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नक्सलियों के गढ़ में जुगाड़ का पुल! परेशान ग्रामीणों ने नाले पर खुद बना दिया,अब सफर हुआ आसान 

CG News: जहां चाह ,वहां राह... यह बात छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में इंद्रावती नदी के पार धुर नक्सल प्रभावित  गांव  मंगनार के ग्रामीणों ने जुगाड़ से पुल बनाकर कर साबित कर दी है.

नक्सलियों के गढ़ में जुगाड़ का पुल! परेशान ग्रामीणों ने नाले पर खुद बना दिया,अब सफर हुआ आसान 

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके में खौफ के बीच मूलभूत सुविधाओं को ग्रामीण तरस रहे हैं.ग्रामीण विकास चाहते हैं,लेकिन नक्सलियों के गढ़ में सुविधाएं पहुंचाना भी प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है. इनमें से एक इंद्रावती नदी पार अबूझमाड़ का इलाका है. यहां के मंगनार-कौशलनार गांव जाने वाले रास्ते पर नाले पर पुल नहीं बनना भी ग्रामीणों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बना. ऐसे में ग्रामीणों ने खुद ही नाले पर जुगाड़ का पुल खड़ा कर दिया. अब इन ग्रामीणों की राह आसान हो गई है. 

गांवों का संपर्क ज़िला मुख्यालय से टूट जाता है

इंद्रावती नदी पार करते ही दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले के बॉर्डर पर धुर नक्सल प्रभावित इलाके में इस पुल को बनाया है. मंगनार- कौशलनार गांव जाने वाले रास्ते के बीच गुडरा नाले पर पुल नहीं है. बारिश के दिनों में यह नदी हमेशा उफान पर होती है. जिससे इस इलाके के दर्जनों गांवों का संपर्क ज़िला मुख्यालय बीजापुर और दंतेवाड़ा से टूट जाता है.

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इसलिए ग्रामीणों ने मिलकर जुगाड़ तकनीक से बांस की बाड़ी से नाले के बीच में पिल्लर और उन पिल्लरों पर बिजली के खंभे बिछाकर पुल बना दिया. अब इस पुल से ग्रामीण आसानी से रोजमर्रा के सामान की खरीदी के लिए दंतेवाड़ा और बीजापुर जिला मुख्यालय तक पहुंच रहे हैं. 

इस संबंध में बीजापुर के कलेक्टर संबित मिश्रा ने कहा कि इस बात की जानकारी नहीं मिली है कि ग्रामीण बिजली के खंभे से पुल बनाए हैं. अगर ग्रामीण पुल की मांग के लिए किसी तरह का आवेदन दिए हैं तो मैं उसे चेक करवा लेता हूं.

बता दें कि मंगनार गांव से ज़िला मुख्यालय बीजापुर की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है,तो वहीं पड़ोसी ज़िले दंतेवाड़ा की दूरी महज 50 किलोमीटर है. जब कुछ काम होता है तो ग्रामीणों को 150 किलोमीटर दूरी तय कर बीजापुर जाना पड़ता है. ग्रामीण ऐसा पुल पिछले तीन साल से बनाते आ रहे हैं. 

गांव वालों का कहना है कि नक्सलियों का खौफ होने के कारण इस इलाके में ना ही कोई अधिकारी पहुंचता है ना ही कोई जनप्रतिनिधि. अगर पहुंचता भी है तो साल में एक बार गर्मी के दिनों में पहुंचते हैं.

नक्सल प्रभावित क्षेत्र और नक्सल दहशत होने के कारण हम अधिकारियों से खुलकर बात नहीं कर पाते हैं. लेकिन उनको हम मौका देकर कई बार नाले में पुल की समस्या से अवगत कराते हैं. लेकिन आज तक कुछ निष्कर्ष नहीं निकला है. ग्रामीणों ने बताया कि जब कोई गांव में बीमार पड़ता है या कोई महिला गर्भवती हो जाती है, तो नाला को पार करवाने में काफी दिक्कत होती है. बारिश में इंद्रावती नदी और नाला उफान पर होता है तो नाव से जान को जोखिम में डाल कर पार करना मजबूरी हो जाती है. 

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