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Jnanpith Award: कभी नहीं लगा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार मुझे मिलेगा, अवॉर्ड पर बोले हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार शुक्ल

Writer Vinod Kumar Shukla: ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा पर हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल ने कहा कि उन्हें नहीं लगा था कि यह पुरस्कार मिलेगा. उन्होंने कहा कि इतना बड़ा पुरस्कार मिलना यह मेरे लिए खुशी की बात है.

Jnanpith Award: कभी नहीं लगा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार मुझे मिलेगा, अवॉर्ड पर बोले हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार शुक्ल

Jnanpith Award: हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल (Hindi Writer Vinod Kumar Shukla) ने शनिवार को उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा पर खुशी जताई और कहा कि उन्हें कभी नहीं लगा कि यह पुरस्कार मिलेगा. भारतीय ज्ञानपीठ ने शुक्ल को वर्ष 2024 के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की है. यह पूछे जाने पर कि ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की घोषणा को वह किस रूप में लेते हैं तो शुक्ल ने कहा, यह भारत का, साहित्य का एक बहुत बड़ा पुरस्कार है. इतना बड़ा पुरस्कार मिलना यह मेरे लिए खुशी की बात है.

पुरस्कार की तरफ मेरा ध्यान नहीं जाता

शुक्ल ने कहा कि उन्हें कभी नहीं लगा कि यह पुरस्कार मिलेगा. शुक्ल ने कहा कि मुझे कभी नहीं लगा कि मुझे यह पुरस्कार मिलेगा. पुरस्कार की तरफ मेरा ध्यान जाता ही नहीं. दूसरे लोग मेरा ध्यान दिलाते हैं. दूसरे मुझसे कहते हैं कि अब आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना चाहिए, मैं उनको संकोच में जवाब दे नहीं पाता.

कुछ न कुछ लिखने का प्रयास

शुक्ल (88) पिछले कुछ समय से आयु संबंधी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, लेकिन वह लगातार लिख रहे हैं. शुक्ल कहते हैं, ''कुछ ना कुछ लिखने का प्रयास मैं करता हूं और लिख लेता हूं. जब लिखा हुआ छप जाता है तो मैं मुक्त हो जाता हूं. मुझे ज्यादा लिखने का जैसे कर्ज सा चढ़ जाता है और फिर मैं लिखने के काम में लग जाता हूं. जब तक रचना शक्ति नहीं है तब तक मुझे एक आलस सा आता है, अभी तो छापने के लिए भेज दिया है छप जाए तो तो फिर लिखूं. लिखने को बहुत है, इसका अंत नहीं.''

'दिन-रात सोचता रहता हूं'

उन्होंने कहा कि मैं सोचता तो दिनभर हूं, रात भर सोचता रहता हूं. अब लेटे रहने की जिंदगी ज्यादा है. ज्यादा कोई ख्याल आता है, लिखने के लिए अभिव्यक्ति के लिए, एक कोई बात सी लगती है तब अपने पास में रखी हुई डायरी पर उसे नोट कर लेता हूं और दूसरे दिन या तीसरे दिन उसे पूरा करने की कोशिश करता हूं. ज्यादा समय साहित्य के छात्रों के बीच में बीतता है. उनके प्रश्न के उत्तर आदि लिखने के बारे में, वह भी मुझे ताकत देता है.'

बच्चों के लिए लिख रहे अब

'नौकर की कमीज', 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' जैसे प्रसिद्ध उपन्यास के लेखक शुक्ल इन दिनों बच्चों के लिए लिख रहे हैं. वह कहते हैं कि बच्चों के लिए रचनाएं लिखना उन्हें अच्छा लगता है.

शुक्ल ने कहा कि बहुत बड़ा लिखने की अब मेरी हिम्मत नहीं होती है. मुझे लगता है कि जो भी काम करूं इस उम्र में पूरा कर लूं. बच्चों के लिए छोटा-छोटा लिखता हूं और मुझे आसान सा आधार मिल गया है कि मैं इस तरह के छोटे-छोटे काम करता रहूं. बच्चों के लिए लिखना मुझे बड़ा अच्छा लगता है.

पेन-नोबोकोव अवार्ड जैसे पुरस्कारों से सम्मानित शुक्ल नए और युवा साहित्यकारों के लिए कहते हैं कि वह लिखते रहें और खुद पर विश्वास रखें. उन्होंने कहा कि जो लिख रहे हैं वह बहुत अच्छा काम है. लिखने का काम छोटा नहीं है. लिखें तो लिखते रहें. अपने ऊपर विश्वास रखें और दूसरे लोग आपके लेखन के बाद टिप्पणियां देते हैं तो उसपर भी ध्यान दें. उनकी टिप्पणियों पर भी ध्यान दें और जरूर इस बात का अनुभव करें कि जो आप लिख रहे हैं उसकी सार्थकता कितनी है.

शुक्ल का बचपन गजानन माधव मुक्तिबोध और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जैसे साहित्यकारों के शहर राजनांदगांव में बीता है. अपने शहर को याद करते हुए शुक्ल कहते हैं, ''राजनांदगांव की बहुत याद आती है. उसे मैं अपने बचपन के दिन के रूप में याद करता हूं, लेकिन अब यह वह नांदगांव नहीं रहा. वहां मैं कई साल पहले गया था. मेरा घर भी अब वह घर नहीं जो पहले था. अब जगह इतनी बदल जाती है.''

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