
Chhattisgarh Naxalites: एक समय था कि छत्तीसगढ़ के बलरामपुर (Balrampur Naxal Area) जिले में खूंखार नक्सली एरिया कमांडर सीताराम का लोगों में खौफ था. वह 25 से 30 नक्सलियों का लीडर था. उसके नक्सलियों के ग्रुप में एसएलआर, एके-47 जैसे अन्य खतरनाक हथियार हुआ करते थे. छह साल तक वह लाल आतंक का सरगना रहा, लेकिन एक दिन उसे एक लड़की का लिखा हुआ पत्र मिला और उसकी पूरी जिंदगी ही बदल गई. उसने एक दम से नक्सली की दुनिया छोड़ दी और 14 लाख रुपयों को भी अपने संगठन में छोड़ आया. क्या है इस नक्सली एरिया कमांडर की प्रेम कहानी, यहां पढ़ें...
वर्ष 1990 और 2000 के दौर में बलरामपुर जिला लाल आतंक का गढ़ बना हुआ था. नक्सलियों द्वारा मर्डर, लेव्ही या वसूली, जन अदालत के साथ पुलिस से मुठभेड़ आए दिन सुर्खियों में रहती थी. जिले में जिस नकस्ली ग्रुप का खौफ था, उस ग्रुप का लीडर सीताराम था. इसके नाम से लोग कांपते थे और इलाके में दहशत थी. वर्ष 1999 का दौरा था, जब नक्सली एरिया कमांडर सीताराम अपना परिवार और गांव छोड़कर लाल आतंक का दामन थाम चुका था. वह कुछ ही समय में एरिया का कमांडर बन गया.

10वीं की छात्रा सीताराम को दे बैठी दिल
नक्सली एरिया कमांडर सीताराम नाम से लोग खौफ खाते थे, लेकिन कक्षा-10 में पढ़ने वाली बिराजो का दिल सीताराम पर आ गया था. वह मन ही मन सीताराम से प्रेम करने लगी थी. बिराजो कभी भी सीताराम से मिली नहीं थी और ना ही वह उससे कभी मिल पाती थी. एक बार बिराजो ने सीताराम को प्रेम पत्र लिख प्यार का इजहार जताया. साथ ही मिलने के लिए वक्त मांगा.
दोनों ने एक घने जंगल की मुलाकात
बाद में सीताराम ने भी बिराजो को जवाब में प्रेम पत्र लिखा. इसके बाद दोनों ने पहली बार घने जंगल में मुलाकात की. पहली मुलाकात के बाद बिराजो और सीताराम एक दूसरे से प्यार करने लगे, लेकिन इस बीच बिराजो ने सीताराम के सामने शर्त रखी कि अगर मेरा हाथ तुम थामना चाहते हो तो नक्सलियों का साथ छोड़ना पड़ेगा.
पहले तो नक्सलवाद छोड़ने से किया मना
सीताराम यह बात सुनकर भयभीत हुआ और साफ शब्दों में मना कर दिया, लेकिन दोनों की लगातार मुलाकात होती रही. बिराजो जब मिलती तो उसे खाना बनाकर लाती थी. लंबे समय के बाद बिराजो के प्यार ने सीताराम का मन बदल कर रख दिया. एक दिन सीताराम नक्सलियों से दो घंटे की छुट्टी मांग कर निकला था, लेकिन वह नक्सलियों के समूह में वापस नहीं लौटा.
14 लाख रुपये भी कैंप में छोड़े
इस दौरान सीताराम ने बताया कि उस दौरान उसके पास वसूली के 14 लाख रुपये थे. मन में डर था कि अगर वह 14 लाख रुपये भी साथ ले जाता है तो नक्सली उसके माता-पिता को मार सकते हैं. इसलिए उसने सभी रुपयों को संगठन के लोगों के पास छोड़ दिया.
15 साल तक असम में रहे दोनों
सीताराम ने बताया कि बिराजो के पास छात्रवृत्ति के मिले पैसे थे, जिससे दोनों असम चला गए. बिराजो के घर वालों ने तो बिराजो को मृत समझकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया था. लगभग 15 साल तक असम में रहने के बाद दोनों को घर की याद सताई. इसके बाद सीताराम ने अपने भाई को पत्र लिखा और घर आने की इच्छा जाहिर की.
भाई को नहीं हुआ यकीन
पहले तो सीताराम के भाई को यकीन नहीं हुआ कि उसका नक्सली भाई जिंदा है, लेकिन बचपन की बातें सुनकर उसे यकीन हुआ और घर वापस लाने में उसकी मदद की. वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ घर लौट आया और पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. 14 महीने की जेल काटने के बाद अब वह अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिता रहा है. उसके बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं.
एनडीटीवी से बात करते हुए बिराजो ने बताया कि नक्सली को पत्र लिखने में उसे कोई डर नहीं था. उसने सीताराम को पत्र लिखा और मिलने की इच्छा जाहिर की. प्यार होने के बाद सीताराम को नक्सली छोड़ने का बात कही और कहा कि मैं जीवनभर साथ दूंगी. इस तरह सीताराम से नक्सलियों का दामन छुड़ा लिया.
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