
Kanker Ecosystem: लगातार सिमटते जंगलों के दायरों से छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में मानव और वन्यप्राणियों के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है. इन दिनों इंसानों की आबादी वाले इलाके में लगातार जंगली जानवर पहुंच रहे है, जिससे जंगली जानवरों के हमले से किसी की जान जा रही है, तो सैकड़ों घायल हो चुके हैं.
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इंसानों के जान और माल दोनों को नुकसान पहुंचा रहे जंगली भालू
ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कांकेर जिले में लगातार सिमटते जंगल क्षेत्र से जंगली जानवर अब जंगलों से निकल कर रिहायसी इलाकों में पहुंच रहे है और आए दिन लोगों का शिकार कर रहे हैं. यह संघर्ष शहर और ग्रामीण इलाकों में देखा जा रहा है, जहां जंगली भालू, तेंदुआ लोगों के बीच पहुंच रहे है. जो इंसानों के जान और माल दोनों को नुकसान पहुंचा रहे है.
घर में घुसा तेंदुआ, मचा हड़कंप
— NDTV MP Chhattisgarh (@NDTVMPCG) March 5, 2025
कांकेर के दुधावा में तेंदुआ मकान में घुसकर ग्रामीणों में दहशत फैलाता रहा, वन विभाग का जाल भी काम नहीं आया. पिछले कुछ महीनों में तेंदुआ 3 से अधिक लोगों पर हमला कर चुका है, जिससे सरोना वन परिक्षेत्र में भय का माहौल है.#Kanker | #ChhattisgarhNews pic.twitter.com/1SM3uvTTcU
मैदानी इलाके में आए भालू ने डिप्टी रेंजर को उतार मौत के घाट
गौरतलब है सप्ताह भर पूर्व एक डिप्टी रेंजर जगंल से भटकर मैदानी इलाके में आए एक भालू के हमले में गंभीर रूप से घायल हो गया था, जिसके बाद उसकी मौत हो गई. इसी तरह एक पिता पुत्र को भी जंगली भालू ने शिकार बनाते हुए मौत के घाट उतार दिया. तेंदुए राह चलते लोगो पर हमले कर रहे हैं, जिससे जिले के लोग हलकान हैं.
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भालू और तेंदुए के लिए अनुकूल है पहाड़ी जंगलों से घिरा कांकेर शहर
इंसान और जंगली जानवरों के बीच बढ़ते संघर्ष पर प्रतिक्रिया देते हुए कांकेर वन मंडल के डीएफओ आलोक वाजपेयी का कहना है कि पहाड़ी जंगलों से घिरे कांकेर में भालू और तेंदुए के रहवास के लिए अनुकूल वातावरण है. जिसकी वजह से इनका डेरा इस इलाके में ज्यादा दिखाई देता हैं.
जानवरों के हमले से 70 से अधिक घायल और 11 लोग गंवा चुके हैं जान
कांकेर वन मंडल से मिले एक आंकड़े का अनुसार साल 2022 से 2025 अब तक कुल 11 लोगों ने तेंदुए और भालू के हमले से अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं, साल 2022 से 2025 अब तक 70 से अधिक लोग भालू और तेंदुए के हमले से बुरी तरह घायल हो चुके है. कांकेर में बिगड़ते इकोसिस्टम के चलते लोगों के जीवन खतरे में आ गया है.
भालूओं के रहवास के लिए करोड़ों की परियोजना का बुरा हाल
उल्लेखनीय है जंगलों में फलदार वृक्ष के कमी के चलते जंगल में भालूओं के रहवास के लिए साल 2014 -15 में करोड़ों खर्च शुरू की गई जामवंत परियोजना का भी हाल बुरा है. देख-रेख के अभाव में फलदार वृक्ष सूख कर गिर चुके है. वहीं, निर्मित तालाब सूख रहे है, जिसके चलते जंगली जानवर इंसानों की बस्ती में पहुंच रहे है और दहशत का पर्याय बन गए हैं.
वन विभाग के प्रयास नाकाफी, जंगल में नहीं रूक रहे जानवर
वन विभाग का कहना है कि बहुत से ग्रामीण इलाकों की बसाहट वन सीमा से सटी हुई है. जिसकी वजह से दोनों के बीच द्वंद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है. ऐसा नहीं है कि जंगलो में खाने-पीने की व्यवस्थाएं नहीं है. पर्याप्त मात्रा में फलदार वृक्ष और पीने के पानी की व्यवस्था है. विभाग इन्हें रोकने लगातार प्रयास कर रही है.