Request to build a bridge on the river: छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर (Ambikapur) जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाले ग्रामीण क्षेत्र रेवापुर गांव में धुंधुट्टा नदी पर पुल की मांग लम्बे समय से की जा रही है. यह नदी ग्रामीणों के लिए एक बड़ी बाधा रही है, जिन्हें विभिन्न दैनिक गतिविधियों के लिए नियमित रूप से इसे पार करना पड़ता है. पुल की मांग लंबे समय से की जा रही है, फिर भी ऐसा लगता है इस महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजना को पूरा करना शायद शासन के लिए मुश्किल है.
जान को जोखिम में डालकर उफानती नदी को पार करते हैं ग्रामिण
हरे-भरे खेतों से घिरा एक शांत गांव रेवापुर में 500 से अधिक परिवार रहते हैं. अंबिकापुर के मुख्य शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव मुख्य रूप से अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है. धुंधुट्टा नदी गांव के बगल से बहती है, जो इसे दो भागों में विभाजित करती है. मानसून के दौरान नदी उफान पर होती है, जिससे ग्रामीणों, खासकर बच्चों और बुजुर्गों को इसे पार करना खतरनाक हो जाता है.
50 साल से सिर्फ आश्वासन दे रहे हैं नेता
रेवापुर के निवासी और बुजुर्ग रामजीत ने NDTV को बताया कि गांव वाले वर्षों से अधिकारियों से धुंधुट्टा नदी पर पुल बनाने का अनुरोध कर रहे हैं, लेकिन हर बार आश्वासन देकर वे चले जाते हैं. उन्होंने ने बताया कि बारिश के दौरान इसे पार करना असंभव हो जाता है और आपात स्थिति विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण होती है. पुल न होने से न केवल दैनिक आवागमन प्रभावित होता है. उन्होंने ने बताया कि नदी के एक पार उनका घर है और दूसरी ओर उनका खेत है. ऐसे में खेती करना उनके लिए हर वर्ष एक चुनौती होता है. उन्होंने बताया खेत जोतने के लिए पहले नदी से बैलों को तैर कर ले जाते थे, लेकिन अब उन्हें 30 किलोमीटर की दूरी तय करके उस पार जाना पड़ता है.
बच्चों की पढ़ाई भी हो रही बाधित
नदी को पार कर रही मीना टोप्पो के बताया कि रेवापुर गांव की यह बहुत ही पुरानी व महत्वपूर्ण समस्या है, जिसे दूर करने का वादा तो नेता से लेकर अधिकारी तक करते हैं, लेकिन आज तक यह समस्या जस के तस है. उन्होंने ने बताया कि नदी पार करने का एक मात्र साधन बोट है, लेकिन कभी-कभी यह भी नहीं होने के कारण वे ट्यूब के सहारे नदी पार करते हैं जो काफी खतरनाक होता है.
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुंच भी प्रभावित होती है. छात्रों को अक्सर नियमित रूप से स्कूल जाने में कठिनाई होती है और चिकित्सा आपात स्थिति में ग्रामीणों को निकटतम अस्पताल तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.
किसानों को खेती करने में होती है काफी समस्याएं
शांतिबाई का कहना है कि उसकी एक बेटी का विवाह नदी के दूसरे किनारे के गांव में हुआ है. नदी में पुल नहीं होने के चलते अपनी बेटी के घर नहीं जा पाती है.
मधु बड़ा ने बताया कि नदी पार करने के जो बोट गांव वाले उपयोग में लाते हैं उसे समूह के माध्यम से बनाया जाता है और हर कोई उसका उपयोग करता है, लेकिन हर समय बोट आपको मिले यह संभव नहीं होता. ऐसे में अक्सर स्कूली बच्चों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और उनकी पढ़ाई छूट जाती है.
मधु ने बताया कि इस समस्या को लेकर ग्रामीणों ने सरपंच के माध्यम से हर जनप्रतिनिधि व अधिकारियों के पास गए, लेकिन आज तक नदी में पुल नहीं बन सका है.
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पुल बनाना चुनौतीपूर्ण लेकिन प्रयास जारी रहेगा
क्षेत्र के विधायक प्रबोध मिंज से जब पुछा गया तो उन्होंने ये माना रेवापुर व लव्इ-डी ग्राम पंचायत के लोगों पुल नहीं बनने से समस्या तो है, लेकिन तकनीकी तौर पर जिस तरह से पुल बनाने की मांग ग्रामीण कर रहे हैं वैसा पुल बनाने में करोड़ों रुपये खर्च होंगे. उन्होंने ने बताया कि नदी चुकी डेम से जुड़ी हुई है ऐसे वहां की गहराई तकरीबन 50 फीट तक है. वहीं पुल बनने के बाद टीके उसकी भी संभावना कम है. हालांकि ग्रामीणों की समस्या को देखते हुए जल्द ही कोई कदम उठाया जाएगा.
ग्रामीणों की मांग जायज, उनके साथ हो रहा है अमानवीय व्यवहार
सरगुजा भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद प्रतिनिधि आलोक दुबे ने कहा कि ग्रामीण की मांग जायज है. उनके साथ अमानवीय कृत हो रहा है. उन्होंने ने कहा कि लम्बे समय से उनकी मांग की पुल बने, लेकिन कांग्रेस की सरकार हो या फिर हमारी सरकार हो उनकी मांग आज तक अधूरी रही है. उन्होंने ने कहा कि वो इस ओर सांसद चिंतामणी का ध्यान आकर्षित करते हुए पुल निर्माण कराने का प्रयास करेंगे.
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