German Guests in Jashpur Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के जशपुर की धरती ने एक बार फिर अपनी समृद्ध जनजातीय संस्कृति और अनूठे आतिथ्य से विदेशी पर्यटकों का दिल जीत लिया है. जर्मनी से आए श्री बर्नहार्ड और श्रीमती फ्रांजिस्का ने क्षेत्रीय स्टार्टअप “ट्रिप्पी हिल्स” के अनुभवात्मक पर्यटन कार्यक्रम के तहत यहां के जनजातीय जीवन, कला और परंपराओं को गहराई से समझने का अवसर पाया.
यात्रा की शुरुआत मलार समुदाय से हुई, जो अपने पारंपरिक हस्तनिर्मित आभूषणों और उपयोगी वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है. स्थानीय कारीगरों द्वारा बारीकी से बनाए गए ये शिल्प न केवल स्थानीय पहचान का प्रतीक हैं, बल्कि रचनात्मकता और परंपरा के गहरे संगम को दर्शाते हैं.
इसके बाद मेहमानों ने विशेष पिछड़ी जनजाति–पहाड़ी कोरवा समुदाय के जीवन को करीब से देखा. पहाड़ी कोरवा लोगों की सरल जीवनशैली, प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित खानपान और पर्यावरण से जुड़ी मान्यताएं इस बात का उदाहरण हैं कि प्रकृति और मानव का सामंजस्य किस तरह जीवन का आधार हो सकता है.
यात्रा का सबसे आकर्षक पड़ाव रहा अगरिया समुदाय, जो आज भी पारंपरिक लौह गलाने की तकनीक को जीवित रखे हुए हैं. जलते भट्टों और हाथ से चलने वाले औजारों के बीच धातु शिल्प की प्रक्रिया ने विदेशी मेहमानों को अचंभित कर दिया. उन्होंने कहा कि यह अनुभव “इतिहास को जीवंत देखने जैसा” था. यात्रा का समापन जशपुर के स्थानीय जनजातीय हाट बाजार में हुआ, जहां पारंपरिक संगीत, रंगीन वस्त्रों और मिट्टी की सोंधी खुशबू ने जनजातीय जीवन की विविधता को सजीव बना दिया.
इस पूरे कार्यक्रम को “कल्चर देवी” और “अनएक्सप्लोर्ड बस्तर” जैसे सांस्कृतिक संगठनों के सहयोग से आयोजित किया गया. यह यात्रा न केवल विदेशी मेहमानों के लिए जशपुर की आत्मा से जुड़ने का अवसर बनी, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी अपनी परंपराओं और प्रतिभा को साझा करने का मंच मिला. यह अनुभव दर्शाता है कि जशपुर की जनजातीय संस्कृति केवल अतीत का हिस्सा नहीं, बल्कि एक जीवित विरासत है, जो हर आगंतुक को अपने रंगों, संगीत और आत्मीयता से जोड़ लेती है.
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