Christ Church In Gwalior
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Christmas 2024: जय विलास पैलेस के आर्किटेक्ट ने किया इस ऐतिहासिक चर्च का निर्माण, जानिए इसकी दास्तान
- Wednesday December 25, 2024
- Written by: देव श्रीमाली, Edited by: अजय कुमार पटेल
Christmas Celebration 2024: ऐसा माना जाता है कि 1874 में क्रिसमस पर कर्नल फ्लोज ने पहली बार इस गिरिजाघर पर क्रिसमस सेलिब्रेशन किया था, जिसमें शाही परिवार से जुड़े लोग भी उन्हें बधाई देने और दावत में शामिल होने पहुंचे थे. इसके बाद से यह चर्च कालांतर में ब्रिटिश क्रिश्चियन के लिए खोल दिया गया और फिर आम जन के लिए. आज भी क्रिसमस पर यहां धूम रहती है. वहीं साल भर देश और दुनिया से क्रिश्चियन समुदाय के लोग यहां चर्च को देखने और प्रार्थना करने आते हैं.
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ग्वालियर: 450 साल पुराने चर्च में बसी है ब्रिटिश सोल्जर्स की यादें, इंग्लैंड से आज भी आते हैं उनके वंशज
- Monday December 25, 2023
- Reported by: देव श्रीमाली, Edited by: Priya Sharma
Christmas 2023: ग्वालियर के 450 साल पुराने क्राइस्ट चर्च में आज भी ब्रिटिश सैनिक की यादें बसी है. दरअसल, 1857 की क्रांति के दौरान मारे गए सैनिक का शव इसी जगह दफनाया गया था. बता दें कि आज भी इनके वंशज अपने पूर्वजों की यादें सहेजने के लिए इंग्लैंड से यहां आते हैं.
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Christmas 2024: जय विलास पैलेस के आर्किटेक्ट ने किया इस ऐतिहासिक चर्च का निर्माण, जानिए इसकी दास्तान
- Wednesday December 25, 2024
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Christmas Celebration 2024: ऐसा माना जाता है कि 1874 में क्रिसमस पर कर्नल फ्लोज ने पहली बार इस गिरिजाघर पर क्रिसमस सेलिब्रेशन किया था, जिसमें शाही परिवार से जुड़े लोग भी उन्हें बधाई देने और दावत में शामिल होने पहुंचे थे. इसके बाद से यह चर्च कालांतर में ब्रिटिश क्रिश्चियन के लिए खोल दिया गया और फिर आम जन के लिए. आज भी क्रिसमस पर यहां धूम रहती है. वहीं साल भर देश और दुनिया से क्रिश्चियन समुदाय के लोग यहां चर्च को देखने और प्रार्थना करने आते हैं.
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ग्वालियर: 450 साल पुराने चर्च में बसी है ब्रिटिश सोल्जर्स की यादें, इंग्लैंड से आज भी आते हैं उनके वंशज
- Monday December 25, 2023
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Christmas 2023: ग्वालियर के 450 साल पुराने क्राइस्ट चर्च में आज भी ब्रिटिश सैनिक की यादें बसी है. दरअसल, 1857 की क्रांति के दौरान मारे गए सैनिक का शव इसी जगह दफनाया गया था. बता दें कि आज भी इनके वंशज अपने पूर्वजों की यादें सहेजने के लिए इंग्लैंड से यहां आते हैं.
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