Bastar Olympics 2025: बंदूक लेकर जंगलों की छान मारने वाले अब कबड्डी और खो-खो में अपनी ताकत आजमां रहे हैं. कभी खूनी खेल खेलने के लिए चर्चा में रहने वाले अब जिंदगी को सुकून और खुशनुमा बनाने का खेल खेल रहे हैं. बीजापुर के परसदा गांव के रहने 22 साल का बुधरु हथियार छोड़कर अब सुकून महसूस कर रहा है. बस्तर ओलंपिक में कबड्डी प्रतियोगिता में भले ही बुधरु की टीम को हार मिली है, लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान उसके जिंदगी में सुकून की कहानी बयां कर रही है.
बस्तर ओलम्पिक 2025: सरेंडर माओवादियों का खेल
नजारा जगदलपुर के इंदिरा स्टेडियम में बस्तर ओलंपिक 2025 के समापन कार्यक्रम का है. अपनी तरह के अलग आयोजन के लिए चर्चित बस्तर ओलंपिक 2025 में आत्म समर्पित माओवादी भी अलग-अलग खेलों में हिस्सा ले रहे हैं. जंगल में बंदूक लेकर घूमने वाले माओवादी अब मुख्य धारा में जुड़कर राहत महसूस कर रहे हैं.
बुधरू बताते हैं कि बीजापुर के जंगला स्थित पुनर्वास केंद्र में वह और उनके साथ पुनर्वास कर रहे 30 आत्मसमर्पित माओवादी रहते हैं. वहां वे बाइक रिपेयरिंग सीख रहे हैं. स्वरोजगार के लिए उन्होंने यह काम सीखना जरूरी समझा. बस्तर ओलंपिक कैसे कार्यक्रम उनका मुख्य धारा में जोड़ने और सबके बीच रहकर सामाजिक गतिविधियों को समझने के लिए बेहतर प्रयोग है.
खो-खो में मिली हार, लेकिन दिल में सुकून
बुधरु की तरह ही हूंगा और जोगा भी हैं. योगा दंतेवाड़ा के रहने वाले हैं. अक्टूबर महीने में ही पुनर्वास कर मुख्य धारा में जुड़े हैं. जोगा कहते हैं कि उन्होंने बस्तर ओलंपिक में खो-खो प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. उनकी टीम नहीं जीत सकी, लेकिन बस्तर ओलंपिक में शामिल होना भी उनके लिए एक बेहतर अनुभव है. इस तरह के आयोजन लगातार होने चाहिए.
आत्मसमर्पित नक्सलियों ने बस्तर ओलंपिक में लिया हिस्सा
बता दें कि बस्तर ओलंपिक 2025 में कुल 3 लाख 91 हजार से अधिक रजिस्ट्रेशन हुए थे, जिसमें 600 से अधिक ऐसे खिलाड़ी हैं, जो सरेंडर माओवादी हैं या फिर माओवाद हिंसा से पीड़ित हैं. बस्तर ओलंपिक के इस दूसरे संस्करण में 5000 ऐसे खिलाड़ी हैं जो बस्तर के अंदरूनी उन गांव से आए हैं जहां पहले कभी भी कोई व्यक्ति किसी खेल प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया. कभी घर मावत इलाके में रहे ऐसे 121 गांव से प्रतिभागी बस्तर ओलंपिक 2025 में हिस्सा लिए हैं.
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