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दस करोड़ के इनामी नक्सली बसवराजू की मौत के बाद बेघर हुए आदिवासियों में जगी उम्मीद, अपने घर की आ रही है याद

Anti Naxal Operation News: दंतेवाड़ा के कसौली में इस वक्त भी 185 परिवार हैं, जो सलवा जुडूम राहत शिविर में रह रहे हैं. ये परिवार 2005 में अबूझमाड़ के  नीराम, बेलनार, पल्लेवाया, डूंगा, ऐकेल, और पीडिया कोट जैसे दर्जनों गांव से लाए गए थे. इसके बाद ये लोग यहां आकर कासौली गांव में बस गए थे.

दस करोड़ के इनामी नक्सली बसवराजू की मौत के बाद बेघर हुए आदिवासियों में जगी उम्मीद, अपने घर की आ रही है याद
माओवादी संगठन का जनरल सेक्रेटरी बसवराजू .

Anti Naxal Operation Effect: बस्तर (Bastar) में लगातार बढ़ रहे फोर्स के दबाव से माओवादी बैकफुट पर है. सुरक्षाबलों की ओर से चलाए जा रहे ऑपरेशन में माओवादियों (Maoists) के कई बड़े कैडर मारे गए. इसी कड़ी में 21 मई को अबूझमाड़ ( Abujhmad) स्थित किलेकोट के जंगल में हुई मुठभेड़ (Anti Naxal Encounter) में माओवादी संगठन का जनरल सेक्रेटरी बसवराजू (Basavaraju) सहित 27 माओवादी मारे गए थे. फोर्स का माओवादियों पर बढ़ते दबाव को  सलवा जुडूम राहत शिविरों में रहे रहे लोग बड़ी राहत के रूप में देख रहे हैं.

लोगों में जगी गांव लौटने की उम्मीद

दंतेवाड़ा के कसौली में इस वक्त भी 185 परिवार हैं, जो सलवा जुडूम राहत शिविर में रह रहे हैं. ये परिवार 2005 में अबूझमाड़ के  नीराम, बेलनार, पल्लेवाया, डूंगा, ऐकेल, और पीडिया कोट जैसे दर्जनों गांव से लाए गए थे. इसके बाद ये लोग यहां आकर कासौली गांव में बस गए थे. इन गांवों के लोगों को आज भी उम्मीद है कि वह अपनी धरती अबूझमाड़ में एक दिन  जरूर लौटेंगे.

'हमारी एकड़ों जमीन पड़ी है, फिर रहते हैं झोपड़ी में'

इन गांव के लोगों से जब NDTV संवाददाता पंकज भदौरिया ने चर्चा की, तो उन्होंने बताया कि हम अपने माड़ के घरों में वापस जाना चाहते हैं. वहां हमारा सब कुछ है. यहां तो छोटी सी झोपड़ी में रहकर गुजर बसर भर बस हो रहा है. इन लोगों का कहना है कि हमारे गांव में हमारी एकड़ों जमीन पड़ी है. इसके बावजूद जब से आए हैं, हम दोबारा लौट कर नहीं जा पाए. हमारे खेतों में इस वक्त कौन जुताई और खेती कर रहा है, यह भी हमें नहीं मालूम है. इसके साथ ही वे कहते हैं कि अब फोर्स जिस तरह से माओवादियों को मार रही है, इससे लग रहा है कि अब माओवाद समाप्त हो जाएगा और हम अपने घर जल्द लौट पाएंगे. इससे साफ जाहिर हो रहा है कि अगर माओवाद समाप्त हुआ, तो सबसे ज्यादा खुशी राहत शिविरों में रहे लोगों की होगी.

'बहुत क्रूर थे माओवादी'

इन लोगों का कहना है कि फोर्स ने बड़े माओवादी नेता को मारा है. हमने यह खबर टीवी और फोन पर देखी है. हालांकि, बसवराजू को कभी नहीं देखा था. अबूझमाड़  के जब अपने गांव में थे, तब राजमन मंडावी, श्याम, सपना और फूलमती को ही देखा था. ये बड़े ही क्रूर चेहरे थे. माओवाद समाप्त होगा, तो शांति से अपने गांव में रह सकेंगे.

आज भी है गांव जाने की ख्वाहिश

दरअसल, अपनी भूमि से कुंटलों फसल की पैदावार लेने वालों का निवाला राहत शिविर में राशन दुकान पर निर्भर है. सरकार ने सलवाजुडूम के दौरान इनके लिए फ्री में राशन की व्यवस्था की थी. कैंप में करीब 200 राशन कार्ड धारी है. राहत शिविर में रहने वाले ग्रामीण कहते है कि अपने खेतों में धान की फसल की पैदावार लेते थे. लेकिन, अब तकरीबन 20 साल से सरकारी राशन से ही जीवन यापन कर रहे हैं. राशन दुकान का संचालन करने वाले गागरू लेकाम ने बताया कि हम नीराम के रहने वाले हैं. सलवा जुडूम की दौरान कासौली गांव आए थे. यहां आने के बाद वापस नहीं जा पाए. वापस तो सभी जाना चाहते हैं, लेकिन नक्सलियों के खौफ के चलते लौट पाना मुश्किल है. यदि माहौल सही हुआ, तो जरूर वापस जाएंगे. 

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