जहां भगवान को भी मिलती है 'मौत की सजा' : बस्तर में है दुनिया की सबसे अनोखी अदालत

छत्तीसगढ़ में एक इलाका ऐसा है जहां जुर्म करने पर इंसानों को तो छोड़िए देवताओं को भी सजा देने की परंपरा है.ये सजा 'मौत की सजा' तक हो सकती है चौंकिए नहीं...ये सच है. दरअसल बस्तर, छत्तीसगढ़ का एक ऐसा इलाका है जहां ये अनोखी परंपरा आज भी कायम है, जो जितनी अद्वितीय है उतनी ही रोचक भी. इस परंपरा में आदिवासी देवताओं पर मुकदमा चलाया जाता है.

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Tribals in Chhattisgarh: आदिवासी भोले होते हैं, सीधे और सरल होते हैं...ये तो हम हमेशा से सुनते,देखते और जानते रहते हैं. इन सीधे-सरल आदिवासियों में कई ऐसी समृद्ध परंपराएं हैं जो बताती हैं कि आदिवासी समुदाय में समानता की भावना कितनी गहरी होती है. तभी तो यहां जुर्म करने पर इंसानों को तो छोड़िए देवताओं को भी सजा देने की परंपरा है.ये सजा 'मौत की सजा' तक हो सकती है. चौंकिए नहीं...ये सच है. दरअसल बस्तर (Bastar News), छत्तीसगढ़ का एक ऐसा इलाका है जहां ये अनोखी परंपरा आज भी कायम है, जो जितनी अद्वितीय है उतनी ही रोचक भी. इस परंपरा में आदिवासी देवताओं पर मुकदमा चलाया जाता है.ये सब होता है कोंडागांव जिले के विशेष क्षेत्र में . यहं भादो जत्रा उत्सव के दौरान वास्तविक जीवन में खुली अदालत में देवताओं पर फैसला सुनाया जाता है. क्या और कैसी ये परंपरा इसका जायजा लिया NDTV की टीम ने.

भगवान को सजा देने वाली अदालत में भाग लेने के लिए जाते आदिवासी समुदाय के लोग
Photo Credit: आयुष श्रीवास्तव

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आमचो बस्तर, किमचो सुंदर...

बस्तर जो देश की सबसे पुरानी बसाहटों में से एक वहां लगभग 70% आदिवासी जनसंख्या निवास करती है, अपने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है. यह इलाका रामायण के दंडकारण्य और महाभारत के कोशल साम्राज्य से लेकर कई ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है. यहां के लोग — गोंड,माड़िया, मुरिया, भतरा,हल्बा और धुरवा — अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और धार्मिक आस्थाओं को न्यायिक प्रणाली के साथ अद्वितीय तरीके से जोड़ते हैं. यहां की जन जातियां अपनी हर समस्या के समाधान के लिए देवी-देवताओं की चौखट पर सर झुकाती हैं. यहां की जन जातियां अपने देवताओं पर असीम आस्था रखती हैं. सदियों से, किसी भी प्राकृतिक विपदा, बीमारी या फसल खराब होने पर लोग ग्राम देवताओं की शरण में जाते हैं. लेकिन बस्तर की इस परंपरा का एक और अनूठा पहलू है – अगर उनके अनुसार देवी-देवता उनकी मदद नहीं करते, तो यहां की जन अदालत उन्हें भी दोषी ठहरा देती है. बस्तर के केशकाल में हर साल भादों महीने में जत्रा उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. यहां की प्रमुख देवी, भंगाराम देवी, नौ परगना के 55 गांवों के हजारों देवी-देवताओं की प्रमुख आराध्य हैं.हर साल भादों के अंतिम सप्ताह में सभी देवी-देवताओं को यहां उपस्थिति दर्ज करानी होती है.

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देवताओं का मुकदमा और फैसला

ये अनोखे मुकदमे भंगाराम देवी मंदिर में होते हैं, जहां न्यायाधीश स्वयं भंगाराम देवी होती हैं. यहां अभियुक्त देवताओं का प्रतीकात्मक रूप से प्रतिनिधित्व किया जाता है. तीन दिन की इस न्यायिक प्रक्रिया में मुर्गी को गवाह के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो धार्मिक रूप से गवाही देती हैं. यदि देवता दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें निर्वासित कर दिया जाता है, जहां उनका स्थान मंदिर के सम्मानित स्थल से अलग होता है.केशकाल के भांगाराम देवी मंदिर व पास के खुले मैदान में जुटे हजारों फरियादियों के बीच हमारी टीम ने कई सवालों के जवाब तलाशने शुरू किए.......

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सवाल- देवताओं पर अदालती कार्रवाई के लिए क्या कोई विशेष तारीख तय होती है?

आयोजन समिति के सदस्य फरसू सलाम ने बताया ये तीन दिवसीय जात्रा रहता है, भादो के शुक्ल पक्ष से शुरू होता है, तीन दिन तक पूरा कार्यक्रम चलता है. यदि सजा होती है तो फिर भगवान को वहीं रख दिया जाता है.

सवाल- देवताओं पर लगे आरोपों की जांच कौन करता है?

जवाब में इतिहासकार घनश्याम सिंह नाग बताते हैं, "यह परंपरा इस विचार को दर्शाती है कि देवताओं और मनुष्यों के बीच का संबंध परस्पर है. देवता लोगों की रक्षा करते हैं और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, और बदले में लोग उनकी पूजा करते हैं. यदि यह संतुलन बिगड़ता है, तो देवताओं का भी न्याय किया जाता है.

भंगादेवी के मंदिर में आदिवासी समुदाय के लोग अदालती कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए

सवाल- आम आरोपियों की तरह क्या देवी-देवताओं को भी जेल में सुधरने का मौका दिया जाता है?

फरसू सलाम कहते हैं कानूनी भाषा में कहें तो यह एक अदालत है, यहां कनेर पेड़ के नीचे रखकर आरोपी देवी देवताओं को सुधरने का मौका दिया जाता है, जैसे अदालत में भी एक बार सुधरने का मौका दिया जाता है उसी प्रकार, यहां भी मौका दिया जाता है.

सवाल- जेल में भी भगवान अगर नहीं सुधरे तो उनको क्या सजा मिलती है और किस तरह से रखा जाता है?

फरसू सलाम बताते हैं अगर वो सुधर गए तब वापस गांव भेज दिया जाता है, कड़ी जांच होती है और अगर नहीं सुधरे तो आजीवन जेल की सजा दी जाती है, इसको देखकर सोचिए कि वो कैसे रहते होंगे.

सवाल-भगवान को सजा देने वाली भांगादेवी को लेकर क्या मान्यताएं हैं और देवताओं के लिए अदालती कार्रवाई के आयोजन की प्रक्रिया क्या है?

हर साल तीन दिन तक चलने वाले इस खास आयोजन में पहुंचने वाले हर व्यक्ति को समानता के नजरिये से ही देखा जाता है, यहां कोई वीआईपी कल्चर या जाति-धर्म का बंधन नहीं होता

सवाल-आयोजन स्थल पर खाने-पीने की व्यवस्था ग्रामीण खुद करते हैं, इसके लिए कोई चंदा नहीं लिया जाता है

जिन देवताओं को सजा दी जाती है, उनपर चांदी और दूसरे कीमती धातु लगे होते हैं, देवताओं के साथ उन्हें भी खुले में छोड़ दिया जाता है. बावजूद इसके वहां से धातुओं की चोरी नहीं होती.फरसू सलाम एक देवता की ओर इशारा करते हुए कहते हैं वो आंगादेव हैं उनके ऊपर चांदी लगी हुई है, उसको भी नहीं निकाला गया है- चांदी हो या सोना हो, जिस रूप में सजा दी गई है, उसी रूप में यहां फेंक दिया जाएगा, कुछ निकाला नहीं जाएगा. सोना हो, हीरा हो कुछ भी, और यहां से चोरी भी नहीं होती है, अगर कोई चोरी करेगा तो उसको भी सजा दी जाएगी.
बस्तर की संस्कृति, परंपरा व हालात पर बेबाकी से कविताएं लिखने वाली शिक्षिका पूनम वासप इस अनोखी परंपरा को कुछ इस तरह से बयां करती हैं.

ये एक समाजिक व्यवस्था है, जिस तरह समाज में मनुष्यों को सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह करना है, वैसे ही देवताओं की भी जिम्मेदारी बनती है, जैसे हमने देवता से मन्नत मांगी कि इस साल बारिश अच्छी, बिटिया की शादी हो जाए या और कुछ, लेकिन देवता अगर बात नहीं मानते उल्टा कोई तकलीफ देते हैं तो उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए.

 खान देवता की कहानी: मानव रूप में देवत्व

बस्तर की इस अद्भुत न्याय प्रणाली का एक और महत्वपूर्ण पहलू है कि यहां पर मानवों को भी देवता का दर्जा दिया जाता है. खान देवता, जिन्हें 'काना डॉक्टर' के नाम से भी जाना जाता है, इसका एक अद्भुत उदाहरण हैं. स्थानीय निवासी सरजू बताते हैं, "जब माई जी वारंगल से यहां आईं, तो उन्होंने स्थानीय राजा से बसने के लिए जगह मांगी. जिसके बाद उन्हें केशकाल के पहाड़ों के पास जगह दी गई. उनके साथ आए डॉक्टर खान ने उस समय कॉलरा और चेचक जैसी बीमारियों से त्रस्त आदिवासियों की सेवा की." हालांकि डॉक्टर खान नागपुर से थे, लेकिन उन्होंने अपनी निःस्वार्थ सेवा से आदिवासियों के दिलों में जगह बना ली। धीरे-धीरे, लोग उन्हें पूजने लगे और उनके तोरण पर नींबू और अंडे चढ़ाने लगे। उनकी स्मृति में बनी मूर्ति, एक मजबूत छड़ी के रूप में, आदिवासियों की अडिग आस्था का प्रतीक है। आज भी, भंगाराम देवी मंदिर में खान देवता की मूर्ति अन्य पूजनीय देवताओं के साथ स्थापित है. 

देवताओं को लेकर जाते आदिवासी समुदाय के लोग

देवताओं के पुनर्वास और दंड का चक्र

यह वार्षिक मुकदमा न केवल देवताओं को दंडित करता है, बल्कि उन्हें खुद को सुधारने का मौका भी देता है। यदि देवता अपनी गलतियों को सुधार लेते हैं, तो उन्हें वापस पूजा जाता है। लेकिन अगर वे अपने अनुयायियों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते, तो उन्हें सदा के लिए निर्वासित कर दिया जाता है. यह परंपरा आस्था और जिम्मेदारी के बीच एक संतुलन का प्रतीक है. इस प्रक्रिया में, देवताओं को आम अभियुक्तों की तरह न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाता है.अगर किसी देवता ने गांव के लोगों की मदद नहीं की — चाहे वह बीमारी हो, प्राकृतिक आपदा हो, या फसल खराब हो — तो उन्हें इस खुले न्यायालय में जनता के सामने पेश किया जाता है.

वास्तविक गवाह: मुर्गी की गवाही

इस अनोखे न्यायालय में देवताओं के पास वकील नहीं होते, बल्कि उनके स्थान पर जानवर गवाह बनते हैं. एक मुर्गी को प्रतीकात्मक रूप से गवाही के लिए प्रस्तुत किया जाता है. जब गवाही पूरी होती है, तो मुर्गी को मुक्त कर दिया जाता है, जिससे न्याय प्रक्रिया पूरी हो जाती है.

अदालत में पशुओं से गवाही दिलाते आदिवासी समाज के लोग

सुधार और सजा की परंपरा

तीन दिन तक चलने वाली यह न्याय प्रक्रिया अंततः देवताओं के लिए दंड के रूप में समाप्त होती है. यदि देवता अपने कर्तव्यों को नजरअंदाज करते हैं, तो उन्हें 'आजन्म कारावास' के रूप में दंडित किया जाता है, जिसका मतलब होता है कि वे गांव में अब पूजे नहीं जाएंगे. उन्हें मंदिर से हटाकर उनकी पूजा बंद कर दी जाती है, जो कि लोगों की आस्था के टूटने का प्रतीक होता है.हालांकि, यदि देवता अपनी गलतियों को सुधारते हैं — जैसे बेहतर वर्षा, अच्छी फसल या गाँव में खुशहाली लाना — तो उन्हें फिर से सम्मान के साथ पूजा जाता है. बस्तर के लोग इस सुधार और दंड के चक्र में गहरे विश्वास रखते हैं.

दंड का लेखाजोखा भी रखते हैं 

जिस तरह किसी आधिकारिक अदालत में दस्तावेज़ रखे जाते हैं, वैसे ही यहां भी मुकदमे की हर प्रक्रिया का विस्तृत विवरण रखा जाता है. कितने देवताओं पर आरोप लगाया गया, कितने को सजा दी गई, हर चीज़ का रिकॉर्ड होता है. इस पूरी प्रक्रिया का लिखित दस्तावेज भी तैयार होता है.कितने देवताओं को सज़ा मिली, कितने पेश हुए सब कुछ ? फरसू सलाम बताते हैं इसके लिए बकायदा रजिस्टर मेंटेन होता है, जिसमें आय-व्यय, देवी-देवताओं की संख्या, कितने पेश किए गए, कितनों को सजा मिली सब लिखित में होता है.

देवताओं को मिलता है अपील का मौका

मानव अदालतों की तरह, जहां अभियुक्त ऊपरी अदालतों में अपील कर सकते हैं, बस्तर के देवताओं के पास भी अपील का एक मौका होता है. यदि कोई देवता अपने फैसले को चुनौती देना चाहता है, तो उसे भंगाराम देवी से क्षमा मांगनी होती है. अगर उनकी अपील मंजूर हो जाती है, तो उन्हें फिर से गांव में सम्मान के साथ पूजा जाता है. 

आस्था और न्याय का अनोखा मेल

बस्तर की यह अनोखी परंपरा, जिसमें देवताओं पर मुकदमा चलता है, आस्था, न्याय और आदिवासी संस्कृति का अद्भुत संगम है.यहां न्याय का पालन न केवल मानवों पर लागू होता है, बल्कि देवताओं पर भी होता है। यह परंपरा दिखाती है कि यहां तक कि ईश्वर को भी उनके कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.ये कहना गलत नहीं होगा कि भक्त और भगवान का ऐसा अनूठा गठजोड़ शायद ही दुनिया में कहीं होगा.
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