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78th Independence Day: कभी निभाई थी सक्रिय भागीदारी, आज गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो सा गया 'मोहन लहरी'

Freedom Fighters: आज़ादी के बाद अब लोग कई सारे आज़ादी के दिवानों के को भूल बैठे हैं. लोगों को सिर्फ माहात्मा गांधी, भगत सिंह, जवाहरलाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानी ही याद रहते हैं. लेकिन, ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपना जीवन देश के नाम कर दिया और उन्हें सभी भूल भी गए.

78th Independence Day: कभी निभाई थी सक्रिय भागीदारी, आज गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो सा गया 'मोहन लहरी'
भुला दिए गए आजादी के वीर मोहन लहरी

Chhattisgarh Freedom Fighter: आज 15 अगस्त है. देश आजाद भारत के उन महापुरुषों को याद कर रहा है, जिन्होंने देश की आजादी में अपनी भागीदारी निभाई थी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi), भगत सिंह (Bhagat Singh) सहित अन्य महापुरुष सहित उन क्रांतिकारी की कहानियां तो आपने कई बार सुनी होगी. लेकिन, आज NDTV एक ऐसे क्रांतिकारी की कहानी आपको बता रहा है, जिन्होंने आजादी के बाद भी गुमनामी का जीवन जिया... जिनके किस्से आज भी गुमनाम हैं... आज उन्हें लोग पूरी तरह से भूल चुके हैं. 

होशंगाबाद में हुआ था जन्म

हम बात कर रहे है क्रांतिकारी स्वर्गीय मोहन लहरी की. जिनका जन्म होशंगाबाद में सन 1908 में हुआ. क्रांति का जुनून लिए मोहन लहरी ने सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में अपनी भागीदारी निभाई. इस लड़ाई में उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी को खो दिया. उन्होंने फिलीपीन की फ्लोरा फ्रांसिस से प्रेम विवाह किया था. 14 साल के प्रेम विवाह में उनकी एक बेटी हुई थी. वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ जापान में रहा करते थे. एक दिन नेताजी के साथ वह किसी काम से बाहर गए थे, उसी दौरान अज्ञात हमलावरों ने 8 टन का बम गिराकर नष्ट कर दिया. इस घटना में उनकी पत्नी व बेटी की मौत हो गई. इस घटना से मोहन लहरी काफी आहत हो गए थे. 

इन आंदोलनों में हुए थे शामिल

क्रांतिकारी मोहन लहरी एक पत्रकार भी थे. वह कई क्रांतिकारी आंदोलनों में शामिल भी रहे. अपने सबसे ताकतवर हथियार, कलम से अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला देते थे. उन्होंने जापानी अखबार निशि निशि, बर्मा में वॉयस ऑफ बर्मा सहित अन्य अखबारों में कलम की ताकत से क्रांति लाकर, कलम से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी. मोहन लहरी ने नेता जी के साथ उनकी आजाद हिंद सरकार में मिनिस्ट्री ऑफ प्रेस पब्लिकसिटी एंड प्रोपोगेंडा के प्रोग्रामिंग ऑफिसर रहे थे. नेता जी के साथ रहने के कारण इनके पीछे जासूस पड़े रहे. आजादी के बाद उन्होंने इस जासूसी से तंग आकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा. जिनसे उनकी मुलाकात दार्जलिंग में हुई. 

राजीव रंजन प्रसाद से थे मधुर संबंध

साहित्यकार राजीव रंजन प्रसाद बताते है कि जब मोहन लहरी जीवित थे, तो उनकी मुलाकात कांकेर के रेस्टहाइस में उनसे हुई. उन्होंने छत्तीसगढ़ के बस्तर में आने के पीछे का कारण बताया कि बस्तर के महाराजा और विधायक प्रवीणचंद भंजदेव ने उनका एक लेख पढ़कर उनसे संपर्क किया और अपने साथ बस्तर ले आये. मोहन लहरी इस दौरान उनके सलाहकार रहे और बस्तर के ज्वलंत राजनीति में अपना योगदान देते रहे. किसी कारणवश 1965 में वह उत्तर बस्तर के कांकेर आ गए. यहां उन्होंने घूम-घूम कर अपना जीवन गुजारा. लेकिन, उन्होंने अपना अतीत कैसे जिया, उन्हें शब्द दर शब्द याद था. इनकी मृत्यु 29 अगस्त 2012 को 104 वर्ष की लंबी आयु में हो गई. 

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वृद्धाश्रम में गुजरा कुछ समय 

वृद्धावस्था का कुछ समय क्रांतिकारी मोहन लहरी का वृद्धाश्रम में भी गुजरा. कांकेर में संचालित वृद्धाश्रम की संचालिका एवं समाजसेवी बुलबुल वैद्य बताती है कि उनकी मुलाकात मोहन लहरी से लखनपुरी में हुई थी. जान-पहचान होने के बाद वह उनके घर भी आया करते थे. साल 2010 में वह वृद्धाश्रम में रहने लगे. वह उन्हें बेटी कहकर बुलाया करते थे. कुछ समय वृद्धाश्रम में गुजारने के बाद स्थानीय प्रशासन की मदद से उन्हें कांकेर के रेस्ट हाउस में रहने दिया गया. 

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हर किसी का करते थे आदर

रेस्ट हाउस में उनकी सेवा करने वाले कर्मचारी गजानंद जैन बताते है कि स्वर्गीय मोहन लहरी रेस्ट हाउस के कमरा नंबर 4 में रहा करते थे. वह कर्मचारियों को भैया कहकर बुलाते थे. उनकी यादें आज भी इस कमरा नंबर 4 से जुड़ी हुई है. उन्हें देखने प्रशासनिक अधिकारी भी बीच-बीच में आया करते थे. राष्ट्रीय पर्वों में उन्होंने ससम्मान बुलाकर सम्मानित भी किया जाता था. अपने जीवन के अंतिम क्षण में भी गुमनामी के अंधेरे में जीवन गुजारने वाले स्वर्गीय मोहन लहरी आज भी गुमनाम हैं.

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