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मध्यप्रदेश: 121 से लेकर 932 था इन 10 सीटों पर जीत का अंतर ! कमलनाथ-शिवराज की होगी खास नजर

मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में 2018 में हुए चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, कुछ सीटें ऐसी थीं जो नतीजा तक बदल सकती थीं क्योंकि यहां हार जीत का अंतर 1000 से भी कम था. चुनाव परिणाम के आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य की हर पांचवीं सीट पर हार जीत का अंतर 3 फीसद वोटों से कम था.

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Madhya Pradesh Assembly Elections 2023: मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में 2018 में हुए चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, कुछ सीटें ऐसी थीं जो नतीजा तक बदल सकती थीं क्योंकि यहां हार जीत का अंतर 1000 से भी कम था. चुनाव परिणाम (election results) के आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि पिछले विधानसभा चुनावों (assembly elections) में राज्य की हर पांचवीं सीट पर हार जीत का अंतर 3 फीसद वोटों से कम था. प्रदेश की 10 सीटों पर जीत का अंतर 1000 से भी कम था  और इसमें से भी 7 सीटें कांग्रेस ने जीतीं. यहां ये जानना भी जरूरी हो जाता है कि प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार (Congress government) बनी थी. कांग्रेस को 114 सीटें और बीजेपी को 109 सीटें मिलीं थीं. 

इन आंकड़ों पर करीब से निगाह डालें तो दिलचस्प तस्वीरें सामने आती हैं. ग्वालियर दक्षिण से कांग्रेस के प्रवीण पाठक मात्र 121 वोटों से जीते थे. पाठक ने बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा (Narayan Singh Kushwaha) को पटखनी दी थी.

इस सीट पर 1150 मतदाताओं ने ने नोटा का चुनाव किया था. सुवासरा सीट पर भी जीत 0.2% वोटों से मिली, कांग्रेस के हरदीप डंग ने बीजेपी उम्मीदवार को 350 मतों से हराया लेकिन बाद में पाला बदलकर बीजेपी में आए, उपचुनाव जीता और मंत्री बने. 2015 में बीना से महेश राय (Mahesh Rai) ने कांग्रेस उम्मीदवार को 18000 वोट से हराया लेकिन 2018 में वो सिर्फ 632 वोटों से जीत दर्ज कर पाए थे. महेश राय ने नगरपालिका के चुनाव से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था.

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जावरा से राजेन्द्र पांडे उर्फ राजू भैय्या 2018 में मात्र 511 वोट से जीत पाए थे हालांकि 2013 में उन्होंने 29000 से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी. रतलाम जिले में पड़ने वाला जावरा को हुसैन टेकरी की दरगाह के रूप में जाना जाता है और यहां बड़ी तादाद में मुस्लिम मतदाता भी हैं. संस्कारीधानी यानी जबलपुर उत्तर से कांग्रेस के विनय सक्सेना 578 वोटों से जीते थे, सक्सेना ने बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री शरद जैन को हरा दिया था और एकतरह के उनके राजनीतिक करियर पर विराम लगा दिया. बीजेपी से बागी धीरज पटेरिया ने हजारों वोट लेकर जैन की हार में निर्णायक भूमिका निभा दी.

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छतरपुर की राजनगर सीट से कांग्रेस के विक्रम सिंह ने 2018 में जीत हासिल कर हैट्रिक लगा दी लेकिन बीजेपी के अरविंद पटेरिया और उनके बीच सिर्फ 732 वोटों का अंतर था. दमोह में 798 वोटों के अंतर ने बीजेपी के किले को ढहा दिया पूर्व वित्त मंत्री और 6 दफे के विधायक जयंत मलैया कांग्रेस के राहुल लोधी से चुनाव हार गये और 28 सालों से चल रहा बीजेपी की जीत का सिलसिला थम गया, हालांकि बाद में राहुल सिंह लोधी बीजेपी में शामिल हो गए लेकिन 2021 के उपचुनाव में कांग्रेस के अजय टंडन ने उन्हें हरा दिया.

गोवर्धन दांगी ब्यावरा से 2018 में कांग्रेस उम्मीदवार था, पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के साथ उन्होंने उस साल नर्मदा परिक्रमा की और 826 मतों से बीजेपी के नारायण सिंह पंवार को हराकर विधायक बने, लेकिन वो राज्य के पहले विधायक थे जिनकी कोरोना में मौत हो गई. बाला बच्चन कांग्रेस सरकार में गृहमंत्री थे, 5 दफे विधायक रहे और कमलनाथ के बेहद करीबी माने जाते हैं लेकिन 2018 में अपनी राजपुर सीट वो मात्र 932 वोटों से जीत पाए थे. कोलारस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार वीरेन्द्र रघुवंशी ने 720 वोटों से जीत दर्ज की थी रघुवंशी ने 2023 में कांग्रेस का दामन थाम लिया लेकिन टिकट हासिल नहीं कर पाए .. उनका टिकट पक्का नहीं हुआ और कांग्रेस से कपड़ाफाड़ राजनीति सुर्खियों में आ गई. 

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