देश में जातिगत जनगणना को लेकर सत्ता और विपक्ष में भले ही तलवारें तनी हों लेकिन जातिगत सम्मेलन करने में कोई पीछे नहीं है. वहीं हर जाति,समाज की भी मांग है कि वो विधानसभा में पहुंच जाएं,जहां सम्मेलन नहीं हो पा रहे हैं वहां जातियों को साधने के लिये बोर्ड बन रहे हैं. खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आधा दर्जन से ज्यादा समाजों के बोर्ड के गठन का एलान कर चुके हैं. अहम ये है कि उनके अध्यक्षों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया जा रहा है.
अलग-अलग जातियों को लुभाने का आलम ये है कि बीजेपी हो या कांग्रेस सभी ने जातियों के हिसाब से प्रकोष्ठ बनाये हैं. दलित हों,ब्राह्मण हों,राजपूत हों,अन्य पिछड़ा वर्ग या आदिवासी हों सबके लिये सम्मेलनों की बाढ़ आई हुई है.कांग्रेस ने जातियों के हिसाब से प्रकोष्ठ बनाये तो बीजेपी ने कई जातियों के लिये बोर्ड बना दिए.
इस तरह के बोर्ड बनाने की वजहें सियासी भी कही जा सकती हैं. दरअसल राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 45 सीट पर राजपूत, 24 सीटों पर कुशवाहा और विंध्य-महाकौशल समेत राज्य के अलग-अलग हिस्सों में ब्राह्मण वोट निर्णायक हैं. कुशवाह समाज के प्रांतीय अध्यक्ष योगेश मानसिंह कुशवाह के बयान से तस्वीर और साफ हो जाती है. उनका कहना है कि हमारे समाज से कम से कम 25 टिकट की मांग हमने राजनीतिक दलों से की है. कुशवाह समाज का बड़ा वोट बैंक एमपी में है.अगर हमारी माँग पूरी नहीं होती है तो हम हमारे लोगो को निर्दलीय चुनाव लड़ायेंगे.
बीजेपी की ओर से की जा रही इस कवायद को देखते हुए कांग्रेस भी पीछे नहीं है. उसने अभी से ऐलान किया है कि उनकी सरकार बनी तो वे क्या करेंगे.कांग्रेस के प्रवक्ता आनंद जाट का कहना है कि बीजेपी कांग्रेस के विचारों की नकल कर रही है. दरअसल अलग-अलग समाज के प्रकोष्ठों के माध्यम सियासी दल अपनी सियासत को साधने में लगे हैं. हकीकत ये है कि हर वर्ग भी चाहता है कि उसके समाज का सरकार में प्रतिनिधित्व हो. ऐसे में असल मुद्दों की चिंता उन्हें बेमानी लगती है.
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