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धान के कटोरे को कौन कर रहा छलनी, पानी में भीग रही उपज; लापरवाही पर चुप्पी क्यों?

Dhan Kharidi kendra : छत्तीसगढ़ में इन दिनों धान पानी में भीगकर अंकुरित हो रहा है और जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ सफाई दे रहे हैं. खरीफ विपणन वर्ष 2024-25 की धान खरीदी को छह महीने गुजर चुके हैं.

धान के कटोरे को कौन कर रहा छलनी, पानी में भीग रही उपज; लापरवाही पर चुप्पी क्यों?

Dhan Kharidi kendra Negligence : छत्तीसगढ़ जिसे धान का कटोरा कहा जाता है. उस कटोरे छलनी करने की कोशिश की जा रही है.इन दिनों धान पानी में भीगकर अंकुरित हो रहा है और जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ सफाई दे रहे हैं. खरीफ विपणन वर्ष 2024-25 की धान खरीदी को छह महीने गुजर चुके हैं. लेकिन अब तक धान खरीदी केंद्रों में रखे धानों का विपणन केंद्र के गोदामों में नहीं हो पाया. नतीजा धान खरीदी केंद्रों में पड़ा धान सड़ रहा है. अंकुरित हो रहा है. गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के तीन प्रमुख धान खरीदी केंद्रों में अब भी 814.80 क्विंटल धान जमीन पर पड़ा भीग रहा है.

लापरवाही का खामियाजा उठाना पड़ रहा

छत्तीसगढ़ की राजनीति में धान खरीदी केंद्र बिंदु है. किसानों से एक-एक दाना खरीदने का दावा करने वाली सरकारें समर्थन मूल्य बढ़ाकर वाहवाही तो लूट लेती है. पर उस धान का सही रखरखाव और समय पर उठाव सुनिश्चित करने में नाकाम साबित हो रही हैं. इस लापरवाही का खामियाजा उठाना पड़ रहा है. सहकारी समितियों, केंद्र प्रबंधकों और अंततः आम उपभोक्ताओं को, जिनका टैक्स इस पूरे तंत्र को चला रहा है.

तिरपाल रोज बदला जा रहा है, फिर भी धान भीग रहा

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जैसे-जैसे मानसून ने रफ्तार पकड़ी है, वैसे-वैसे धान की बोरियां तिरपाल से ढंकने, पलटने, सुखाने की कोशिशें नाकाफी साबित हो रही हैं. मरवाही ब्लॉक के मरवाही केंद्र में 528.40 क्विंटल, तेंदूमुड़ा में 286 क्विंटल और सिवनी में 40 किलो धान अभी तक उठाव की प्रतीक्षा में है. अब उसमें अंकुरण (जर्मिनेशन) शुरू हो चुका है, जिससे उसका खाद्य उपयोग लगभग असंभव हो जाएगा. मरवाही खरीदी केंद्र में काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि बोरियों में छलिया लग चुकी है, तिरपाल रोज बदला जा रहा है, फिर भी धान भीग रहा है.

वहीं, धान केंद्र में  चौकीदार और प्रभारी  जगदीश कश्यप ने कहा कि "अब धान को बचाने के प्रयास विफल हो रहे हैं. चौकीदार को 24 घंटे रखना पड़ रहा है और लगातार बारिश के कारण सारी कोशिशें बेअसर हो रही हैं."

इस पूरे मामले पर जिला विपणन अधिकारी रमेश लहरें ने सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने NDTV से कहा, "तकनीकी समस्या दूर होते ही धान का उठाव शुरू हो जाएगा. तब तक समितियों को रखरखाव की जिम्मेदारी निभानी होगी."

परंतु बड़ा सवाल यह है कि जब सरकार खरीदी के समय हर प्रक्रिया डिजिटल करती है, तो छह महीने तक सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी पर चुप्पी क्यों? और इस देरी की भरपाई कौन करेगा? धान खरीदी के दौरान शासन-प्रशासन की मशीनरी पूरी तरह सक्रिय रहती है. खाद्य विभाग, विपणन संघ, हर स्तर पर समीक्षा होती है, पर जब उठाव की बात आती है, तो सारी जिम्मेदारी सिर्फ सहकारी समितियों और केंद्र प्रबंधकों पर डाल दी जाती है.

अब जब यह धान पूरी तरह खराब हो जाएगा, तो न इसका लाभ किसान को मिलेगा, न समिति को, और न उपभोक्ता को हानि फिर सार्वजनिक धन की ही होगी. धान खरीदी की सफलता सिर्फ उसके समर्थन मूल्य तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसके प्रबंधन और निष्पादन में भी ईमानदारी और तत्परता करता.

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