क्या हथियार छोड़ राजनीति में आएंगे माओवादी? नक्सलियों की चिट्ठी पर विजय शर्मा को है शक

नक्सलियों ने अब शांति का राग अलापना शुरु कर दिया है. प्रतिबंधित माओवाद संगठन ने अब सक्रिय राजनीति में आने के संकेत दिए हैं. संगठन के नेताओं ने हथियार छोड़कर शांति वार्ता की इच्छा जताई है. इसके लिए संगठन की ओर से बाकायदा चिट्ठी भी जारी की गई है. अहम बात ये भी है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इस कदम का स्वागत किया है.

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Chhattisgarh Naxal peace talks: देश में आंतरिक सुरक्षा को लेकर सबसे बड़ी चुनौती बने नक्सलियों ने अब शांति का राग अलापना शुरु कर दिया है. प्रतिबंधित माओवाद संगठन ने अब सक्रिय राजनीति में आने के संकेत दिए हैं. संगठन के नेताओं ने हथियार छोड़कर शांति वार्ता की इच्छा जताई है. इसके लिए संगठन की ओर से बाकायदा चिट्ठी भी जारी की गई है. अहम बात ये भी है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इस कदम का स्वागत किया है. हालांकि छत्तीसगढ़ के उप-मुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने इस चिट्ठी की सच्चाई पर सवाल उठा दिया है. उन्होंने एनडीटीवी से खास बातचीत में इस पर शंका जाहिर की है.

अमित शाह ने किया स्वागत, मगर...

माओवादियों ने अपनी चिट्ठी में कहा है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों के कहने पर अब बंदूकें छोड़ रहे हैं. उनका कहना है कि वे अब जनता के मुद्दों पर दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर काम करेंगे. इस चिट्ठी पर गृहमंत्री अमित शाह ने भी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि अगर माओवादी बिना किसी शर्त के हथियार छोड़ते हैं और लोकतंत्र में शामिल होते हैं, तो उनका स्वागत है.

विजय शर्मा को शक, जांच होगी चिट्ठी की

लेकिन इस पूरी कहानी में एक ट्विस्ट भी है. छत्तीसगढ़ के उप-मुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने इस चिट्ठी की सच्चाई पर सवाल उठा दिया है.

उन्होंने एनडीटीवी से खास बातचीत में कहा कि "पहले तो इस चिट्ठी की सत्यता की जांच करनी होगी, क्योंकि इसकी भाषा और लिखने का तरीका पहले माओवादियों द्वारा जारी किए गए पत्रों से बिल्कुल अलग है." यानी, विजय शर्मा को शक है कि ये चिट्ठी फर्जी भी हो सकती है.

उन्होंने कहा कि माओवादियों की कथनी और करनी में बहुत फर्क होता है, इसलिए पहले जांच होगी. उन्होंने यह भी कहा कि अगर वे सच में हथियार छोड़ना चाहते हैं, तो छत्तीसगढ़ की सरेंडर पॉलिसी का फायदा उठा सकते हैं और राजनीति में आ सकते हैं. हालांकि माओवादियों का यह कदम भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है. इसे दशकों से चली आ रही हिंसा को समाप्त करने की दिशा में एक सकारात्मक पहल मानी जा रही है. अब आने वाले वक्त में ही पता चलेगा कि नक्सल संगठन वाकई अपने कहे को लेकर गंभीर हैं या नहीं और इस पर सरकार का रवैया क्या होता है?

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