Madhya Pradesh Assembly Elections: चुनावी मौसम में केंद्र सरकार ने गेंहू समेत रबी सीजन की कुछ 6 फसलों की MSP बढ़ा (MSP of 6 crops increased)दी है. जिसमें जौ,चना,मसूर,सरसों और कुसुम शामिल है. इसमें सबसे अहम गेंहू की MSP है...जिसमें 150 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई है. जिसके बाद गेंहू अब ₹2125 की ₹2275 प्रति क्विंटल बिकेगा. लेकिन चूंकि मौसम चुनाव का लिहाजा मध्यप्रदेश कांग्रेस (
Madhya Pradesh Congress) ने तुरंत ही ऐलान कर दिया कि जब उनकी सरकार आएगी तो वे गेहूं का समर्थन मूल्य 2600 रुपए और धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपए प्रति क्विंटल कर देंगे. अब सवाल ये है कि क्या चुनावों से पहले हुए ये वादे राजनीतिक दलों की वोट की फसल काट पाएंगे. क्या मतदाता इस पर भरोसा करता है? फिलहाल तो किसान यही मान रहे हैं कि नेताजी केवल चुनावी फसल काटने की जुगत लगा रहे हैं.
भोपाल से लगभग 180 किलोमीटर दूर आगर-मालवा की कृषि मंडी में जब NDTV की टीम पहुंची तो किसानों का दर्द खुलकर सामने आया. वहां के किसानों का कहना है कि तकलीफ ही तकलीफ है. किसान मरे या जिए उसे तो बस घाटा ही झेलना है. यहीं पर मिले बुराई बांध गांव के धीरप सिंह अपना दर्द कुछ यूं बयां करते हैं.
अब आगे बढ़ने से पहले ये भी जान लेते हैं कि सरकार ने किन फसलों पर कितनी नई MSP तय की है.
किसानों का कहना है कि यदि उनका गेहूं ₹3000 क्विंटल से ऊपर बिकना चाहिए और अगर ₹4000 क्विंटल तक बिकेगा तो ही खर्च निकल पाएगा. मौका माकूल देखकर कांग्रेस ने अपने वचनपत्र में वादा किया है कि वो गेंहूं का समर्थन मूल्य 2600 रुपये प्रति क्विंटल करेगी. हालांकि को लगता है कि चुनाव का दौर है तो वायदे भी आएंगे ही क्योंकि कोई भी सरकार बिना लालच दिये राजनीति में आ ही नहीं पा रही है चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी.
हालांकि सरकार और विपक्ष के अपने-अपने तर्क हैं. खुद केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले कहते हैं कि मोदी सरकार और शिवराज सरकार किसान हितैषी है.
रामदास आठवले
दूसरी तरफ कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार हो या शिवराज की...दोनों ही किसान विरोधी है. अकेले मध्यप्रदेश में 29 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है. मंदसौर में किसान शहीद हुए लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा.
के के मिश्रा
वैसे देखा जाए तो सरकार किसानों के पसीने पर एमएसपी का निर्धारण करती है लेकिन इसी पसीने की उसे बंपर कमाई भी मिलती है. पिछले साल सिर्फ नवंबर तक 5 लाख मैट्रिक टन गेहूं निर्यात के लिए बंदरगाहों तक पहुंचा था. जिसका मूल्य 700 करोड़ रु. से ज्यादा था. जबकि जबकि 2021-22 के पूरे वित्तीय वर्ष में ये आंकड़ा 1.76 लाख मीट्रिक टन था जिसकी कीमत लगभग 420 करोड़ रु.थी.
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