Hareli Tihar 2025: छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार 'हरेली तिहार' क्यों है खास? जानिए पूजा से लेकर पकवान तक

Hareli Tihar 2025: हरेली मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है, जो ज़मीन और जीवन को सहारा देने वाले औज़ारों के प्रति कृतज्ञता की भावना को उजागर करता है. परंपरागत रूप से इस त्योहार को सांप्रदायिक संबंधों को मज़बूत करने और कृषि एवं प्राकृतिक दुनिया की देखरेख करने वाली दिव्य शक्तियों का सम्मान करने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है. सावन माह की अमावस्या पर होने वाली हरेली त्यौहार को साल की पहली त्यौहार के रूप में मनाते हैं.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
Hareli Tihar 2025: हरेली तिहार

Hareli Tihar 2025: भारत विविधताओं का देश है. भारत की अनेकताओं में कुछ त्यौहार ऐसे हैं ,जो सारे देश को एक साथ जोड़ते हैं. वहीं छत्तीसगढ़ संस्कृति में त्यौहारों, पर्वो का विशेष महत्व है. इन त्यौहारों के क्रम में पहला त्यौहार हरेली का है . इसलिये कहा गया छत्तीसगढ़ संस्कृति परम्परा का त्यौहार हरेली. हरेली त्यौहार को श्रावण मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या में मनाया जाता है . हरेली त्यौहार किसान और सभी छत्तीसगढ़वासियो का त्यौहार है. हरेली मतलब प्रकृति के चारों तरफ हरियाली से है. किसान खेत में जुताई-बोआई, रोपाई, बियासी के कार्य पूर्ण करके इस त्यौहार का मनाता है. हरेली त्योहार की जड़ें छत्तीसगढ़ की समृद्ध कृषि विरासत में हैं, जहाँ इसे लंबे समय से कृषि देवताओं के प्रति सम्मान के रूप में मनाया जाता रहा है. मानसून की शुरुआत में मनाया जाने वाला हरेली, बुवाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है और लोगों और उनकी ज़मीन के बीच गहरे बंधन को दर्शाता है. पीढ़ियों से चला आ रहा यह त्यौहार पारंपरिक रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों को कायम रखता है और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान की एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है.

प्रकृति की पूजा का विधान

हरेली मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है, जो ज़मीन और जीवन को सहारा देने वाले औज़ारों के प्रति कृतज्ञता की भावना को उजागर करता है. परंपरागत रूप से इस त्योहार को सांप्रदायिक संबंधों को मज़बूत करने और कृषि एवं प्राकृतिक दुनिया की देखरेख करने वाली दिव्य शक्तियों का सम्मान करने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है. सावन माह की अमावस्या पर होने वाली हरेली त्यौहार को साल की पहली त्यौहार के रूप में मनाते हैं. लगातार बारिश से खेतों की शुरुआती जुताई-रोपाई का काम होने पर खेतों में हरियाली बरकरार रहने के लिए, इस त्यौहार को मनाया जाता है. 

कृषि औजारों की पूजा

छत्तीसगढ़ के किसान हरेली त्यौहार के दिन गाय बैल भैंस को भी साफ सुथरा कर नहलाते हैं. अपनी खेती में काम आने वाले औजारों को हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को धोकर और घर के बीच आंगन में रख दिया जाता है या आंगन के किसी कोने में मुरूम बिछाकर पूजा के लिए सजाते हैं और उसकी पूजा की जाती है साथ ही अपने कुलदेवता की भी पूजा की जाती है .  

Advertisement

घर-घर बनते पकवान 

माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं और कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला का भोग लगाया जाता है. अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं के साथ पूजा करते हैं. हरेली के बच्चे गेंड़ी का आनंद लेते हैं. इस अवसर पर सभी के घरों में विशेष प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं. चावल के आटे से बनी चीला रोटी को इस दिन लोग खूब चाव से खाते हैं. कोई इसे नमकीन बनाता है, तो कोई इसे मीठा भी बनाते हैं. यह खाने वालों की पसंद के ऊपर होता है. इस तरह से यह त्यौहार परम्पराओं से भरी हुई है. हरेली तिहार के दिन सभी लोग अपने–अपने दरवाजा पर नीम टहनी तोड़ कर टांग देते है और इसी बहुत गेंड़ी खेल का आयोजन शुरु हो जाता है. हरेली तिहार के दिन सुबह से ही बच्चे से लेकर युवा तक 20 या 25 फिट तक गेंडी बनाया जाता है. उसी दिन सभी युवा एवं बच्चे गेंडी चढ़ते है गावं में घूमते है. बच्चों और युवाओं के बीच गेंड़ी दौड़ प्रतियोगिता भी की जाती है.

अनिष्ट की रक्षा का पर्व

हरेली तिहार के दिन पूजा करने से पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित रहता है और फसल उगती है तो किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है. हरेली तिहार मनाने से फसल को हानिकारक किट तथा अनेको बीमारिया नही होती है इसलिए हरेली तिहार मनाया जाता है. हरेली त्यौहार के दौरान छत्तीसगढ़ के लोग अपने-अपने खेतों में भेलवा पेड़ की शाखाएँ लगाते हैं. वे  अपने घरों के प्रवेश द्वार पर  नीम के पेड़ की शाखाएँ भी लगाते हैं. नीम में औषधीय गुण होते हैं जो बीमारियों के साथ-साथ कीड़ों को भी रोकते हैं.  लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है. हरेली पर्व में, गांव और शहरों में नारियल फेंक प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. सुबह पूजा-अर्चना के बाद, गांव के चौक-चौराहों पर युवाओं की टोली एकत्रित होती है और नारियल फेंक प्रतियोगिता खेली जाती है. इस प्रतियोगिता में, लोग नारियल को फेंककर दूरी का मापन करते हैं. नारियल हारने और जीतने का सिलसिला रात के देर तक चलता है, और यह एक रंगीन और आनंदमय गतिविधि होती है.

Advertisement

यह भी पढ़ें : छत्तीसगढ़ में आज से शुरू हो जाएगा हरेली तिहार के त्योहार का दौर, इस दौरान किसान करेंगे अपने कृषि औजारों की पूजा

यह भी पढ़ें : Wild Elephant Attack: रायगढ़ में जंगली हाथियों का आतंक; हमले में एक बालक समेत तीन की मौत

Advertisement

यह भी पढ़ें : Bhopal Drug Case: ड्रग्स के लिए जिम-क्लब की लड़कियों का इस्तेमाल; पिस्टल से डराया, नशे का जाल ऐसे फैलाया

यह भी पढ़ें : Mahakal Darshan: बीजेपी विधायक के बेटे ने जबरन किया गर्भ गृह दर्शन! कांग्रेस ने जांच कमेटी पर उठाए सवाल