साहब ! चुनावी बिसात में नए जिले बन गए हैं मोहरे, जानिए क्या है नफा-नुकसान?

मध्यप्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं नए जिलों का ऐलान और उनकी मांग जोर पकड़ती जा रही है. आलम ये है कि 40 दिन में ही राज्य में 4 नए जिले बनाने का ऐलान हो चुका है. आगे भी कई और इलाके जिले बनने की कतार में हैं. ऐसे में सवाल ये है कि क्या राज्य का खजाना इसका बोझ सहने की स्थिति में है?

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ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश की चुनावी बिसात में नए जिलों का ऐलान अब नये मोहरे हैं. तभी तो 40 दिन में चौथे जिले मैहर का ऐलान हो गया है. हालांकि सच ये है कि कमलनाथ ने अपनी सरकार गिरने से पहले नागदा,मैहर और चाचौड़ा को जिला बनाने का ऐलान किया गया था लेकिन शिवराज सरकार ने नागदा और मैहर पर मुहर लगा दी. जाहिर है इसका श्रेय बीजेपी को मिल गया. अब बड़ा सवाल ये है इन जिलों से फायदा क्या होगा और क्या सरकारी खजाना इन्हें चलाने के लिये काफी है. आगे बढ़ने से पहले ये जान लेते हैं कि राज्य में चुनाव दर चुनाव कैसे नए जिले बन रहे हैं. 

ये तो सभी को पता है कि राज्य में इसी साल के अंत में चुनाव होने हैं. लिहाजा नए जिलों के बनने की रफ्तार भी फुल स्पीड में आ गई हैं. इसकी तस्दीक नीचे दिए गए ग्राफिक्स से होती है. 

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जानकार कहते हैं,छोटे जिलों में प्रशासनिक काम-काज जल्दी और बेहतर होता है,जनता के साथ प्रशासन का संवाद बढ़ता है, कानून-व्‍यवस्‍था नियंत्रण में रखना आसान होता है और सरकार का राजस्व भी बढ़ता है. लेकिन इसके साथ ही ये भी सही है कि नए जिले बनने से सरकार के खजाने पर बोझ भी बढ़ता है. 

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इसके अलावा नए जिला मुख्यालय बनने से वहां रहने की लागत बढ़ती है और महंगाई भी. सेवानिवृत्त IAS देवेन्द्र सिंह राय के मुताबिक ये महंगा सौदा है. नए जिले बनाने के पीछे राजनीतिक वजहें ही ज्यादा हैं. 

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फ़ायदा केवल ये होता है कि लोगो को काम के लिए दूर नहीं जाना पड़ता लेकिन आज के ज़माने में ट्रांसपोर्टेशन काफ़ी सुगम है लेकिन ये कोई ठोस आधार नहीं है, इसके पीछे राजनीति ज़्यादा काम करती है. पहले 26-27 ब्लॉक मिला कर ज़िला बनता था. जिला बनाने के लिए आपको कलेक्ट्रेट और कई प्रशासनिक भवन बनाने पड़ेंगे केवल लोगों को ख़ुश करने की बात में कोई गहरी सोच नहीं है. नए जिले बनने से खर्च बढ़ना निश्चित है.

देवेंद्र सिंह राय

सेवानिवृत्त IAS

कुछ ऐसी ही राय अर्थशास्त्री कपिल होलकर भी रखते हैं. उनका साफ कहना है कि इससे राज्य के खजाने पर खर्च बढ़ेगा. 

ज़िले बनायेंगे तो स्वाभाविक है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना पड़ेगा. हालांकि जिस तरह से पॉपुलेशन बढ़ रहा है.पटवारियों का काम बढ़ता जा रहा है तो ये टेक्नीकल स्टेप भी हो सकता है. लेकिन इसमें राजनीति अहम बात है.

कपिल होलकर

अर्थशास्त्री

दरअसल दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा था कि नये जिले मामूली राजनीतिक लाभ देते हैं लेकिन खजाने को बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं. सही तो ये होगा कि जिलों का गठन सिर्फ सियासी लाभ के लिये ना हो. वाकई जब इसकी जरूरत हो तो ही किया जाए.