छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के कुनकुरी में स्थित एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च क्रिसमस 2025 पर भव्य रोशनी और आस्था के रंग में रंग गया है. कुनकुरी महागिरजाघर में क्रिसमस की पूर्व संध्या से देर रात तक विशेष प्रार्थना के बाद क्रिसमस पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. जिले के सभी चर्चों के साथ ही कुनकुरी महागिरजाघर में प्रभु यीशु के जन्मोत्सव की विशेष तैयारियां की गई हैं.
शाम से ही शहर और आसपास के गांवों से मसीही समाज के लोग प्रार्थना के लिए एकत्र हुए. बुधवार रात करीब 10.30 बजे से कार्यक्रम शुरू हुआ. प्रार्थना और मिस्सा पूजा के बाद मध्य रात्रि 12 बजे प्रभु यीशु के जन्म के साथ ही बालक यीशु को चरनी से निकालकर उनका चुमावन किया गया. इसके बाद लोगों ने एक दूसरे को क्रिसमस की बधाइयां दीं. कुनकुरी में 10 से 15 हजार लोगों के जुटने की संभावना रही. यहां बिशप स्वामी एमानुएल केरकेट्टा ने अनुष्ठान कराया.
बता दें कि रोजरी की महारानी चर्च की स्थापना वर्ष 1962 में की गई थी. इसके बाद से ही मसीही समाज के लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई और हर साल क्रिसमस पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. क्रिसमस से करीब एक सप्ताह पहले से ही कुनकुरी में जगह जगह उत्सव का माहौल देखने को मिलने लगता है. जिले के कुनकुरी सहित शिक्षा और स्वास्थ्य संस्थानों में भी क्रिसमस के मौके पर विशेष प्रार्थनाएं आयोजित की जा रही हैं. क्रिसमस से पहले ही यहां चरनी तैयार कर फूलों और रंग बिरंगी लाइटों से सजावट की गई है.
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निर्माण में 17 साल का समय लगा
कुनकुरी का महागिरजाघर न सिर्फ जशपुर बल्कि देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं और ईसाई धर्मावलंबियों की आस्था का बड़ा केंद्र है. इस चर्च के निर्माण की परिकल्पना बिशप स्तानिसलाश ने बेल्जियम के प्रसिद्ध वास्तुकार कार्डिनल जेएम कार्सि एसजे की मदद से की थी. इसके निर्माण में करीब 17 साल का समय लगा. कुनकुरी चर्च की नींव वर्ष 1962 में रखी गई थी. उस समय कुनकुरी धर्मप्रांत के बिशप स्टानिसलास लकड़ा थे.
केवल नींव तैयार करने में लगे दो साल
इस विशाल भवन को एक ही बीम के सहारे खड़ा करने के लिए नींव को विशेष रूप से डिजाइन किया गया था. केवल नींव तैयार करने में ही दो साल लगे. नींव के बाद भवन का निर्माण 17 वर्षों में पूरा हुआ. महागिरजाघर में सात अंक का विशेष महत्व है. यहां सात छत और सात दरवाजे हैं, जिन्हें जीवन के सात संस्कारों का प्रतीक माना जाता है.
एक साथ 10 हजार लोगों के बैठने की क्षमता
क्रिसमस के अवसर पर यहां प्रभु यीशु मसीह को स्मरण किया जाता है और उनके जन्म का उत्सव मनाया जाता है. कुनकुरी महागिरजाघर के साथ ही आसपास के कस्बों और दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में भी क्रिसमस की खुशी देखने को मिल रही है. मांदर की थाप पर आदिवासी समाज के लोग पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करते नजर आ रहे हैं. आपको बता दें कि इस चर्च में एक साथ 10 हजार से अधिक लोगों के बैठने की क्षमता है, लेकिन क्रिसमस के दौरान इससे कहीं अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती रही है. हर साल क्रिसमस के अवसर पर यहां आयोजित समारोह में देश विदेश से चार से पांच लाख लोग पहुंचते हैं.
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