नक्सली अपने सबसे सेफ ठिकाने में कैसे हुए फेल ? जवानों ने NDTV के साथ निकाली 15km लंबी तिरंगा यात्रा

सुरक्षाबलों की चौकसी और प्रशासन के विकास कार्यों की वजह से छत्तीसगढ़ में नक्सली अपने कथित MMC कॉरिडोर में बुरी तरह से फेल हो रहे हैं. नक्सली इस कॉरिडोर के रास्ते झारखंड में जाना चाहते हैं पर उनके अरमान धरे के धरे रह गए हैं...आखिर सुरक्षा बलों ने ये कामयाबी कैसे हासिल की...पढ़िए इस रिपोर्ट में

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Naxalites in Chhattisgarh: जानकार बताते हैं कि विकास हो तो नक्सलियों का विस्तार नहीं हो सकता...विकास के हथियार से नक्सलियों को न सिर्फ बैकफुट पर लाया जा सकता है बल्कि खत्म भी किया जा सकता है. कुछ ऐसा ही हुआ है छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh News) में नक्सलियों के MMC कॉरिडोर के साथ...MMC कॉरिडोर का मतलब है महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ (Maharashtra-Madhya Pradesh-Chhattisgarh)के सरहदी इलाके...दरअसल बस्तर में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव की वजह से इन दिनों नक्सली MMC कॉरिडोर (MMC corridor) में सुरक्षित ठिकाना तलाश रहे हैं.लेकिन समय रहते सरकार और सुरक्षा बलों ने उन इलाकों में अपनी चौकसी बढ़ाकर नक्सलियों के विस्तार नीति के मंसूबे को धराशायी कर दिया है. आलम ये है कि जवानों ने 15 अगस्त के दिन NDTV की टीम के साथ इस पूरे इलाके में 15 किलोमीटर लंबी तिरंगा यात्रा (Tiranga Yatra) निकाली. ये यात्रा कवर्धा के पुलिस कप्तान डॉ अभिषेक पल्लव (Dr. Abhishek Pallav) के नेतृत्व में मध्य प्रदेश के सरहदी इलाके बेंदा से बोहनाखुदरा तक निकली. ऐसे में ये जानना दिलचस्प हो जाता है कि आखिर नक्सलियों को इतनी बुरी मात कैसे मिली...क्या था नक्सलियों का प्लान और हमारे जवानों ने कैसे  उनकी नीति फेल हो गई? पहले जान लेते हैं कि नक्सली क्या कर रहे हैं और सरकारी कोशिश कैसे उन पर बीस साबित हो रही है.... 

 कवर्धा के SP डॉ पल्लव बताते हैं कि इन गावों में विकास हुआ है..केन्द्र और राज्य की संयुक्त नीति का लाभ सुरक्षा बलों को मिल रहा है. समय रहते छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों में चौकसी और सड़क, स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सरकारी राशन दुकान, मोबाइल नेटवर्क टावर जैसी मूलभूत सुविधाएं बढ़ाई गईं, जिससे नक्सली बैकफूट पर आ गए और उनकी एमएमसी विस्तार नीति फेल हो गई. 

जवानों की चुनौती

नक्सलियों से लड़ने के लिए मोर्चा संभाल रहे जवानों को दूसरी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है.बेंदा कैंप में जवान टेंट में ही रहते हैं. करीब 150 स्क्वायर फीट के एक टेंट में तीन जवानों का बिस्तर, रहने और सामान रखने की व्यवस्था होती है. यहां ड्यूटी कर रहे महेश ध्रुव बताते हैं कि ये पहाड़ी और जंगली इलाका है, ऐसे में खासकर बारिश के दिनों में सांप,बिच्छू,मच्छर और जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है. जब भी नाइट ड्यूटी पर निकलते हैं तो फूल बूट और मच्छर से बचाने वाली क्रीम लगाते हैं. टेंट में हमेशा मच्छरदानी में ही रहना पड़ता हैं. जाहिर है समस्याएं कई हैं, लेकिन वो जज्बे पर भारी नहीं पड़ती हैं.

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कवर्धा: नक्सलियों के MMC कॉरिडोर में 15 अगस्त को सुरक्षाबलों ने निकाली 15 किलोमीटर लंबी तिरंगा यात्रा.

15 हजार से ज्यादा जवान तैनात

मैकल पहाड़ी श्रृंखला से घीरे एमएमसी कॉरिडोर घने जंगलों वाला इलाका है. इसका फायदा ही नक्सली उठाना चाहते थे. कबीरधाम जिले के चिल्फी पुलिस थाना प्रभारी उमाशंकर राठौर का कहना है कि इलाके भौगौलिक स्थिति का जो फायदा नक्सली उठाना चाहते थे, वहां समय रहते सुरक्षा बलों का कैंप स्थापित हो गए, जिससे अब लाभ पुलिस को मिल रहा है. 

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 सबसे सुरक्षित ठिकाने में बैकफुट पर कैसे आए नक्सली?

नक्सल संगठन में डीवीसी (डिवीजनल कमेटी मेंबर) रहे सरेंडर नक्सली करन का कहना है कि साल 2017-18 में अबूझमाड़ से इस इलाके में मुझे भेजा गया. हमने विस्तार करने की पूरी कोशिश की, लेकिन इस इलाके और बस्तर के इलाके और लोगों के रहन-सहन में काफी फर्क है. यहां अंदरुनी इलाकों में भी लोग मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं.सड़क,बिजली,प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जैसी सुविधाएं हैं,लोगों के पास गाड़ियां हैं. ऐसे में काफी कोशिश के बाद भी जंगल में एनकाउंटर के खतरे और सुविधाओं के अभाव में लोग हमारे साथ रहने के लिए तैयार नहीं होते. इस इलाके में स्थानीय कैडर जोड़ना एक बड़ी चुनौती है. साथ ही फोर्स का दबाव बढ़ने के कारण सरेंडर बढ़ गए, जिससे विस्तार नीति बैकफुट पर है.

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कवर्धा में विकास की रौशनी पहुंच रही है. गावों में शिक्षा के इंतजाम दुरुस्त हो रहे हैं. इस वजह से भी नक्सलियों की दाल नहीं गल रही है

एमएमसी इलाके में नक्सली अपना विस्तार करना चाहते थे, वहां के टॉप कैडर सरेंडर कर चुके हैं, पुलिस का दावा है कि साल 2016-17 में जितने नक्सली इस इलाके में आए, उनमें से 15 प्रतिशत ही अब सक्रिय हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर संगठन से कैडर का मोह भंग क्यों हो रहा है? हाल ही में नक्सल संगठन का साथ छोड़ मुख्यधारा में आईं राजे बताती हैं कि वो मूलत: बीजापुर जिले के एक गांव की रहने वाली हैं. इस इलाके में 2017 से सक्रिय थीं. दीपक तालतुमड़े के नेतृत्व में सक्रिय थीं, लेकिन उनके साथ के कई साथियों का एनकाउंटर हो गया, जिससे उनपर भी जान का खतरा था, इसलिए सरेंडर कर दी. अहम ये भी है कि संगठन में डीवीसी रह चुके सरेंडर नक्सली दिवाकर भी तिरंगा यात्रा में शामिल हुए. दिवाकर बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में संगठन में आपसी मतभेद भी बढ़ा है. लीडरशीप कर रहे कुछ लोग सिर्फ अपनी चलाना चाहते हैं, जिससे संगठन के प्रति काम कर रहे लोगों का मोह भंग हो रहा है. 

कवर्धा: जंगलों में ऐसे कैंप में रहते हैं सुरक्षा बल. इन कैंपों की वजह से नक्सलियों को पैर पसारने की जगह नहीं मिली.

ग्रामीणों का भरोसा कैसे जीत रहे?

बेंदा कैंप के कमांडर एनएस यादव का कहना है कि ग्रामीणों पर भरोसा बनाने के लिए वहां सिविक एक्शन प्लान के तहत काम कर रहे हैं. ग्रामीणों को सुविधाओं के साथ ही हर संभव मदद करने की कोशिश की जाती है. समय-समय पर हेल्थ कैंप, खेल प्रतियोगिताएं, संस्कृति और परंपरा के अनुसार आयोजन कराते रहते हैं. युवाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए प्रेरित किया जाता रहा है. ग्रामीण भोपाल टेकाम कहते हैं कि गांव में हाई स्कूल की सुविधा है, लेकिन हमारी मांग हायर सेकेंडरी स्कूल और उसके बाद आस-पास के इलाके में कॉलेज की है. कैंप स्थापित इलाकों के गांव में अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं.
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