी मां और दल से बिछड़ने का दर्द और पोटाश बम के विस्फोट से हुई गंभीर चोटें, दोनों ही उसकी मौत का कारण बन गए.वन विभाग और वाइल्ड लाइफ की टीम ने अघन को बचाने के लिए पिछले एक महीने से हर संभव प्रयास किया. विशेषज्ञ डॉक्टरों ने लगातार उसकी चोटों का इलाज किया और उसे खाना खिलाने की कोशिश की. लेकिन आखिरकार 30 दिन की जंग के बाद अघन ने दम तोड़ दिया.

पोटाश बम से घायल होने के बाद अघन 20 दिनों तक अपने दल के साथ रहा. आखिरी के 10 दिन दल ने नन्हे हाथी को अपने से अलग कर दिया था. वन विभाग की टीम अघन की मौत की वजह उसकी चोट के साथ-साथ उसका अकेलापन भी बता रही है.

मां से बिछड़ने का दर्द और इंसानी क्रूरता का वार

अघन महज कुछ महीने का था, जब उसे अपनी मां और दल से अलग कर दिया गया. इंसानों द्वारा लगाए गए पोटाश बम ने उसकी जीभ के नीचे के हिस्से को बुरी तरह जख्मी कर दिया था. अकेलेपन और दर्द के साथ जी रहे इस नन्हे जीव की तकलीफ को शब्दों में बयान करना मुश्किल है.

'परिवार का सदस्य खो दिया'

उदंती सीता नदी के उपनिदेशक ने बताया कि अघन की मौत से टीम में मायूसी का माहौल है. उन्होंने कहा, “अघन को बचाने के लिए हमने हर संभव प्रयास किया, लेकिन उसकी हालत इतनी गंभीर थी कि हम उसे नहीं बचा सके। ऐसा लग रहा है जैसे हमने अपने परिवार का सदस्य खो दिया हो.”

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जंगल और इंसानी टकराव का शिकार होते वन्यजीव

अघन की मौत सिर्फ एक नन्हे हाथी की कहानी नहीं, बल्कि जंगल और इंसान के बीच लगातार बढ़ रहे टकराव का प्रतीक है. इंसानी स्वार्थ और जंगलों में फैलते खतरों ने वन्यजीवों के अस्तित्व को चुनौती दी.अघन अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने जंगलों और उनके मासूम निवासियों के लिए वाकई कुछ कर पा रहे हैं?

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