मोहम्मद शमी के रमजान में जूस पीने पर बढ़ा विवाद, जानें, किन लोगों को है रोजा नहीं रखने की छूट

Ramzan Special Story: रमजान के महीने में क्रिकेटर मोहम्मद शमी के जूस पीने की बात ने तूल पकड़ लिया है. इसके पक्ष और विपक्ष में कई बातें हो रही हैं. आइए आपको इससे संबंधित अधिक जानकारी देते हैं.

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मोहम्मद शमी का जूस पीने का मामला

Mohammad Sami in Ramzan: क्रिकेटर मोहम्मद शमी के मैच के दौरान एनर्जी ड्रिंक्स (Energy Drinks) पीने का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोग उनकी जमकर आलोचना कर रहे हैं. इसके साथ ही कुछ मौलानाओं ने भी मोहम्मद शमी के इस हरकत की आलोचना की है. दरअसल, ये लोग इस बात से नाराज है कि शमी ने रमजान (Ramzan) के महीने में एक तो रोजा नहीं रखा, दूसरा वह रोजे के वक्त जूस पीने का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहे हैं. 

हालांकि, मो. शमी के भाई मो. जैद ने उनका बचाव किया है. उन्होंने कहा कि जो लोग मों शमी के खिलाफ रोजा नहीं रखने पर बयान बाजी कर  रहे हैं, उन्हें बता होना चाहिए मो. शमी इन दिनों दुबई में है, जो भारत 70 किमी से बहुत ज्यादा दूर है, जबकि इस्लाम धर्म में 70 किमी से ज्यादा का सफर करने वालों को रोजा रखने से छूट मिली हुई है. ऐसे लोग रमजान का रोजा न रखकर बाद में रोजा रख सकते हैं. 

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रोजा रखना हर मुसलमान पर है फर्ज

ऐसे सवाल पैदा होता कि क्या रमजान में हर मुसलमान पर हर हाल रोजा रखना फर्ज या कुछ लोगों को इससे छूट मिली हुई है. दरअसल, रोजा इस्लाम धर्म के 5 स्तंभों में से एक है. लिहाजा, रोजा रखना हर बालिग मुसलमान मर्द और औरतों पर फर्ज है. हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में रोजा रखने से छूट भी मिली हुई है. तो आइए, जानते हैं कि इस्लाम धर्म में रोजा रखने से किसको छूट मिली हुई है. 

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जिन मुसलमानों को रोज़ा रखने से छूट है

ऐसे कुछ मामले हैं, जिनमें मुसलमानों को रोज़ा रखने से छूट दी गई है. उनका विवरण नीचे दिया गया है. इस मामले को लेकर एनडीटीवी ने मौलाना असद से बात की, तो उन्होंने बताया कि सुनान एट तिर्मिज़ी खंड 3 हदीस 1423 के मुताबिक पैगंबर मुहम्मद (पीबीयूएच) का फरमान है कि “तीन लोगों से कलम उठा ली गई है; सोते हुए व्यक्ति से जागने तक, नाबालिग के लिए जवान होने तक और मानसिक रूप से विक्षिप्त के लिए जब तक कि वह स्वस्थ न हो जाए. लिहाजा, इन लोगों पर भी रोजा फर्ज नहीं है. 

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मुसाफिरों और बीमार

मुसाफिरों और बीमार लोगों को रोजा रखने से छूट दी गई है. उन दोनों को अपने छूटे हुए रोज़े की क़ज़ा करनी होगी. हालांकि, विकलांगता या स्थायी बीमारी के मामले में, आप किसी गरीब व्यक्ति को खाना खिलाकर हर छूटे हुए रोज़े की भरपाई कर सकते हैं. इस संबंध में सुनान एट तिरमिज़ी खंड 2 हदीस 715 में पैगंबर मुहम्मद (पीबीयूएच) का फऱमान है, "वास्तव में अल्लाह ने यात्री से आधा नमाज़ उठा लिया और उसने गर्भवती महिला, या बीमार व्यक्ति से रोज़ा हटा दिया." हालांकि, मौलाना असद ने बताया कि सफर से मुराद खेल कूद और दुनिया कमाने के लिए किए जाने वाले सफर से नहीं है. 

योद्धाओं के लिए

इसके अलावा, अल्लाह की राह में जंग लड़ने वाले शख्स को भी रोजे से छूट है. मौलाना असद ने बताया कि सहीह अल बुखारी खंड 5 हदीस 4276 में इब्न अब्बास (आरए) का कौल है कि पैगंबर मुहम्मद (पीबीयूएच) ने रमजान के महीने में दस हजार (मुस्लिम योद्धाओं) की कंपनी में अल मदीना (मक्का के लिए) छोड़ दिया था और वह सौम (रोजे) का पालन कर रहे थे, लेकिन जब वे अल कादिद नामक स्थान पर पहुंचे, जो उस्फ़ान और क़ुदैद के बीच पानी का स्थान था, तो उन्होंने अपना सौम (रोजा) तोड़ दिया और उन्होंने भी ऐसा ही किया. 

मौलाना असद ने बताया कि मजबूरी वाले व्यक्ति और बहुत अधिक उम्र वाले बुजुर्ग को भी रोजा रखने से छूट दी गई है. उन दोनों को अपने छूटे हुए रोज़े की क़ज़ा करनी होगी. बुढ़ापे के संबंध में अल्लाह ने कुरान के 2:184 में फरमाया है,"और जो लोग कठिनाई से उपवास कर सकते हैं (उदाहरण के लिए, एक बूढ़ा आदमी, आदि) उनके पास (या तो उपवास करने का विकल्प है या) एक मिस्कीन (गरीब व्यक्ति) को (हर दिन के लिए) खिलाने का विकल्प है". 

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महिलाओं के लिए

मासिक धर्म वाली महिलाओं, गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं और प्रसव के बाद रक्तस्राव वाली महिलाओं को भी उपवास से छूट दी गई है. शर्तें समाप्त होने के बाद उपरोक्त सभी श्रेणियों को अपने छूटे हुए रोज़ों की भरपाई करनी होगी. सहीह अल बुखारी खंड 3 हदीस 1951 में अबू सईद का कौल है कि पैगंबर मुहम्मद (PBUH) ने फरमाया, "क्या यह सच नहीं है कि एक महिला नमाज नहीं करती है और मासिक धर्म पर रोजा (उपवास) नहीं रखती है?

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