छत्तीसगढ़ में NOTA बना लोकतंत्र के विरोध का जरिया! नक्सल प्रभावित इलाकों में सर्वाधिक दबा ये बटन

स्वस्थ्य लोकतंत्र के फलने-फूलने में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का चयन सबसे बड़ी बाधा है. पार्टियों द्वारा चुनाव मैदान में इन्हें हतोत्साहित करने के उद्देश्य से बेहद सोच-विचार कर नोटा का विकल्प लाया गया है. लेकिन, छत्तीसगढ़ में पिछले 2 विधानसभा चुनावों के आंकड़े को करीब से देखें तो पाएंगे कि नक्सल प्रभाव वाली सीटों पर इसका उपयोग सर्वाधिक किया गया है.

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Chhattisgarh Assembly Election 2023: स्वस्थ्य लोकतंत्र के फलने-फूलने में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का चयन सबसे बड़ी बाधा है. पार्टियों द्वारा चुनाव मैदान में इन्हें हतोत्साहित करने के उद्देश्य से बेहद सोच-विचार कर नोटा का विकल्प (NOTA option) लाया गया है. लेकिन, छत्तीसगढ़ में पिछले 2 विधानसभा चुनावों (assembly elections) के आंकड़े को करीब से देखें तो पाएंगे कि नक्सल प्रभाव (Naxal influence) वाली सीटों पर इसका उपयोग सर्वाधिक किया गया है. सीधे तौर पर यह लोकतंत्र की खिलाफत का बड़ा जरिया बन गया है.

छत्तीसगढ़ में पिछले 2 विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो 2013 में इसे लेकर ज्यादा उत्साह देखा गया था और कुल वोट का 3.1 प्रतिशत वोट नोटा को गया था. फिर 2018 के चुनाव में यह कम होकर 2 प्रतिशत रह गया. 

2013 में जहां चित्रकोट में सर्वाधिक 10 हजार 848 वोट नोटा को पड़ा था तो 2018 में दंतेवाड़ा में 9,929 वोट नोटा के खाते में आया था.दोनों धुर नक्सल प्रभावित इलाके हैं.

बीते शनिवार को अपने एक बयान में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghel) ने कहा कि निर्वाचन आयोग को नोटा का विकल्प खत्म करने पर विचार करना चाहिए. सीएम भूपेश का तर्क था कि कई बार वोटर कन्फ्यूजन में इस विकल्प का इस्तेमाल करते हैं, जिसका असर चुनाव परिणाम पर पड़ता है. उन्होंने ये बातें रायपुर में मीडिया से चर्चा के दौरान कही थी.

2013 में शुरू हुआ नोटा

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, 2013 में चुनाव आयोग ने वोटिंग पैनल पर अंतिम विकल्प के रूप में ईवीएम में 'उपरोक्त में से कोई नहीं' या नोटा बटन जोड़ा. नोटा का अपना प्रतीक मतपत्र है जिस पर काला क्रॉस बना होता है. इसका मतलब है कि मतदाता किसी भी उम्मीदवार को वोट देने का इच्छुक नहीं है.

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