Ambedkar Hospital: रायपुर के वैज्ञानिकों का कमाल, इनकी बायोमार्कर किट पहचानेगी इस महामारी की गंभीरता

Ambedkar Hospital Raipur: इस शोध कार्य में वैज्ञानिकों ने क्यू पीसीआर (Quantitative PCR) आधारित टेस्ट का उपयोग करके एक सीवियरिटी स्कोर विकसित किया जिनकी संवेदनशीलता 91 प्रतिशत और विशेषता 94 प्रतिशत है. इस शोध दल में एक अन्य एमआरयू वैज्ञानिक डॉ योगिता राजपूत, पेपर की पहली लेखिका ने विभिन्न विभागों के अन्य बहु-विषयक योगदानकर्ताओं के साथ समन्वय करते हुए चुनौतीपूर्ण परियोजना को मूर्त रूप में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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Make in India: देश में स्वास्थ्य अनुसंधान अधोसरंचना को विकसित एवं सुदृढ़ करने के उद्देश्य से डॉ भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय (Dr Bhimrao Ambedkar Memorial Hospital, Raipur) रायपुर में स्थापित मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (MRU) के वैज्ञानिकों की टीम ने ऐसी बायोमार्कर किट विकसित की है जो कोविड-19 (Covid-19) महामारी संक्रमण की गंभीरता का अनुमान प्रारंभिक चरण में ही लगा लेगी. कोविड-19 के प्रारंभिक चरण से प्रारंभ किये गये इस शोध के परिणाम हाल ही में विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुई है जो प्रतिष्ठित नेचर प्रकाशन (Science Journal Nature) समूह द्वारा प्रकाशित किया गया है. 

ऐसे हुई थी शुरुआत

कोविड महामारी की शुरुआत में जब देश के कई प्रमुख वैज्ञानिक नए कोविड-19 डायग्नोस्टिक टेस्ट किट विकसित करने में जुटे हुए थे, रिसर्च पब्लिकेशन के करेस्पोंडिंग लेखक (प्रिसिंपल इन्वेस्टिगेटर) डॉ जगन्नाथ पाल जोकि एमआरयू के वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, उन्होंने कोविड-19 महामारी के प्रबंधन के लिए बुनियादी मुद्दे की दिशा में विचार करना शुरू किया, जो भविष्य में किसी भी महामारी की स्थिति से निपटने के लिए भी उपयोग में आ सकता है.

कोविड-19 प्रोग्नोस्टिक बायोमार्कर किट को विकसित करने वाले प्रमुख वैज्ञानिक एवं टीम लीडर डॉ जगन्नाथ पाल के अनुसार, कोरोना महामारी के प्रारंभिक चरण में संसाधन एवं एंटी-वायरस दवाओं का बहुतायत मात्रा में प्रयोग हुआ, जिससे गंभीर दवा संकट के साथ-साथ रेमडेसिवीर जैसी जीवन रक्षक दवाओं का संकट भी उत्पन्न हुआ.

शुरुआती चरण में यह पता लगाना मुश्किल होता था कि किन कोरोना रोगियों को मेडिकल की अग्रिम सुविधा की आवश्यकता है अथवा नहीं? इसलिए पूर्वानुमानित परिणाम के आधार पर रोगियों के संक्रमण की गंभीरता को अलग-अलग श्रेणी में विभाजन करना आवश्यक था जिससे कि इन संसाधनों का गंभीर कोरोना रोगियों में उपयोग किया जा सके, परन्तु उस समय कोई भी ऐसा टेस्ट उपलब्ध नहीं था, जिससे कि प्रारंभिक चरण में ही कोरोना रोगियों की गंभीरता का पता चल सके.

तीन साल के अथक परिश्रम से मिली सफलता

डॉ पाल के नेतृत्व में एमआरयू रिसर्च टीम ने उपलब्ध सीमित संसाधन का उपयोग करके इस दिशा में काम करना शुरू किया और अंततः बायोमार्कर किट विकसित करने में सफलता हासिल कर ली, जिसका उपयोग करके कोरोना के गंभीरता की भविष्यवाणी प्रारंभिक चरण में ही की जा सकती है.

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इस शोध कार्य में वैज्ञानिकों ने क्यू पीसीआर (Quantitative PCR) आधारित टेस्ट का उपयोग करके एक सीवियरिटी स्कोर विकसित किया जिनकी संवेदनशीलता 91 प्रतिशत और विशेषता 94 प्रतिशत है. इस शोध दल में एक अन्य एमआरयू वैज्ञानिक डॉ योगिता राजपूत, पेपर की पहली लेखिका ने विभिन्न विभागों के अन्य बहु-विषयक योगदानकर्ताओं के साथ समन्वय करते हुए चुनौतीपूर्ण परियोजना को मूर्त रूप में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

डॉ पाल के आविष्कार के संभावित व्यावसायिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए पं जेएनएम मेडिकल कॉलेज ने भारतीय पेटेंट के साथ- साथ अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है. डॉ पाल के अनुसार, हाल ही में अमेरिका की पेटेंट सर्च एजेंसी ने अमेरिका में आविष्कार के संभावित व्यावसायिक महत्व को दर्शाते हुए उत्साहजनक रिपोर्ट प्रदान की है. इसका मतलब है कि भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान देने वाली चिकित्सा प्रौद्योगिकी को विदेशों में निर्यात करने का अवसर हमें मिल सकता है. एमआरयू का रिसर्च मेक इन इंडिया अभियान को भी बरकरार रखेगा.

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