₹100 की रिश्वत, 39 साल काटे अदालतों के चक्कर ! अब हाईकोर्ट ने किया बाइज्जत बरी

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो बताता है कि न्याय में भले देर हो, लेकिन अंधेर नहीं. यह मामला है 39 साल पुराना. दरअसल मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम के एक बिल असिस्टेंट रहे जगेश्वर प्रसाद अवस्थी को करीब चार दशक बाद मात्र 100 रुपये के रिश्वत लेने के मामले में राहत मिली है.

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Bilaspur High Court bribery case: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो बताता है कि न्याय में भले देर हो, लेकिन अंधेर नहीं. यह मामला है 39 साल पुराना. दरअसल मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम के एक बिल असिस्टेंट रहे जगेश्वर प्रसाद अवस्थी को करीब चार दशक बाद मात्र 100 रुपये के रिश्वत लेने के मामले में राहत मिली है. निचली अदालत ने उन्हें इस 100 की रिश्वत के मामले में दोषी ठहराया था लेकिन अब हाई कोर्ट ने उनकी सज़ा पूरी तरह ख़त्म कर दी है. कोर्ट ने साफ कहा कि रिश्वत मांगने का कोई पक्का सबूत नहीं मिला है और वो बरी किए जाते हैं.

ये ₹100 वाली कहानी क्या थी?

दरअसल बात 1986 की है. तब ₹100 भी बड़ी रकम थी. आरोप लगा था कि जगेश्वर प्रसाद अवस्थी ने एक कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा का बकाया बिल (एरियर) बनाने के लिए रु. 100 मांगे बतौर रिश्वत मांगे थे. जिसके बाद अशोक कुमार ने इसकी शिकायत कर दी. जिसके बाद तब के लोकायुक्त ने ट्रैप बिछाया और फिनॉल्फ्थेलीन पाउडर लगे नोटों के साथ उन्हें पकड़ लिया गया. साल 2004 में निचली अदालत ने उन्हें एक साल की जेल की सज़ा सुना दी थी.

कोर्ट ने कहा- यह ट्रैप तो 'फ़ेल' हो गया।

इस सजा के खिलाफ जगेश्वर प्रसाद अवस्थी हाईकोर्ट चले गए. इस मामले में चली लंबी सुनवाई के बाद अब जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने निचली अदालत के फैसले को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित ही नहीं कर पाया कि अवस्थी ने रिश्वत की मांग की थी और उसे खुशी से स्वीकार किया था. अदालत ने नीचे बताए चार वजहों को ध्यान में रखते हुए फैसला दिया है.

1.कोई देखा नहीं: कोर्ट को कोई स्वतंत्र गवाह नहीं मिला. जिसने सुना हो कि अवस्थी ने पैसे मांगे थे.

2 .शैडो गवाह भी 'गायब': ट्रैप में लगाए गए शैडो गवाह ने खुद माना कि वह बातचीत सुन नहीं पाया और न ही उसने अवस्थी को पैसे लेते देखा.

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3. 25 गज की दूरी: सरकारी गवाह 20−25 गज दूर खड़े थे. ऐसे में सवाल उठा कि कोई इतनी दूर से कोई कैसे देख सकता है कि लेन-देन में क्या हुआ.

4. पैसे का कन्फ्यूजन: यह भी साफ नहीं हो पाया कि पकड़ा गया नोट रु. 100 का एक था या रु. 50 के दो थे.

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अवस्थी का पक्ष यह भी था कि तब उनके पास तो बिल पास करने का अधिकार ही नहीं था. वह अधिकार उन्हें रिश्वत मांगने की कथित तारीख के एक महीने बाद मिला था. हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का ज़िक्र करते हुए कहा कि केवल जेब से 'रंगे हुए नोट' मिल जाना ही सज़ा के लिए काफी नहीं है. रिश्वत मांगने का इरादा और उसका पक्का सबूत होना बहुत ज़रूरी है. बहरहाल 39 साल की लंबी कानूनी माथापच्ची के बाद अवस्थी अब हर आरोप से आज़ाद हैं.

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